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सोमवार, 25 मार्च 2024

कादम्बरी की कथा

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कादंबरी की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है।

विदिशा नगरी के राजा थे शुद्रक,जो अत्यंत प्रतापी और कलाविद् थे ।एक दिन प्रातः वे अपनी राज्यसभा में बैठे थे तभी प्रतिहारी ने आदेश प्राप्त कर एक चांडाल कन्या को सभा में प्रवेश कराया । चांडाल कन्या के हाथ में सोने का पिंजरा था ,जिसमें वैशंपायन नाम का शुक था। शुक़ ने अपना दाहिना चरण उठाकर श्लोक द्वारा राजा का अभिवादन किया।
शुक द्वारा राजा शूद्रक के समक्ष कथा का आरंभ - इस शुक के विषय में राजा को महान कौतूहल हुआ और चांडाल कन्या तथा शुक के भोजन एवं विश्राम कर लेने को कहा। शुक ने अपनी कथा सुनाई और बताया कि वह विंध्याटवी में अपने वृद्ध पिता के साथ रहता था ,एक बहेलिए ने अन्य शुकों के साथ उसके पिता का वध कर दिया और नीचे फेक दिया।पिता के पंखों के भीतर छिपकर वह भी नीचे गिरा, किन्तु बच गया।

अपने प्राण बचाने के लिए वह झाड़ियों में छिप गया और बहालिए के जाने के बाद उस मार्ग से जाने वाले ऋषिकुमार हारित उसे दयावश अपने साथ ले कर महर्षि जबिल के आश्रम आये। जाबिल ने अपने शिष्यों को शुक के पूर्व जन्म की कथा कुछ इस प्रकार सुनाई।

जाबिल द्वारा आश्रम के शिष्यों के समक्ष शुक के पूर्वजन्म तथा चंद्रापीड की कथा सुनाना -

उज्जैनी में तारा पीड नाम के राजा थे। उनकी महारानी का नाम विलास्वती था। राजा के महामंत्री का नाम शुकनास और महामंत्री की पत्नी का नाम मनोरमा था।

बहुत दिनों की पूजा अर्चना के बाद राजा तरापीड को पुत्र की प्राप्ति हुई और उसी दिन शूकनास के यहां भी

एक पुत्र ने जन्म लिया ।राजा के पुत्र का नाम चंद्रापी़ड तथा शुखनास के पुत्र का नाम वैशंपायन रखा गया।

दोनों ने साथ साथ गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। चंदरापीड के गुरुकुल से लौटने पर पिता तारापीड ने उसका युवराजयाभिषेक किया। इस अवसर के पूर्व चंद्रापीड मंत्री शुकनास के पास गया और शुकनास ने एक सारगर्भित उपदेश दिया,जो शुकनासोपदेश नाम से प्रसिद्ध है।अभिषेक के बाद चंद्रापीड दिग्विजय यात्रा पर निकला। अनेक राजाओं को परास्त कर वह हिमालय के निकट विश्राम करने के लिए रुका। एक दिन शिकार खेलने के लिए निकलने पर उसने किन्नर

मिथुन को देखा और उत्सुकता वश उनका पीछा करते हुए बहुत दूर निकल गया।किन्नर मिथुन अदृश्य हो गए ,तब जल की खोज में वह अच्छोद सरोवर के पास पहुंचा। वहां जल पीकर अपने अश्व को बांधकर विश्राम करने लगा तभी उसे वीणा की ध्वनि सुनाई पड़ी, जिसकी खोज करते हुए उसने सरोवर के तट पर स्थित शिव के मंदिर में वीणा बजाकर स्तुति करती हुई एक युवती को देखा।उसे देखकर वह चकित हुआ। युवती उसे अपने आश्रम में ले गई और उसने फल आदि से चंद्रापीड का सत्कार किया। चंद्रापीद के आदरपूर्वक प्रश्न करने पर उस युवती ने, जिसका नाम महाश्वेता था, अपनी कथा इस प्रकार सुनाई।



