गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

राजा भोज और बुढ़िया

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    एक समय की बात है कि राजा भोज और माघ पंडित सैर को गये थे । लौटते समय वे दोनों रास्ता भूल गये । तब वे दोनों विचार करने लगे, रास्ता भूल गये अब किससे पूछे । तब माघ पंडित ने कहा कि पास के खेत में जो बुढिया काम कर रही है उससे पूछे ।

दोनों बुढ़िया के पास गये, और कहा राम राम माँ जी । यह रास्ता कहाँ जायेगा । बुढिया ने उत्तर दिया कि "यह रास्ता तो यही रहेगा इसके ऊपर चलने वाले जायेंगे । भाई तुम कौन हो !"

"बहिन हम तो पथिक है "- राजा भोज बोला ।
बुढ़िया बोली -"पथिक तो दो है एक सूरज और एक चन्द्रमा । तुम कौन से पथिक हो ।" 

भोज बोला -"हम तो राजा है ।"
"राजा तो दो है एक इन्द्र और एक यमराज । तुम कौनसे राजा हो" - बुढ़िया बोली ।

"बहन हम तो क्षमतावान है" - माघ बोला ।
"क्षमतावान दो है एक पृथ्वी और दूसरी स्त्री । भाई तुम कौन हो " - बुढ़िया बोली ।

"हम तो साधू है" - राजा भोज कहने लगा ।
" साधू तो दो है एक तो शनि और दूसरा सन्तोष । भाई तुम कौन हो" - बुढ़िया बोली । 

"बहिन हम तो परदेसी है" - दोनों बोले ।
" परदेसी तो दो है एक जीव और दूसरा पे़ड़ का पात । भाई तुम कौन हो" - बुढ़िया बोली ।

" हम तो गरीब है " - माघ पंडित बोला
" गरीब तो दो है एक तो बकरी का जाया बकरा और दूसरी लड़की ।" - बुढ़िया बोली । 

" बहिन हम तो चतुर है" - माघ पंडित बोला ।
" चतुर तो दो है एक अन्न और दूसरा पानी । तुम कौन हो सच बताओ ।" - बुढ़िया बोली

इस पर दोनों बोले हम कुछ भी नहीं जानते । जानकार तो तुम हो ।
तब बुढ़िया बोली कि " तुम राजा भोज हो और ये पंडित माघ है । जाओ यही उज्जैन का रास्ता है ।"


शिक्षा - जब बड़ो के सामने आपकी एक ना चले तो समझ लो, हार मान लेना ही बेहतर है । 


🌸 श्रीरामः शरणं समस्तजगतां
रामं विना का गती।
रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं
रामाय कार्यं नम:। 
रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो
रामस्य सर्वं वशे। 
रामे भक्तिरखण्डिता भवतु मे
राम त्वमेवाश्रयः।। 

(१, श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणमहत्त्वम्)


शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

पशुपक्षिणां ध्वनय:

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मयूरस्य केका। मयूरः कायति।🦚
गजस्य क्रोञ्चनम्। गजः क्रोञ्चति। 🐘
अश्वस्य ह्रेषा। अश्वः ह्रेषते। 🐎
सिंहस्य गर्जना। सिंहः गर्जति।🦁
शुनकस्य भषणं/बुक्कनम्।
शुनकः भषति/बुक्कति।🐕
वराहस्य घुरणम्।वराहः घुरति।🐷
कोकिलस्य कूजनम्। कोकिलः कूजति।🐦‍⬛
व्याघ्रस्य गर्जनम्।व्याघ्रः गर्जति।🐯
वृषभस्य उन्नादः। वृषभः उन्नदति।🐂
धेनोः रम्भः। धेनुः रम्भति।🐮
शुकस्य रटनम्। शुकः रटति।🦜
सर्पस्य फुत्कारः। सर्पः फुत्करोति।🐍
मण्डूकः रटरटायति।🐸
गर्दभस्य गर्दनम्। गर्दभः गर्दति।🫏
रासभस्य रासनम्। रासभः रासते।
उभावपि समानौ।
मधुकरस्य गुञ्जनम्। मधुकरः गुञ्जति।🐝
मशकस्य मशनम्। मशकः मशति। 🦟
बिडालः मीवति 🐈


सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

मङ्गलाचरणम्

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आबृह्माण्डपिपीलिकान्ततनुभि: सूविद्धमानावृतम् 
जाग्रतस्वप्नसुसुप्तिभाषकतया सर्वत्र या दीप्यति। 
सा देवी जगदम्बिका भगवती श्री राजराजेश्वरी, 
श्रीविद्या करुणानिधि शुभकरी भूयात्सदा श्रेयसे।।



शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

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प्रेसविज्ञप्तिः संस्कृतम् - १४.१॰.२॰२३ वार्ताहरः आचार्यदीनदयालशुक्लः



विभागीयस्तरस्य संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

बाँदा। अद्य दिनाङ्के १४.१॰. प्रातः ११: वादने जिलाविद्यालयनिरीक्षकः बांदा श्रीविजयपालसिंद्वारा  गिरवांनगरस्थस्य पंडितजवाहरलालनेहरूइण्टरकॉलेज इत्यस्य विद्यालयस्य आकस्मिकनिरीक्षणं विहितम्।


विद्यालये सर्वं सुष्ठु स्वस्थं च प्राप्य विद्यालयस्य प्राचार्यगणेशद्विवेदीमहोदयेन सह सर्वैः शिक्षकैः सह च अस्मिन् शैक्षणिकोन्नयनगोष्ठीयाम् उत्थानसभायां च संस्कृतप्रतिभासन्धानपरीक्षायै उपस्थिताः विद्यालयस्य छात्राः जिलास्तरस्य ध्वजरोहणस्य अनन्तरं, हमीरपुरस्य भुवनेश्वरीमहाविद्यालये संभागीयस्तरस्य आयोजने आयोजितायां प्रतियोगितायां राज्यस्तरस्य चयनितस्य छात्रस्य महेशस्य विद्यालयस्य नामे गौरवम् आनयितुं ट्राफी, प्रमाणपत्रं च सम्मानितं तथा विभागीयस्तरीय पर द्वितीय तृतीय स्थान पर स्थित छात्र ज्योति, नेहा, प्रज्ञा च ट्राफी प्रमाणपत्राणि च दत्तानि।