महाश्वेता द्वारा अपनी कथा सुनाना -

महाश्वेता ने बताया कि वह गंधर्व राज हंस तथा गौरी नाम की अप्सरा की पुत्री हैं।एक दिन वह माता के साथ सरोवर पर अाई तो उसे पुष्प की अद्भुत गन्ध मिली तब उसने एक ऋषिकुमार को देखा जिनके कान के ऊपर अद्भुत गन्ध वाला पुष्प था। साक्षात्कार होते ही दोनों एक दूसरे की ओर प्रेम से आकृष्ट हो गए। ऋषिकुमार का नाम पुंडरीक था। उसके साथ उसका मित्र कपिंजल था। महाश्वेता पुंडरीक से पुष्प लेकर अपने भवन चली आयी, किन्तु पुंडरीक उसके विरह में अतिशय संतप्त हो उठे ।कपिंजल ने महाश्वेता से मिलकर आग्रह किया कि अविलंब पुंडरीक से मिलकर उसके प्राणों को बचा लीजिए।रात्रि को जब उपयुक्त समय देखकर महाश्वेता सरोवर के पास पहुंची तब तक पुंडरीक के जीवन का अंत हो चुका था। महाश्वेता पुंडरीक के शरीर से लिपट कर विलाप करने लगी। उसी समय चंद्रमंडल से एक दिव्य पुरुष निकला और पुंडरीक के शव को लेकर आकाश में चला गया। जाते - जाते उसने महाश्वेता से कहा इससे तुम्हारा अवश्य मिलन होगा। तब से महाश्वेता अपने प्रियतम से मिलने की आशा में भगवान शिव की आराधना में लगी हुई है।



कादंबरी की कथा-

रात्रि में विश्राम के समय महाश्वेता ने चंद्रापीड से अपनी सखी कादंबरी के विषय में बताया कि कादंबरी के विषय में बताया कि कादंबरी गंधर्वराज चित्ररथ की पुत्री है और अपने माता-पिता के बार - बार कहने पर भी विवाह के लिए सहमत नहीं हो रही है। दूसरे दिन महाश्वेता चंद्रापीड को साथ लेकर कादम्बरी से मिलने चली गई। वहां चंद्रापीड को साथ लेकर कादंबरी से मिलने गई। वहां चंद्रापीड और कादंबरी में बातें हुई और वे परस्पर प्रगाढ़ प्रेमबंधन में बन्ध गए।
   कादंबरी से मिलकर वापस महाश्वेता की कुटी में आने पर चंद्रपीड को अपनी सेना मिली और पिता का पत्र मिला, जिसमें उसे तत्काल राजधानी बुलाया गया था। चंद्रापीड ने अपनी पानवाली पत्रलेखा को कादंबरी के पास भेजा और स्वयं राजधानी की ओर चला गया। कुछ दिन बाद पत्रलेखा जब लौटकर राजधानी पहुंची तो उसने चंद्रापीड से कादंबरी की विरहदशा का वर्णन किया।

चंद्रापीड को उसी समय यह सूचना मिली कि उसका मित्र वैशंपायन जो महामंत्री शुकनास का पुत्र था अच्छोद सरोवर में स्नान करने के बाद वहां से लौटना नहीं चाहता, वह वहीं पागल की तरह कुछ ढूंढ़ रहा है।

चंद्रापीड उसे वापस ले आने के लिए चल पड़ा।जब वह महाश्वेता की कुटी में पहुंचा तो उसे रोते हुए पाया। महाश्वेता ने बताया कि एक ब्राह्मण युवक उसके पास आकर प्रणय निवेदन करने लगा, जिस पर कुपित हो कर उसने उसे शुक बनने का शाप दे दिया। वह शुक बन गया तब उसे पता चला कि वह चंद्रपीड का मित्र वैसंपायन था। अपने मित्र से बिछुरने और कादंबरी से मिलने की संभावना होने की दु:ख में चंद्रापीड भी तत्काल निर्जीव होकर भूमि पर गिर पड़ा। उधर कादंबरी यह सुनकर की चंद्रापीड महाश्वेता की कुटी में आए हैं बड़ी आशा से मिलने के लिए अायी, किन्तु उसे उसका शव ही मिला। परम दु:ख से व्यथित होकर वह सती होने के लिए उद्यत हुई, किन्तु एक आकाशवाणी ने उसे आश्वस्त किया कि उसका चंद्रापीड से मिलन होगा। वह चंद्रापीड के मृत शरीर की रखवाली करने लगी। उसी समय पत्रलेखा चंद्रापीड के अश्व को लेकर सरोवर में कूद गई। कुछ समय बाद सरोवर में से एक ब्राह्मण युवक निकला, जो पुंडरीक का मित्र कपिञ्जल था। उसने महाश्वेता को बताया कि पुंडरीक पृथ्वी पर वैसम्पायन शुक के नाम से उत्पन्न हुआ है और वह भी एक ऋषि के शाप से इंद्रायुध नाम का आश्व बन गया था। उसी ने महाश्वेता से यह भी बताया कि उसने जिसे शुक बन जाने शाप दिया था वो और कोई नहीं पुंडरीक था, तब महाश्वेता छाती पीट-पीट कर रोने लगी। कपिञ्जल ने उसे अश्वासन दिया कि अब उसके दुखों का अंत निकट है और वह स्वयं आकाश में चला गया। अपने पुत्रों के मृत्यु का समाचार जानकर राजा तारापीद, महारानी विलास्वाती और महामंत्री ‍‍शुकनास

और उनकी पत्नी मनोरमा भी उस स्थान पर आए। तारपीड वहीं तपस्या में लग गए। मूर्छित कादंबरी होश में आई और चंद्रापीड के शरीर की सेवा में लग गई।



शुक का राजा शुद्रक़ से अपने विषय में बताया -

राजा शुद्रक के समीप चांडालकन्या द्वारा लाए गए शुक ने राजा से अपने विषय में आगे की कथा इस प्रकार बताई - महर्षि जाबिल ने जब अपने शिष्यों को मुझसे संबद्ध जा कथा सुनाई उसे मुझे अपना पूर्वजन्म स्मरण हो आया और मुझे यह ज्ञात हो गया कि मैं ही महामंत्री शुकनास का पुत्र वैशंपायन हूं। जब मेरे पंख निकल आए तब मैं अपने मित्र चंद्रापीड को ढूंढने निकला, किन्तु चांडाल द्वारा पकड़ लिया गया।



चांडाल कन्या द्वारा कथा को पूरी करना -

इसके बाद चांडाल कन्या ने राजा को बताया कि राजा को बताया कि राजा शुद्रक ही चंद्रापीड है। वह स्वयं लक्ष्मी है और वैशंपायन उसका पुत्र है। राजा शुद्रक को अपना पूर्व जन्म याद हो आया। उधर महाश्वेता की कुटी में वसंत छा गया और कादंबरी ने जैसे ही चंद्रापीड के शरीर का आलिंगन किया वह ऐसे जीवित हो उठा जैसे नींद से जागा हो। उसी समय शूद्रक ने भी अपना शरीर त्याग दिया। महाश्वेता की कुटी में कुछ ही क्षण में पुंडरीक अपने मुनिकुमार वाले रूप में प्रकट हुआ और उसका महाश्वेता से मिलन हो गया। सर्वत्र आनंद छा गया।

                     इस प्रकार इस कथा का नायक है चंद्रापीड और नायिका है कादंबरी। सहनायक और सहनायिका हैं - पुंडरीक और महाश्वेता। यह तीन जन्मों को मिली जुली कहानी है,जिसका अधिकांश भाग शुक द्वारा महर्षि ज़ाबिल की कथा के अनुसार शुद्रक से कहा जाता है।

                कादंबरी के आरंभ में बाण ने बीस पद्यों में मंगलाचरण सज्जन की प्रशंसा और दुर्जन की निन्दा, अपने वंश के पूर्वजों का आलंकारिक एवं मनोरम वर्णन, तथा कथा के गुणों का उल्लेख किया है। चंद्रापीड की तांबूल करक वाहिनी पत्रलेखा, जो चंद्रापीड के चले आने पर भी कादंबरी के पास रह गई थी, लौटकर चंद्रापीड की राजधानी आती है इस वर्णन के साथ ही कादंबरी कथा का पूर्वभाग समाप्त होता है। 





शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

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प्रेसविज्ञप्तिः संस्कृतम् - १४.१॰.२॰२३ वार्ताहरः आचार्यदीनदयालशुक्लः



विभागीयस्तरस्य संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

बाँदा। अद्य दिनाङ्के १४.१॰. प्रातः ११: वादने जिलाविद्यालयनिरीक्षकः बांदा श्रीविजयपालसिंद्वारा  गिरवांनगरस्थस्य पंडितजवाहरलालनेहरूइण्टरकॉलेज इत्यस्य विद्यालयस्य आकस्मिकनिरीक्षणं विहितम्।


विद्यालये सर्वं सुष्ठु स्वस्थं च प्राप्य विद्यालयस्य प्राचार्यगणेशद्विवेदीमहोदयेन सह सर्वैः शिक्षकैः सह च अस्मिन् शैक्षणिकोन्नयनगोष्ठीयाम् उत्थानसभायां च संस्कृतप्रतिभासन्धानपरीक्षायै उपस्थिताः विद्यालयस्य छात्राः जिलास्तरस्य ध्वजरोहणस्य अनन्तरं, हमीरपुरस्य भुवनेश्वरीमहाविद्यालये संभागीयस्तरस्य आयोजने आयोजितायां प्रतियोगितायां राज्यस्तरस्य चयनितस्य छात्रस्य महेशस्य विद्यालयस्य नामे गौरवम् आनयितुं ट्राफी, प्रमाणपत्रं च सम्मानितं तथा विभागीयस्तरीय पर द्वितीय तृतीय स्थान पर स्थित छात्र ज्योति, नेहा, प्रज्ञा च ट्राफी प्रमाणपत्राणि च दत्तानि।