सभायां संस्कृतविषयस्य प्रवक्ता शिवपूजन त्रिपाठीमहोदयः तथा च छात्रान् राज्यस्तरं प्रति प्रेषयित्वा छात्रान् प्रकाशं कृतवान् इति व्यक्तिः सम्बोधितवान् तथा च जिलाविद्यालयनिरीक्षकेन शिक्षकान् छात्रान् च अभिनन्दनं कृत्वा तेषां उज्ज्वलभविष्यस्य कामना कृता समारोहस्य संचालनं श्रीअखिलेशशुक्लद्वारा सम्पादितम्।


विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनेन सह संस्कृतस्य अध्ययनमपि आवश्यकम् :

sanskritpravah प्रेसविज्ञप्ति: संस्कृतम् १३/१०/२०२३



 केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य  उद्घाटने कुलपति:प्रो.शशिकुमारः प्रावोचत्!

प्रेषक: आचार्यदीनदयालशुक्ल:


नवदेहली- विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनं कुर्वतां छात्राणां कृते अपि संस्कृतस्य अध्ययनं महत्त्वपूर्णम् अस्ति । संस्कृतविषये ज्ञानं कृत्वा एव वयं विज्ञानप्रौद्योगिक्यां नूतनसंशोधनं कर्तुं शक्नुमः, यतः अस्माकं प्राचीनग्रन्थेषु संस्कृतभाषायां विस्तृतानि वस्तूनि पूर्वमेव उपलभ्यन्ते। एतत् कुलपतिः प्रो.शशिकुमारधीमानः केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य,नवदेहलीनगरस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य द्वितीयशैक्षणिकसत्रस्य उद्घाटनसमये हिमाचलप्रदेशतकनीकीविश्वविद्यालये, हमीरपुरे उक्तवान्। 

कुलपतिः अवदत् यत् भारतस्य सर्वा: भाषाः संस्कृतात् उत्पन्नाः। राष्ट्रियशिक्षानीत्याः अन्तर्गतं भारतस्य सर्वासु भाषासु प्रचारार्थं कार्यं क्रियते । कुलपतिः सर्वान् छात्रान् संस्कृताध्ययनार्थम् आहूतवान्। तस्मिन् एव काले  शैक्षणिक-अधिष्ठाता केन्द्राधिकारी च प्रो० जय देवेनोक्तं यत् अस्मिन् सत्रे कक्ष्या: ऑनलाइन-आफलाइन-इत्यत्र च संचालिताः भविष्यन्ति। अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रे ३१ अक्टोबर् पर्यन्तं प्रवेशार्थम् आनलाइन् आवेदनं कर्तुं शक्नुवन्ति। अस्मिन् अवसरे तकनीकीविश्वविद्यालयस्य प्राध्यापकाः, छात्राश्च उपस्थिताः आसन्।

नौरास्थ राजकीय महाविद्यालयस्य प्राचार्यः मुख्यातिथिरूपेण समुपस्थिता:  डॉ. राजेशशर्म महाभागेनोक्तं यत् संस्कृतं प्रत्येकस्मिन् व्यक्तिषु वर्तते। अद्यत्वेऽपि संस्कृतं जन्मतः मृत्युपर्यन्तं मनुष्यस्य संस्कारैः सह सम्बद्धम् अस्ति । तथापि वयं संस्कृतं व्यवहारे न स्थापयामः, यस्मात् कारणात् अद्यत्वे अपि संस्कृतस्य जागरणार्थं प्रयत्नाः करणीयाः भवन्ति। १६ शती पर्यन्तं भारते सर्वं संस्कृतभाषायां आसीत्, तदनन्तरं बहुकारणात् भारते संस्कृतस्य महत्त्वं न्यूनीकृतम्, परन्तु अद्य पुनः एकवारं संस्कृतस्य उत्थानाय प्रयत्नाः क्रियन्ते।

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

(बेताल पच्चीसी-चौबीसवीं कहानी)

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माँ-बेटी के बच्चों में क्या रिश्ता हुआ?



किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा, राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश के राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये।

उसके जाने पर रानी और बेटी जंगल से निकलकर आयीं और राजा को मरा देखकर बड़ी दु:खी हुईं। वे दोनों शोक करती हुईं एक तालाब के किनारे पहुँची। उसी समय वहाँ चंडसिंह नाम का साहूकार, अपने लड़के के साथ घोड़े पर चढ़कर, शिकार खेलने के लिए उधर आया। दो स्त्रियों के पैरों के निशान देखकर साहूकार अपने बेटे से बोला, "अगर ये स्त्रियाँ मिल जायें तो जायें, तब जिससे चाहो, विवाह कर लेना।"

लड़के ने कहा, "छोटे पैर वाली छोटी उम्र की होगी, उससे मैं विवाह कर लूँगा। आप बड़ी से कर लें।"

साहूकार विवाह नहीं करना चाहता था, पर बेटे के बहुत कहने पर राजी हो गया।

थोड़ा आगे बढ़ते ही उन्हें दोनों स्त्रियां दिखाई दीं। साहूकार ने पूछा, "तुम कौन हो?"

रानी ने सारा हाल कह सुनाया। साहूकार उन्हें अपने घर ले गया। संयोग से रानी के पैर छोटे थे, पुत्री के पैर बड़े। इसलिए साहूकार ने पुत्री से विवाह किया, लड़के का विवाह रानी से हो गया| इस तरह पुत्री सास बनी और माँ बेटे की बहू। उन दोनों के आगे चलकर कई सन्तानें हुईं।

इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्! बताइए, माँ-बेटी के जो बच्चे हुए, उनका आपस में क्या रिश्ता हुआ?"