सभायां संस्कृतविषयस्य प्रवक्ता शिवपूजन त्रिपाठीमहोदयः तथा च छात्रान् राज्यस्तरं प्रति प्रेषयित्वा छात्रान् प्रकाशं कृतवान् इति व्यक्तिः सम्बोधितवान् तथा च जिलाविद्यालयनिरीक्षकेन शिक्षकान् छात्रान् च अभिनन्दनं कृत्वा तेषां उज्ज्वलभविष्यस्य कामना कृता समारोहस्य संचालनं श्रीअखिलेशशुक्लद्वारा सम्पादितम्।


विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनेन सह संस्कृतस्य अध्ययनमपि आवश्यकम् :

sanskritpravah प्रेसविज्ञप्ति: संस्कृतम् १३/१०/२०२३



 केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य  उद्घाटने कुलपति:प्रो.शशिकुमारः प्रावोचत्!

प्रेषक: आचार्यदीनदयालशुक्ल:


नवदेहली- विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनं कुर्वतां छात्राणां कृते अपि संस्कृतस्य अध्ययनं महत्त्वपूर्णम् अस्ति । संस्कृतविषये ज्ञानं कृत्वा एव वयं विज्ञानप्रौद्योगिक्यां नूतनसंशोधनं कर्तुं शक्नुमः, यतः अस्माकं प्राचीनग्रन्थेषु संस्कृतभाषायां विस्तृतानि वस्तूनि पूर्वमेव उपलभ्यन्ते। एतत् कुलपतिः प्रो.शशिकुमारधीमानः केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य,नवदेहलीनगरस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य द्वितीयशैक्षणिकसत्रस्य उद्घाटनसमये हिमाचलप्रदेशतकनीकीविश्वविद्यालये, हमीरपुरे उक्तवान्। 

कुलपतिः अवदत् यत् भारतस्य सर्वा: भाषाः संस्कृतात् उत्पन्नाः। राष्ट्रियशिक्षानीत्याः अन्तर्गतं भारतस्य सर्वासु भाषासु प्रचारार्थं कार्यं क्रियते । कुलपतिः सर्वान् छात्रान् संस्कृताध्ययनार्थम् आहूतवान्। तस्मिन् एव काले  शैक्षणिक-अधिष्ठाता केन्द्राधिकारी च प्रो० जय देवेनोक्तं यत् अस्मिन् सत्रे कक्ष्या: ऑनलाइन-आफलाइन-इत्यत्र च संचालिताः भविष्यन्ति। अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रे ३१ अक्टोबर् पर्यन्तं प्रवेशार्थम् आनलाइन् आवेदनं कर्तुं शक्नुवन्ति। अस्मिन् अवसरे तकनीकीविश्वविद्यालयस्य प्राध्यापकाः, छात्राश्च उपस्थिताः आसन्।

नौरास्थ राजकीय महाविद्यालयस्य प्राचार्यः मुख्यातिथिरूपेण समुपस्थिता:  डॉ. राजेशशर्म महाभागेनोक्तं यत् संस्कृतं प्रत्येकस्मिन् व्यक्तिषु वर्तते। अद्यत्वेऽपि संस्कृतं जन्मतः मृत्युपर्यन्तं मनुष्यस्य संस्कारैः सह सम्बद्धम् अस्ति । तथापि वयं संस्कृतं व्यवहारे न स्थापयामः, यस्मात् कारणात् अद्यत्वे अपि संस्कृतस्य जागरणार्थं प्रयत्नाः करणीयाः भवन्ति। १६ शती पर्यन्तं भारते सर्वं संस्कृतभाषायां आसीत्, तदनन्तरं बहुकारणात् भारते संस्कृतस्य महत्त्वं न्यूनीकृतम्, परन्तु अद्य पुनः एकवारं संस्कृतस्य उत्थानाय प्रयत्नाः क्रियन्ते।

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

समाचारपत्रम्

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विश्वस्य वृत्तान्त: समाचारपत्रम् ११ अक्टोबर २०२३



मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

संस्कृतप्रतिभासन्धानमण्डलस्तरीयप्रतियोगितायां छात्रा: पुरस्कृता: ।

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 संस्कृतप्रतिभासन्धानमण्डलस्तरीयप्रतियोगितायां महेशः प्रथमस्थानं प्राप्तवान्, नेहा, प्रज्ञा, ज्योतिः अपि बुद्धिं दर्शितवन्त:। 


उत्तरप्रदेश:।बांदा।संस्कृतप्रतिभासन्धानमण्डलस्तरीयप्रतियोगिता हमीरपुरे आयोजिता तत्र पंडित-जवाहरलाल-नेहरूइण्टरकॉलेज इत्यस्य छात्रा: सम्मानं प्राप्तवन्त:। हमीरपुरे उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानेन आयोजितायां संभागस्तरीयसंस्कृतप्रतिभासन्धानपरीक्षायां जे.एन.इण्टरकालेज विद्यालयस्य छात्रः महेशः प्रथमस्थानं प्राप्तवान्। नेहा, प्रज्ञा, ज्योतिः च उत्तमं पदं प्राप्तवन्तः । गिरवानस्य एताः आशाजनकाः बालिकाछात्राः हमीरपुरे सम्मानिताः। हमीरपुरमण्डलस्य भुवनेश्वरीसंस्कृतमहाविद्यालये सोमवासरे प्रतियोगितायाः आयोजनं कृतम्। तस्मिन् बाण्डा-चित्रकूट-महोबा-हमीरपुर-नगरेभ्यः छात्राः भागं गृहीतवन्तः।


प्राचार्य: श्रीमहेशद्विवेदी यस्य मार्गदर्शनेन विभागीयस्तरस्य संस्कृत-अन्वेषणपरीक्षा कृता। यस्मिन् छात्राः उत्कृष्टतां प्राप्तवन्तः। गिरवांनगरस्य तेजस्वी छात्राः प्रत्येकस्मिन् विषये तेजस्वी प्रदर्शनं कृतवन्तः। अष्टमकक्षायाः छात्रः महेशः विभागीयस्तरस्य संस्कृतपाठे प्रथमस्थानं प्राप्तवान् । संस्कृतगीतप्रतियोगितायां दशमश्रेणीयाः छात्रा प्रज्ञा विभागीयस्तरस्य तृतीयस्थानं प्राप्तवती तथा च संस्कृतसामान्यज्ञानप्रतियोगितायां १२ कक्षायाः छात्रा ज्योतिः, दशमश्रेणीयाः छात्रा नेहा च संयुक्तरूपेण द्वितीयस्थानं प्राप्य विद्यालये पुरस्कारं आनयत्। 


कार्यक्रमे विद्यालयस्य प्राचार्य श्रीसर्वेशद्विवेदिवर्य: तथा जिलाविद्यालयनिरीक्षकेण छात्रा: पुरस्कृतारभवन्। अमुष्मिन् समये दण्डाधिकारी श्रीनागेन्द्रनाथपाण्डेय:, उपजिलाधिकारी पवनकुमार:, सुनीलपाठक:, आशीषपालिवाल:, जिलाविद्यालयनिरीक्षक: कमलेशकुमारओझा: समुपस्थिता:। 
एतेषां पुण्यशीलानाम् छात्राणां सज्जीकरणे जे.एन.इण्टर महाविद्यालयस्य संस्कृतविभागस्य प्रवक्ता श्रीशिवपूजनत्रिपाठिमहाशयस्य इत्यस्य विशेषं योगदानम् आसीत् । पुरस्कारविजेता महाविद्यालये प्रत्यागतानां छात्राणां प्राचार्यः श्री गणेशद्विवेदी इत्यादयः शिक्षकाः बुधवासरे एकेन समारोहेण एतेषां पुण्यशालिनां छात्राणां सम्मानं करिष्यन्ति।

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

अन्तरविषयसंशोधनार्थं नूतनाः सक्रियविषयाः ग्रहीतव्याः ये समाजाय उपयोगिनो भविष्यन्ति।

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अन्तरविषयसंशोधनार्थं नूतनाः सक्रियविषयाः ग्रहीतव्याः ये समाजाय उपयोगिनो भविष्यन्ति।