यह सवाल सुनकर राजा बड़े चक्कर में पड़ा। उसने बहुत सोचा, पर जवाब न सूझ पड़ा। इसलिए वह चुपचाप चलता रहा।

बेताल यह देखकर बोला, "राजन्, कोई बात नहीं है। मैं तुम्हारे धैर्य और पराक्रम से प्रसन्न हूँ। मैं अब इस शव से निकल जाता हूँ। तुम इसे योगी के पास ले जाओ। जब वह तुम्हें इस शवको सिर झुकाकर प्रणाम करने को कहे तो तुम कह देना कि पहले आप करके दिखाओ। जब वह सिर झुकाकर समझायें तो तुम उसका सिर काट लेना। उसका बलिदान करके तुम सारी पृथ्वी के राजा बन जाओगे। सिर नहीं काटा तो वह तुम्हारी बलि देकर सिद्धि प्राप्त करेगा।"

इतना कहकर बेताल चला गया और राजा शव को लेकर योगी के पास आया।



समाचारपत्रम्

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विश्वस्य वृत्तान्त: समाचारपत्रम् ११ अक्टोबर २०२३



उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)

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च्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)       


उच्चारणस्थानानि



                           
          क्रम / संस्कृत-सूत्राणि / वर्ण / उच्चारण स्थान/ श्रेणी  


१) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः। 
२) इ-चु-य-शानां तालु। 
३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा। 
४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: । 
५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ । 
६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च । 
७) एदैतौ: कण्ठ-तालु । 
८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् । 
९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् । 



१) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः।
-अकार (अ, आ), कु= कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार (ह्), और विसर्जनीय (:) का उच्चारण स्थान कंठ और जीभ का निचला भाग  "कंठ्य"  है।


२) इ-चु-य-शानां तालु। 
-इकार (इ, ई ) , चु= चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार (य) और शकार (श) इनका “ तालु और जीभ / तालव्य ” उच्चारण स्थान है।  


३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा। 
-ऋकार (ऋ), टु = टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ (र) और षकार (ष) इनका “ मूर्धा और जीभ / मूर्धन्य ” उच्चारण स्थान है। 


४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: ।
-लृकार (लृ), तु = तवर्ग ( त, थ, द, ध, न ), लकार (ल) और सकार (स) इनका उच्चारण स्थान “दाँत और जीभ / दंत्य ” है।


५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ ।
- उकार (उ, ऊ), पु = पवर्ग ( प, फ, ब, भ, म ) और उपध्मानीय इनका उच्चारण स्थान "दोनों होंठ / ओष्ठ्य ” है। 


६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च ।
- ञकार (ञ), मकार (म), ङकार (ङ), णकार (ण), नकार (न), अं  इनका उच्चारण स्थान “नासिका” है ।  


७) एदैतौ: कण्ठ-तालु । 
- ए और ऐ का उच्चारण स्थान “कंठ तालु और जीभ / कंठतालव्य” है।


८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् ।
- ओ और औ का उच्चारण स्थान “कंठ, जीभ और होंठ / कंठोष्ठ्य” है। 
  

९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् ।
-वकार का उच्चारण स्थान “दाँत, जीभ और होंठ / दंतोष्ठ्य” है ।

                    -------------------------------------- 
१०) जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् ।
-जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान “ जिह्वामूल ” है ।

११) अनुस्वारस्य नासिका ।
-अनुस्वार (ं) का उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

१२) क, ख इति क-खाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्गसद्दशो जिह्वा-मूलीय: ।
-क, ख से पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ जिह्वामूलीय ” कहलाते है ।

१३) प, फ इति प-फाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्ग-सद्दश उपध्मानीय: ।
-प, फ के आगे पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ उपध्मानीय ” कहलाते है ।

१४) अं , अ: इति अच् परौ अनुस्वार-विसर्गौ ।
-अनुस्वार और विसर्ग “ अच् ” से परे होते है; जैसे — अं , अ: ।

संस्कृतवर्णविचारः

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संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran)-


(1) वर्ण,
(2) प्रत्याहार
(3) प्रयत्न

संस्कृत व्याकरण को माहेश्वर शास्त्र भी कहा जाता है।

👉 माहेश्वर का अर्थ है-- *शिव जी*
👉 माहेश्वर सूत्र की संख्या --- *14*

                (1)  वर्ण
संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के होते है---
3= *स्वर*
4= *व्यञ्जन*।

🌸👉 *संस्कृत में स्वर*--: ( *अच्*)तीन प्रकार के होते है-----:
1=■ *ह्रस्व स्वर* ( पाँच)---  इसमें एक मात्रा का समय लगता है। *अ , इ , उ , ऋ , लृ*

2=■ *दीर्घ स्वर* (आठ)---: इसमें दो मात्रा ईआ समय लगता है। आ , ई , ऊ , ऋ , ए ,ऐ ,ओ , औ

3= ■ *प्लुत स्वर* --: इसमे तीन मात्रा का समय लगता है।
जैसे--- *हे राम३*
*ओ३म* ।

🌸👉  सस्कृत में व्यञ्जन (हल् ) ----:

व्यञ्जन चार प्रकार के होते है----
1= 👉स्पर्श व्यञ्जन --: *क से म तक* = 25 वर्ण

2= 👉अन्तःस्थ व्यञ्जन ---: *य , र , ल , व*= 4 वर्ण

3= 👉 ऊष्म व्यञ्जन --: *श , ष , स , ह* = 4 वर्ण

4= 👉 संयुक्त व्यञ्जन --: *क्ष , त्र , ज्ञ* = 3 वर्ण

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

            (2)   प्रत्याहार

🌸 *प्रत्याहारों की संख्या* = 42
● *अक् प्रत्याहार*---: अ इ उ ऋ लृ  ।
● *अच् प्रत्याहार* ---:अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● *अट् प्रत्याहार* ---: अ इ उ ऋ  लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र्  ।
● *अण् प्रत्याहार* ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल्  ।
● *इक् प्रत्याहार*----:  इ उ ऋ लृ  ।
● *इच् प्रत्याहार*----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● *इण् प्रत्याहार*-----:  इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल्   ।
● *उक् प्रत्याहार* ----: उ ऋ लृ  ।
● *एड़् प्रत्याहार* ----: ए ओ  ।
● *एच् प्रत्याहार*----- : ए ओ ऐ औ  ।
● *ऐच् प्रत्याहार* ----- ऐ औ  ।
● *जश् प्रत्याहार* --- : ज् ब् ग् ड् द्   ।
● *यण् प्रत्याहार* ---': य् व् र् ल्   ।
● *शर् प्रत्याहार*-----: श् ष् स्    ।
● *शल् प्रत्याहार* ---- : श्  ष्  स्  ह्  ।
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆

                       (3) *प्रयत्न*---

👉  " *वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को ' प्रयत्न ' कहते है।*
👉 प्रयत्न *दो प्रकार* के होते है---:
1= आभ्यान्तर प्रयत्न
2= बाह्य प्रयत्न
■ *आभ्यान्तर प्रयत्न*----:
आभ्यान्तर प्रयत्न *पाँच प्रकार* के होते है----:
☆ *1*= स्पृष्ट ( *स्पर्श*)-----: *क से म तक के वर्ण  ।*
☆ *2*= ईषत् -- स्पृष्ट -----: *य ,र  , ल , व  ।*
☆ *3*= ईषत् -- विवृत ------:  *श  , ष  , स , ह  ।*

☆ *4*=  विवृत ----:
अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ  ।

☆ *संवृत----:
" *इसमें वायु का मार्ग बन्द रहता है । प्रयोग करने में ह्रस्व  " अ " का प्रयत्न संवृत होता है किन्तु शास्त्रीय प्रक्रिया में " अ "  का प्रयत्न विवृत होता है।*
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
🌸 *बाह्य प्रयत्न* ------:
👉 उच्चारण की उस चेष्टा को " बाह्य प्रयत्न " कहते है ; जो मुख से वर्ण निकलते समय होती है।
👉 *बाह्य प्रयत्न  -- 11 प्रकार के होते है।*

(1=विवार  2= संवार  3= श्वास 4= नाद 5= घोष 6=:अघोष 7= अल्पप्राण 8= महाप्राण 9= उदात्त 10= अनुदात्त 11= त्वरित  )
         ----------------------

स्वपरिचयः (Self Introduction)

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स्वपरिचयः (Self Introduction)

1) 

1) मम नाम ...दीनदयालः.... ।

मेरा नाम ....दीनदयाल.... है।    
(My name is Deendayal)


2) अहम् ............ कक्षायां पठामि। (षष्ठी/ सप्तमी/ अष्टमी)

मैं ............ कक्षा में पढ़ता हूँ।   
      (I am Studying in class ……..)


3) मम विद्यालयस्य नाम विद्यालय ......अस्ति। 

मेरे विद्यालय का नाम केन्द्रीय विद्यालय .............. है।
(I Study in Kendriya Vidyalaya ……………….)


4) अहं मूलतः ....उत्तरप्रदेशतः....अस्मि।

 मैं मूल रूप से ....... उत्तरप्रदेश...... से हूँ। 
     (I am basically from 
Uttar pradesh)


5) वर्तमाने अहम् …काशी... इति स्थाने निवसामि ।

वर्तमान समय में मैं ......... स्थान पर रह रहा हूँ।    
   (I live in ………………)


6) मम पितुः नाम.........अस्ति,  सः ...अध्यापकः... अस्ति।*

मेरे पिता जी का नाम ....... हैं, वह एक ...अध्यापक... हैं।   

(My Father’s name is .………. he is a Teacher)


7) मम मातुः नाम ............ अस्ति, सा ...गृहिणी... अस्ति। *
मेरी माता जी का नाम ............. है, वह एक ...गृहिणी...है। 

(My Mother’s name is ………… she is a HouseWife)


8) मम रुचिः .....अध्ययने, क्रीड़ने..... च अस्ति/ स्तः/ सन्ति।# 

मेरी रुचि ....पढ़ने, खेलने.... में है।   
(My hobbies are Studying & Playing)


9) अहम् ...प्राध्यापकः.... भवितुम् इच्छामि।* 

मैं .....प्राध्यापक..... बनना चाहता हूं।   
(I want to be a Professor)
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             * व्यवसाय: (Profession)-
1)  प्राध्यापकः = Professor,
2) व्याख्याता= Lecturer
3)  अध्यापकः/ अध्यापिका =Teacher,
4) अधिकारी = Officer;
5) अभियन्ता/ तंत्रज्ञः = Engineer;
6)  वैद्यः/ वैद्या= Doctor,
7)  न्यायवादी = lawyer,
8)  प्रबन्धकः= Manager,
9) वायुयान-चालकः=pilot,
10)  सैनिकः=police,
11) उट्टङ्ककः = Typist,
12)  लिपिकः = Clerk,
13) विक्रयिकः = Salesman;
14) व्यवसायिकः=Businessman,
15)  वैज्ञानिक:- scientist

16) क्रीडक: - Sports Player  

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                      # रुचि: (Hobbies)-

1) अध्ययने-Studying,
2)  पठने-Reading,
3) पाठने- Teaching,
4) गायने-Singing,
5) नृत्ये-Dancing,
6) क्रीडने-Playing,
7) तरणे-Swimming, 
8) चित्रनिर्माणे-Painting,
9) भ्रमणे-visiting,
10) शयने=Sleeping,
11) भोजने=Eating

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प्रहेलिका संस्कृतम्।

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प्रश्न:

केशवं पतितं दृष्ट्वा, पाण्डवाः हर्षनिर्भराः। 
रुदन्ति कौरवाः, सर्वे हा हा केशव केशव ।।

अर्थः

गिरे हुए केशव को देखकर पांडव हर्ष से भर गए, सभी कौरव हे केशव, हे केशव चिल्ला रहे थे।

उत्तर:
हम्म्म...., दिलचस्प परिदृश्य, है ना? पांडव आनन्द मना रहे हैं जबकि कोरव केशव के लिए विलाप कर रहे है ? !! लगभग ऐसा लगता है कि कवि ने शब्दों को रखने में गलती कर दी है!