संगोष्ठी में पुस्तक का विमोचन करते हुए मञ्चस्थ अतिथिगण

जयपुरम्। राष्ट्रियशिक्षानीतिः २०२० विश्वस्य प्रतिष्ठितविश्वविद्यालयानाम् अग्रे देशस्य विश्वविद्यालयाः आनयिष्यन्ति। एतत् एव एपेक्स विश्वविद्यालयस्य संयुक्त आश्रयेण संजय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयेन ७-८ अक्टोबर् २०२३ दिनाङ्के आयोजितस्य अन्तर्राष्ट्रीयगोष्ठीयाः मुख्यातिथिः एआईसीटीई इत्यस्य सल्लाहकारः डॉ. ममता आर० अग्रवालः अवदत् यत् अस्माभिः अस्माकं छात्राणां कृते सज्जीकरणस्य आवश्यकता वर्तते आगामिनां ६० वर्षाणां आव्हानानि। सज्जतां कर्तुं। अस्य द्विदिवसीयस्य अन्तर्राष्ट्रीयगोष्ठ्याः विषयः आसीत् अन्तरविषयसंलयनं आरक्षस्य भविष्यं नेविगेट् करणं संगोष्ठ्याः उद्घाटनं एपेक्स विश्वविद्यालयस्य निदेशकः वेदशु जुनिवालः, कुलपतिः डॉ. ओ.पी. छंगनी, रजिस्ट्रार डॉ. पंकज कुमारशर्मा, महाविद्यालयप्राचार्या सुनीताभार्गव: सहितं दीपप्रज्वलनसमये महाविद्यालयस्य प्राध्यापकः डॉ. रतनकुमार भारद्वाजः आह्वानं कृत्वा भारतीयसंस्कृतेः मूर्तरूपं दत्तवान्। तेनोक्तं यत् महाविद्यालये संस्कृतसंवर्धनाय अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रमपि सञ्चाल्यते तत्र अधिकाधिकशोधार्थिन: भवन्तु। अस्मिन् द्विदिवसीय-अन्तर्राष्ट्रीय-गोष्ठ्यां भारत-विदेशयोः शिक्षाविदः भागं गृहीतवन्तः । संगोष्ठ्याः उद्घाटनसत्रे विशेषातिथिः एमिटी विश्वविद्यालयस्य कुलपतिः प्रो. अमित जैन इत्यनेन उक्तं यत् अन्तरविषयसंशोधनार्थं नूतनाः सक्रियविषयाः ग्रहीतव्याः ये समाजाय उपयोगिनो भविष्यन्ति।गोष्ठ्याः विशेषातिथिः, न्यायविदः तथा कुलपतिः डॉ अमित कुमार जैन वदति यत् जीवनस्य एतादृशविषयेषु चर्चा भविष्यति। देशस्य समग्रविकासे संस्कृत विषये शोधस्य महती भूमिका भविष्यति।

 M.N.I.T. जयपुरस्य सहायकप्रोफेसर डॉ. इमैनुएल शुभाकर-पिल्लई इत्यनेन उक्तं यत् शोधकाले सर्वाधिकं समस्या अस्ति यत् जनाः स्वज्ञानक्षेत्रात् परं न गच्छन्ति। अनुसन्धानं सर्वदा नवीनतायाः, सटीकतायाश्च आरम्भः भवति । जलाशयः परिवर्तनस्य अनुकूलतां प्राप्तुं समर्थः भवितुमर्हति । वरिष्ठ शोधार्थी प्रो. गौतमः अवदत् यत् स्वस्य व्यक्तिगतं व्यावसायिकं च अहङ्कारं दूरीकृत्य एव शोधं कर्तुं शक्यते। सः अवदत् यत् छात्राणां समीचीनदिशि नेतुम् विशेषज्ञतायाः, अनुमोदनस्य, सहानुभूतेः च आवश्यकता वर्तते।फोर बिजनेस स्कूलस्य मुख्यकार्यकारी देवेन्द्र पाठकः अवदत् यत् भारते २०१७ तः २०२२ पर्यन्तं द्विकोटि: शोधं प्राप्तं किन्तु शोधस्य गुणवत्ता तावत् न अस्ति । सः इत्थमपि अपि अवदत् यत् संस्कृत विषये शोधकार्यं कुर्वतां जनानां संख्या अस्माकं विश्वविद्यालये न्यूना भवति। ते समाजस्य समस्यानां समाधानार्थं द्वयोः भिन्नयोः कार्यक्षेत्रयोः मिलित्वा कार्यं कर्तव्यं भविष्यति इति उक्तवान्, यथा चन्द्रयानस्य सफलता अपि सम्भवति स्म यतोहि तस्मिन् वैज्ञानिकाः अभियंताः च मिलित्वा कार्यं कृतवन्तः। 

अस्मिन् द्विदिनात्मके संगोष्ठ्यां तकनीकी-अन्तर्विषय-संलयनविषये विविधाः विषयविशेषज्ञाः सर्वेभ्यः प्रतिभागिभ्यः स्वविचारैः लाभान्विताः अभवन् । अस्मिन् द्विदिनात्मके अन्तर्राष्ट्रीयगोष्ठीयां प्रायः ६० शोधपत्राणि पठितानि आसन् ।