(केशव भगवान कृष्ण के कई नामों में से एक है। उन्हें केशी नामक राक्षस को मारने के बाद ऐसा कहा जाता था।)

खेर, आइए यहां श्लोक में कुछ विशेष शब्द देखें- केशव को के शव के रूप में विभाजित किया जाए तो शव का अर्थ है के (कण का सातवा मामला) शब्द) पानी में शव केडेवर (शव) पानी में शव । पा अण्डवाः पा-पानी ।अण्डवा:- अण्डों से पैदा होने वाली, मछलियाँ अण्डों से पानी में पैदा होती है

कौर रवा

की भयानक रावः शोर मचाने वाले
भेड़िये / लोमड़ी भयानक रोने के साथ चिल्लाते हैं

अब इसका अर्थ यह हुआ कि

पानी में गिरे हुए शव को देखकर मछलियाँ खुशी से झूम उठीं। वह उनके लिए एक दावत थी) जबकि भेड़िये विलाप कर रहे थे क्योंकि उन्हें पानी में मृत शरीर का एक टुकड़ा नहीं मिल सका

ओह, अब यह अधिक समझ में आता है, है ना :)।

अगले पाठ तक, अभ्यास करके खुश!

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

संस्कृतप्रतिभासन्धानमण्डलस्तरीयप्रतियोगितायां छात्रा: पुरस्कृता: ।

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 संस्कृतप्रतिभासन्धानमण्डलस्तरीयप्रतियोगितायां महेशः प्रथमस्थानं प्राप्तवान्, नेहा, प्रज्ञा, ज्योतिः अपि बुद्धिं दर्शितवन्त:। 


उत्तरप्रदेश:।बांदा।संस्कृतप्रतिभासन्धानमण्डलस्तरीयप्रतियोगिता हमीरपुरे आयोजिता तत्र पंडित-जवाहरलाल-नेहरूइण्टरकॉलेज इत्यस्य छात्रा: सम्मानं प्राप्तवन्त:। हमीरपुरे उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानेन आयोजितायां संभागस्तरीयसंस्कृतप्रतिभासन्धानपरीक्षायां जे.एन.इण्टरकालेज विद्यालयस्य छात्रः महेशः प्रथमस्थानं प्राप्तवान्। नेहा, प्रज्ञा, ज्योतिः च उत्तमं पदं प्राप्तवन्तः । गिरवानस्य एताः आशाजनकाः बालिकाछात्राः हमीरपुरे सम्मानिताः। हमीरपुरमण्डलस्य भुवनेश्वरीसंस्कृतमहाविद्यालये सोमवासरे प्रतियोगितायाः आयोजनं कृतम्। तस्मिन् बाण्डा-चित्रकूट-महोबा-हमीरपुर-नगरेभ्यः छात्राः भागं गृहीतवन्तः।


प्राचार्य: श्रीमहेशद्विवेदी यस्य मार्गदर्शनेन विभागीयस्तरस्य संस्कृत-अन्वेषणपरीक्षा कृता। यस्मिन् छात्राः उत्कृष्टतां प्राप्तवन्तः। गिरवांनगरस्य तेजस्वी छात्राः प्रत्येकस्मिन् विषये तेजस्वी प्रदर्शनं कृतवन्तः। अष्टमकक्षायाः छात्रः महेशः विभागीयस्तरस्य संस्कृतपाठे प्रथमस्थानं प्राप्तवान् । संस्कृतगीतप्रतियोगितायां दशमश्रेणीयाः छात्रा प्रज्ञा विभागीयस्तरस्य तृतीयस्थानं प्राप्तवती तथा च संस्कृतसामान्यज्ञानप्रतियोगितायां १२ कक्षायाः छात्रा ज्योतिः, दशमश्रेणीयाः छात्रा नेहा च संयुक्तरूपेण द्वितीयस्थानं प्राप्य विद्यालये पुरस्कारं आनयत्। 


कार्यक्रमे विद्यालयस्य प्राचार्य श्रीसर्वेशद्विवेदिवर्य: तथा जिलाविद्यालयनिरीक्षकेण छात्रा: पुरस्कृतारभवन्। अमुष्मिन् समये दण्डाधिकारी श्रीनागेन्द्रनाथपाण्डेय:, उपजिलाधिकारी पवनकुमार:, सुनीलपाठक:, आशीषपालिवाल:, जिलाविद्यालयनिरीक्षक: कमलेशकुमारओझा: समुपस्थिता:। 
एतेषां पुण्यशीलानाम् छात्राणां सज्जीकरणे जे.एन.इण्टर महाविद्यालयस्य संस्कृतविभागस्य प्रवक्ता श्रीशिवपूजनत्रिपाठिमहाशयस्य इत्यस्य विशेषं योगदानम् आसीत् । पुरस्कारविजेता महाविद्यालये प्रत्यागतानां छात्राणां प्राचार्यः श्री गणेशद्विवेदी इत्यादयः शिक्षकाः बुधवासरे एकेन समारोहेण एतेषां पुण्यशालिनां छात्राणां सम्मानं करिष्यन्ति।

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

हेल्लो हेल्लो मास्तु

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हेल्लो हेल्लो मास्तु – हरि ओम् वदतु।
गुड मार्निंग मास्तु – सुप्रभातम् वदतु।।

गुड नाईट मास्तु – शुभ रात्रि वदतु।
माम डैड मास्तु – माता पिता वदतु।।

ब्रदर सिस्टर मास्तु- भ्राता भगिनी वदतु।
डोन्ट वरी मास्तु – चिन्ता मास्तु वदतु।।

सारी सारी मास्तु – क्षम्यतां वदतु।
टाटा बाय बाय मास्तु – पुनर्मिलामः वदतु।

थैंक्यू – थैंक्यू मास्तु – धन्यवादः वदतु।
हाय हेल्लो मास्तु – राम राम वदतु।।


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गुरुकुल में क्या पढ़ाया जाता था ??

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गुरुकुल में क्या पढ़ाया जाता था ??
यह जान लेना अति आवश्यक है।




◆ अग्नि विद्या ( metallergy )

◆ वायु विद्या ( flight ) 

◆ जल विद्या ( navigation ) 

◆ अंतरिक्ष विद्या ( space science ) 

◆ पृथ्वी विद्या ( environment )

◆ सूर्य विद्या ( solar study ) 

◆ चन्द्र व लोक विद्या ( lunar study ) 

◆ मेघ विद्या ( weather forecast ) 

◆ पदार्थ विद्युत विद्या ( battery ) 

◆ सौर ऊर्जा विद्या ( solar energy ) 

◆ दिन रात्रि विद्या ( day - night studies )

◆ सृष्टि विद्या ( space research ) 

◆ खगोल विद्या ( astronomy) 

◆ भूगोल विद्या (geography ) 

◆ काल विद्या ( time ) 

◆ भूगर्भ विद्या (geology and mining ) 

◆ रत्न व धातु विद्या ( gems and metals ) 

◆ आकर्षण विद्या ( gravity ) 

◆ प्रकाश विद्या ( solar energy ) 

◆ तार विद्या ( communication ) 

◆ विमान विद्या ( plane ) 

◆ जलयान विद्या ( water vessels ) 

◆ अग्नेय अस्त्र विद्या ( arms and amunition )

◆ जीव जंतु विज्ञान विद्या ( zoology botany ) 

◆ यज्ञ विद्या ( material Sc)

● वैदिक विज्ञान
( Vedic Science )

◆ वाणिज्य ( commerce ) 

◆ कृषि (Agriculture ) 

◆ पशुपालन ( animal husbandry ) 

◆ पक्षिपालन ( bird keeping ) 

◆ पशु प्रशिक्षण ( animal training ) 

◆ यान यन्त्रकार ( mechanics) 

◆ रथकार ( vehicle designing ) 

◆ रतन्कार ( gems ) 

◆ सुवर्णकार ( jewellery designing ) 

◆ वस्त्रकार ( textile) 

◆ कुम्भकार ( pottery) 

◆ लोहकार ( metallergy )

◆ तक्षक ( guarding )

◆ रंगसाज ( dying ) 

◆ आयुर्वेद ( Ayurveda )

◆ रज्जुकर ( logistics )

◆ वास्तुकार ( architect)

◆ पाकविद्या ( cooking )

◆ सारथ्य ( driving )

◆ नदी प्रबन्धक ( water management )

◆ सुचिकार ( data entry )

◆ गोशाला प्रबन्धक ( animal husbandry )

◆ उद्यान पाल ( horticulture )

◆ वन पाल ( horticulture )

◆ नापित ( paramedical )

इस प्रकार की विद्या गुरुकुल में दी जाती थीं।

इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला 
उस समय भारत में 732000 गुरुकुल थे।
खोजिए हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए ? 

और मंथन जरूर करें वेद ज्ञान विज्ञान को चमत्कार छूमंतर व मनघड़ंत कहानियों में कैसे बदला या बदलवाया गया। वेदों के नाम पर वेद विरुद्ध हिंदी रूपांतरण करके मिलावट की ।

अपरा विधा- भेाैतिक विज्ञान को व अपरा विधा आध्यात्मिक विज्ञान को कहा गया है। इन दोनों में १६ कलाओं का ज्ञान होता है।

तैत्तिरीयोपनिषद , भ्रगुवाल्ली अनुवादक ,५, मंत्र १, में ऋषि भ्रगु ने बताया है कि-

विज्ञान॑ ब्रहोति व्यजानात्। विज्ञानाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। विज्ञानेन जातानि जीवन्ति। विज्ञान॑ प्रयन्त्यभिस॑विशन्तीति।
 
अर्थ- तप के अनातर उन्होंने ( ऋषि ने) जाना कि वास्तव मैं विज्ञान से ही समस्त प्राणी उत्पन्न होते हैं। उत्पत्ति के बाद विज्ञान से ही जीवन जीते हैं। अंत में प्रायान करते हुए विज्ञान में ही प्रविष्ठ हो जाते हैं।

तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवादक ८, मंत्र ९ में लिखा है कि-

 विज्ञान॑ यज्ञ॑ तनुते। कर्माणि तनुतेऽपि च। विज्ञान॑ देवा: सर्वे। ब्रह्म ज्येष्ठमुपासते। विज्ञान॑ ब्रह्म चेद्वेद।

अर्थ- विज्ञान ही यज्ञों व कर्मों की वृद्धि करता है। सम्पूर्ण देवगण विज्ञान को ही  श्रेष्ठ ब्रह्म के रूप में उपासना करते हैं। जो विज्ञान को ब्रह्म स्वरूप में जानते हैं, उसी प्रकार से चिंतन में रत्त रहते हैं, तो वे  इसी शरीर से पापों से मुक्त होकर सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि प्राप्त करते हैं। उस विज्ञान मय देव के अंदर ही वह आत्मा ब्रह्म रूप है। उस  विज्ञान मय आत्मा से भिन्न उसके अन्तर्गत वह आत्मा ही ब्रह्म स्वरूप है।

( संसार के सभी जीव शिल्प विज्ञान के द्वारा ही जीवन यापन करते हैं।)

★ वेद ज्ञान है शिल्प विज्ञान है

त्रिनो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः। 
आ॒मान॑ श॒योर्ममि॑काय सू॒नवे त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती॥

ऋग्वेद (1.34.6)

हे (शुभस्पती) कल्याणकारक मनुष्यों के कर्मों की पालना करने और (अश्विना) विद्या की ज्योति को बढ़ानेवाले शिल्पि लोगो ! आप दोनों (नः) हम लोगों के लिये (अद्भ्यः) जलों से (दिव्यानि) विद्यादि उत्तम गुण प्रकाश करनेवाले (भेषजा) रसमय सोमादि ओषधियों को (त्रिः) तीनताप निवारणार्थ (दत्तम्) दीजिये (उ) और (पर्थिवानि) पृथिवी के विकार युक्त ओषधी (त्रिः) तीन प्रकार से दीजिये और (ममकाय) मेरे (सूनवे) औरस अथवा विद्यापुत्र के लिये (शंयोः) सुख तथा (ओमानम्) विद्या में प्रवेश और क्रिया के बोध करानेवाले रक्षणीय व्यवहार को (त्रिः) तीन बार कीजिये और (त्रिधातु) लोहा ताँबा पीतल इन तीन धातुओं के सहित भूजल और अन्तरिक्ष में जानेवाले (शर्म) गृहस्वरूप यान को मेरे पुत्र के लिये (त्रिः) तीन बार (वहतम्) पहुंचाइये ॥

भावार्थ- मनुष्यों को चाहिये कि जो जल और पृथिवी में उत्पन्न हुई रोग नष्ट करनेवाली औषधी हैं उनका एक दिन में तीन बार भोजन किया करें और अनेक धातुओं से युक्त काष्ठमय घर के समान यान को बना उसमें उत्तम २ जव आदि औषधी स्थापन कर देश देशांतरों में आना जाना करें।