शनिवार, 18 मार्च 2023

बौद्धिकसत्रम्

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सोमवार, 13 मार्च 2023

वृत्ति- प्राप्त्यौ चरित्रनिर्माणार्थमस्माकं ध्यानमकेन्द्रितमस्ति - दीनदयालशुक्लः

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-आचार्यदीनदयालशुक्लः

कानपुर । भारतीयत्वस्य मूलमिदं संस्कृतम् अस्ति। वृत्ति- प्राप्त्यौ चरित्रनिर्माणार्थमस्माकं ध्यानमकेन्द्रितमस्ति । दुष्परिणामोऽस्य वर्तमानेऽनुभवं कर्तुं शक्नुमः। संस्कृतभाषाविषयका: बहव्यः विशेषता: अप्युक्तास्सन्ति। सरलसंस्कृतसंभाषणद्वारा संस्कृतव्याकरणे प्रवेश:, संस्कृतव्याकरणद्वारा संस्कृतग्रन्थेषु , संस्कृतग्रन्थान् पठित्वा भारतीयसंस्कृतिं ज्ञानविज्ञानपरम्परां विज्ञाय अभ्यासव्यवहारयोः आनीय अस्माभिः निर्वहणीयम् । एतदर्थं जागरुकतया संस्कृतसम्भाषणं करणीयम् । मानवहिताय काचित् भाषास्ति चेत् तत् संस्कृतम् , एतत्विचारान् स्वजीवने अङ्गीकृतस्य उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानाध्यक्षस्य डॉ. वाचस्पतिमिश्रमहोदयस्य सानिध्ये ऑनलाइनसंस्कृतसम्भाषणशिक्षणस्य कक्षा: सञ्चाल्यन्ते।

उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानस्य प्रथम/द्वितीयस्तरस्य कक्षासु बालका: न केवलं धाराप्रवाह: संस्कृतसम्भाषणं कुर्वन्ति अपितु ते सर्वेऽपि आचरणं व्यवहारञ्चापि कुर्वन्ति । आसु कक्ष्यासु ते नियमितं समुपस्थिताः भवन्ति। संस्कृतसमुपासकाः तथा वाग्देव्याराधनेकृतसङ्कल्पवता संस्कृतं पठित्वा ज्ञात्वा च स्वस्य व्यवहारे आनयन्ति। येन तेषु संस्कार: व्यवहार: कृतज्ञता, समयपालनं च आगच्छति । एत्तर्थं जना: उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानं संस्कारदायकं संस्थानम् अपि वदन्ति ।

अस्य प्रत्यक्षप्रमाणं वयं संस्कृतभाषाशिक्षणस्य ऑनलाइनकक्ष्यासु दृष्टुं शक्नुमः । प्रत्येकस्मिन् मासे एकं सत्रं प्रचलति । इदं सत्रम् अस्य अगस्तमासस्य तृतीयदिनाङ्कतः अगस्तमासस्य षड्विंशतिदिनाङ्कपर्यन्तं भविष्यति। प्रतिदिनं सायंकाले अष्टवादने प्रशिक्षकेण दीनदयालशुक्लेन सञ्चालित ऑनलाइनकक्षायां (Online Google Meet द्वारा) प्रवेशं कुर्वन्ति । अनन्तरं सरस्वतीवन्दना ध्येयमन्त्र: च भवति । ते मिलित्वा एव स्वस्य अभ्यासं कुर्वन्ति । शान्तिमन्त्रात् परं प्रश्नसत्रं भवति।

अस्मिन् सत्रे आहत्य पञ्चाशताधिका: छात्रा: उपस्थिता: भवन्ति। संस्थानस्य निदेशकः आइएएस पवन कुमारः, अध्यक्षः डॉ वाचस्पति मिश्रः, प्रशासनिकः अधिकारी दिनेश मिश्रः, सर्वेक्षिका डॉ चन्द्रकला शाक्या, इत्यादीनां मार्गदर्शनं कक्ष्यासु भवति। ये एतां नि:शुल्क-कक्षामागन्तुकामा: ते “sanskritsambhashan.com” इति लिंक् उद्घाट्य तत्र स्वानुकूलतया मासं समयं च चीत्वा स्वस्य नामांकनं कारयितुं शक्नुवन्ति। परीक्षायाम् उत्तीर्णवद्भ्य: शिक्षार्थिभ्य: प्रमाणपत्राणि अपि दूरवाणीसन्देशमाध्यम्न प्रेषणव्यवस्था अस्ति। ये द्वितीयस्तराय स्वस्य नि:शुल्कं नामांकनं कर्तुमिच्छन्ति तेभ्य: नामांकानलिंक् “https://sanskritsambhashan.com/secondlevelreg.php“इत्यस्ति। शीघ्रमेव पञ्जीकरणं कुर्वन्तु ।





https://sanskritvarta.in/2022/08/10/uttar-pradesh-sanskrit-institute-spreads-sanskrit-even-abroad-deendayal-shukla/

बुधवार, 8 मार्च 2023

संस्कृतं किमर्थम् आवश्यकम् ?