विश्वकर्मा कुल श्रेष्ठो धर्मज्ञो वेद पारगः।
सामुद्र गणितानां च ज्योतिः शास्त्रस्त्र चैबहि।।
लोह पाषाण काष्ठानां इष्टकानां च संकले।
सूत्र प्रास्त्र क्रिया प्राज्ञो वास्तुविद्यादि पारगः।।
सुधानां चित्रकानां च विद्या चोषिठि ममगः।
वेदकर्मा सादचारः गुणवान सत्य वाचकः।। 

(शिल्प शास्त्र) अर्थववेद

भावार्थ – विश्वकर्मा वंश श्रेष्ठ हैं विश्वकर्मा वंशी धर्मज्ञ है, उन्हें वेदों का ज्ञान है। सामुद्र शास्त्र, गणित शास्त्र, ज्योतिष और भूगोल एवं खगोल शास्त्र में ये पारंगत है। एक शिल्पी लोह, पत्थर, काष्ठ, चान्दी, स्वर्ण आदि धातुओं से चित्र विचित्र वस्तुओं सुख साधनों की रचना करता है। वैदिक कर्मो में उन की आस्था है, सदाचार और सत्यभाषण उस की विशेषता है।

 यजुर्वेद के अध्याय २९ के मंत्र 58 के ऋषि जमदाग्नि है इसमे बार्हस्पत्य शिल्पो वैश्वदेव लिखा है। वैश्वदेव में सभी देव समाहित है।

शुल्वं यज्ञस्य साधनं शिल्पं रूपस्य साधनम् ॥

(वास्तुसूत्रोपनिषत्/चतुर्थः प्रपाठकः - ४.९ ॥)

अर्थात - शुल्ब सूत्र यज्ञ का साधन है तथा शिल्प कौशल उसके रूप का साधन है।

शिल्प और कुशलता में बहुत बड़ा अन्तर है ( एक शिल्प विद्या द्वारा किसी प्रारूप को बनाना और दूसरा कुशलता पूर्वक उसका उपयोग करना , ये दोनो अलग अलग है 

कुशलता 

जैसे शिल्प द्वारा निर्मित ओजारो से नाई कुशलता से कार्य करता है , शिल्पी द्वारा निर्मित यातायन के साधन को एक ड्राईवर कुशलता पूर्वक चलता है आदि 

सामान्यतः जिस कर्म के द्वारा विभिन्न पदार्थों को मिलाकर एक नवीन पदार्थ या स्वरूप तैयार किया जाता है उस कर्म को शिल्प कहते हैं । ( उणादि० पाद०३, सू०२८ ) किंतु विशेष रूप निम्नवत है

१- जो प्रतिरूप है उसको शिल्प कहते हैं "यद् वै प्रतिरुपं तच्छिल्पम" (शतपथ०- का०२/१/१५ ) 

२- अपने आप को शुद्ध करने वाले कर्म को शिल्प कहते हैं 

(क)"आत्मा संस्कृतिर्वै शिल्पानि: " (गोपथ०-उ०/६/७)

(ख) "आत्मा संस्कृतिर्वी शिल्पानि: " (ऐतरेय०-६/२७) 

३- देवताओं के चातुर्य को शिल्प कहकर सीखने का निर्देश है (यजुर्वेद ४ / ९, म० भा० )

 ४- शिल्प शब्द रूप तथा कर्म दोनों अर्थों में आया है -

(क)"कर्मनामसु च " (निघन्टु २ / १ )

(ख) शिल्पमिति रुप नाम सुपठितम्" (निरुक्त ३/७)

५ - शिल्प विद्या आजीविका का मुख्य साधन है। (मनुस्मृति १/६०, २/२४, व महाभारत १/६६/३३ )

६- शिल्प कर्म को यज्ञ कर्म कहा गया है।

( वाल्मि०रा०, १/१३/१६, व संस्कार विधि, स्वा० द० सरस्वती व स्कंद म०पु० नागर६/१३-१४ )

।।पांचाल_ब्राह्मण।।

शिल्पी ब्राह्मण नामान: पञ्चाला परि कीर्तिता:।
(शैवागम अध्याय-७)
अर्थात-पांच प्रकार के श्रेष्ठ शिल्पों के कर्ता होने से शिल्पी ब्राह्मणों का नाम पांचाल है।
 
पंचभि: शिल्पै:अलन्ति भूषयन्ति जगत् इति पञ्चाला:। (विश्वकर्म वंशीय ब्राह्मण व्यवस्था-भाग-३, पृष्ठ-७६-७७)
अर्थात- पांच प्रकार के शिल्पों से जगत को भूषित करने वाले शिल्पि ब्राह्मणों को पांचाल कहते हैं।

ब्रह्म विद्या ब्रह्म ज्ञान  (ब्रह्मा को जानने वाला) जो की चारो वेदों में प्रमाणित है जो वैदिक गुरुकुलो में शिक्षा दी जाती थी ये (metallergy) जिसे अग्नि विद्या या लौह विज्ञान (धातु कर्म) कहते है , ये वेदों में सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मकर्म ब्रह्मज्ञान है पृथ्वी के गर्भ से लौह निकालना और उसका चयन करना की किस लोहे से , या किस लोहे के स्वरूप से,  सुई से लेकर हवाई  जहाज, युद्ध पोत  जलयान, थलयान, इलेक्ट्रिक उपकरण , इलेक्ट्रॉनिक उपकरण , रक्षा करने के आधुनिक हथियार , कृषि के आधुनिक उपकरण , आधुनिक सीएनसी मशीन, सिविल इन्फ्रास्ट्रक्चर सब (metallergy) अग्नि विद्या ऊर्फ लोहा विज्ञान की देन है हमारे वैदिक ऋषि सब वैज्ञानिक कार्य करते थे वेदों में इन्हीं विश्वकर्मा शिल्पियों को ब्राह्मण की उपाधि मिली है जो वेद ज्ञान विज्ञान से ही संभव है चमत्कारों से नहीं वेद ज्ञान विज्ञान से राष्ट्र निर्माण होता है  पाखण्ड से नहीं, इसी को विज्ञान कहा गया है बिना शिल्प विज्ञान के हम सृष्टि विज्ञान की कल्पना भी नहीं कर सकते इसलिए सभी विज्ञानिंक कार्य इन्ही सुख साधनों से संभव है इसलिए वैदिक शिल्पी विश्वकर्मा ऋषियों द्वारा भारत की सनातन संस्कृति विश्वगुरु कहलाई
भगवान (विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों) ने अपने रचनात्मक कार्यों से इस ब्रह्मांड का प्रसार किया है। जो सभी वैदिक ग्रंथों में प्रमाणित है

अन्तरविषयसंशोधनार्थं नूतनाः सक्रियविषयाः ग्रहीतव्याः ये समाजाय उपयोगिनो भविष्यन्ति।

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अन्तरविषयसंशोधनार्थं नूतनाः सक्रियविषयाः ग्रहीतव्याः ये समाजाय उपयोगिनो भविष्यन्ति।

संगोष्ठी में पुस्तक का विमोचन करते हुए मञ्चस्थ अतिथिगण

जयपुरम्। राष्ट्रियशिक्षानीतिः २०२० विश्वस्य प्रतिष्ठितविश्वविद्यालयानाम् अग्रे देशस्य विश्वविद्यालयाः आनयिष्यन्ति। एतत् एव एपेक्स विश्वविद्यालयस्य संयुक्त आश्रयेण संजय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयेन ७-८ अक्टोबर् २०२३ दिनाङ्के आयोजितस्य अन्तर्राष्ट्रीयगोष्ठीयाः मुख्यातिथिः एआईसीटीई इत्यस्य सल्लाहकारः डॉ. ममता आर० अग्रवालः अवदत् यत् अस्माभिः अस्माकं छात्राणां कृते सज्जीकरणस्य आवश्यकता वर्तते आगामिनां ६० वर्षाणां आव्हानानि। सज्जतां कर्तुं। अस्य द्विदिवसीयस्य अन्तर्राष्ट्रीयगोष्ठ्याः विषयः आसीत् अन्तरविषयसंलयनं आरक्षस्य भविष्यं नेविगेट् करणं संगोष्ठ्याः उद्घाटनं एपेक्स विश्वविद्यालयस्य निदेशकः वेदशु जुनिवालः, कुलपतिः डॉ. ओ.पी. छंगनी, रजिस्ट्रार डॉ. पंकज कुमारशर्मा, महाविद्यालयप्राचार्या सुनीताभार्गव: सहितं दीपप्रज्वलनसमये महाविद्यालयस्य प्राध्यापकः डॉ. रतनकुमार भारद्वाजः आह्वानं कृत्वा भारतीयसंस्कृतेः मूर्तरूपं दत्तवान्। तेनोक्तं यत् महाविद्यालये संस्कृतसंवर्धनाय अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रमपि सञ्चाल्यते तत्र अधिकाधिकशोधार्थिन: भवन्तु। अस्मिन् द्विदिवसीय-अन्तर्राष्ट्रीय-गोष्ठ्यां भारत-विदेशयोः शिक्षाविदः भागं गृहीतवन्तः । संगोष्ठ्याः उद्घाटनसत्रे विशेषातिथिः एमिटी विश्वविद्यालयस्य कुलपतिः प्रो. अमित जैन इत्यनेन उक्तं यत् अन्तरविषयसंशोधनार्थं नूतनाः सक्रियविषयाः ग्रहीतव्याः ये समाजाय उपयोगिनो भविष्यन्ति।गोष्ठ्याः विशेषातिथिः, न्यायविदः तथा कुलपतिः डॉ अमित कुमार जैन वदति यत् जीवनस्य एतादृशविषयेषु चर्चा भविष्यति। देशस्य समग्रविकासे संस्कृत विषये शोधस्य महती भूमिका भविष्यति।

 M.N.I.T. जयपुरस्य सहायकप्रोफेसर डॉ. इमैनुएल शुभाकर-पिल्लई इत्यनेन उक्तं यत् शोधकाले सर्वाधिकं समस्या अस्ति यत् जनाः स्वज्ञानक्षेत्रात् परं न गच्छन्ति। अनुसन्धानं सर्वदा नवीनतायाः, सटीकतायाश्च आरम्भः भवति । जलाशयः परिवर्तनस्य अनुकूलतां प्राप्तुं समर्थः भवितुमर्हति । वरिष्ठ शोधार्थी प्रो. गौतमः अवदत् यत् स्वस्य व्यक्तिगतं व्यावसायिकं च अहङ्कारं दूरीकृत्य एव शोधं कर्तुं शक्यते। सः अवदत् यत् छात्राणां समीचीनदिशि नेतुम् विशेषज्ञतायाः, अनुमोदनस्य, सहानुभूतेः च आवश्यकता वर्तते।फोर बिजनेस स्कूलस्य मुख्यकार्यकारी देवेन्द्र पाठकः अवदत् यत् भारते २०१७ तः २०२२ पर्यन्तं द्विकोटि: शोधं प्राप्तं किन्तु शोधस्य गुणवत्ता तावत् न अस्ति । सः इत्थमपि अपि अवदत् यत् संस्कृत विषये शोधकार्यं कुर्वतां जनानां संख्या अस्माकं विश्वविद्यालये न्यूना भवति। ते समाजस्य समस्यानां समाधानार्थं द्वयोः भिन्नयोः कार्यक्षेत्रयोः मिलित्वा कार्यं कर्तव्यं भविष्यति इति उक्तवान्, यथा चन्द्रयानस्य सफलता अपि सम्भवति स्म यतोहि तस्मिन् वैज्ञानिकाः अभियंताः च मिलित्वा कार्यं कृतवन्तः। 

अस्मिन् द्विदिनात्मके संगोष्ठ्यां तकनीकी-अन्तर्विषय-संलयनविषये विविधाः विषयविशेषज्ञाः सर्वेभ्यः प्रतिभागिभ्यः स्वविचारैः लाभान्विताः अभवन् । अस्मिन् द्विदिनात्मके अन्तर्राष्ट्रीयगोष्ठीयां प्रायः ६० शोधपत्राणि पठितानि आसन् ।