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संस्कृतं किमर्थम् आवश्यकम् ? केन वा सरल-प्रकारेण एतत् शिक्षितुं शक्यते?
                                    ...    डॉ.बलदेवानन्द-सागरः
      
संस्कृत-विषये कश्चन मां पृच्छति यत् किमर्थं संस्कृतम् आवश्यकम् ? अथवा साम्प्रतम् एकविंशे शताब्दे संस्कृतस्य किं नाम उपयोगित्वम्? तदा अहन्तु इदमेव उत्तरामि यत् यथा जीवनार्थं जलं श्वसनं चावश्यके भवतः तद्वदेव अस्माकं भारतीयानां सनातन-वैदिक-धर्मावलम्बिनां च कृते संस्कृतानुसरणं संस्कृताङ्गीकरणं संस्कृतावलम्बनं चावश्यकम् |
      विषयेsस्मिन् नात्र मम कश्चन दुराग्रहः | अहन्तु अनुभवाधारेण वदामि | आकाशवाण्यां दूरदर्शने च संस्कृत-वार्ता-प्रसारणनिरते एतावति ४५-वर्षावधिके काले अनेके तादृशाः अनुभवाः अभवन् यत् नाहं संस्कृत-वार्ता-प्रसारकः अभविष्यं चेत् ममास्तित्वमेव नाभविष्यत् | ‘अस्माकं भारतीयानां सनातन-वैदिक-धर्मावलम्बिनां च कृते संस्कृतानुसरणं...’ इत्यत्र ‘सनातन-वैदिक-धर्मावलम्बिनां’ इति शब्दाः साशयं लिखिताः सन्ति |
      कश्चन एवमपि प्रष्टुं शक्नोति यत् किं ये भारतीयाः न सन्ति वा वैदिक-सनातन-धर्मावलम्बिनो नैव भवन्ति, किं ते जीवितुं वा श्वसितुं वा नैव शक्नुवन्ति? अवश्यम्, नात्र कश्चन सन्देह-लेशोsस्ति | परन्तु येन विधिना वयं भरत-वंशिनः आर्य-श्रेष्ठाः देवपूज्याः जगद्गुरु-पदवी-धारिणः च सन्तः सम्पूर्ण-जगतः शुभाकाङ्क्षिणः च भवन्तः सुदीर्घ-काल-पर्यन्तां विश्वजनीन-यात्रां वा लोक-लोकोत्तर-यात्रां विहितवन्तः, तदेव वैशिष्ट्यम् अस्मदीयम् | अत एव अस्माकं भारतीयानां सनातन-वैदिक-धर्मावलम्बिनां च कृते संस्कृतानुसरणं संस्कृताङ्गीकरणं संस्कृतावलम्बनं चावश्यकम् |
इतोऽपि अनेकानि अपराणि कारणानि सन्ति यानि अस्मान् तथ्यमिदं दृढतया स्वीकर्तुं प्रेरयन्ति यत् संस्कृतं विना अस्माकम् इतरत् प्रेयः श्रेयः  चाभिज्ञानं नैवास्ति |
      नात्र केवलं संस्कृत-महिम्नो गानम् अभीष्टं मम | अहन्तु केवलं निजानुभवाधारेण विवच्मि | जगति साम्प्रतं स्फुटमिदं तथ्यं यत् महर्षेः पतञ्जलेः अष्टाङ्ग-योगाभ्यासः सर्वेषामपि लाभाय कल्पते, तद्वद् आयुर्वेदानुसरणं समेषामपि कृते लाभप्रदम् | भवेद्वा सः भारतीयो वा भारतीया आहोस्वित् वैदेशिको वा वैदेशिकी | सर्वेषामपि कृते संस्कृताध्ययनं योगायुर्वेदवदेव परमं लाभप्रदम् |
       

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                               -   डॉ.बलदेवानन्दसागरः 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

आत्मानं न जानाति यो न जानाति संस्कृतम् आचार्यदीनदयालशुक्ल:

 वार्ताहरः - आचार्यदीनदयालशुक्ल:

२०/०२/२०२३

https://sanskritvarta.in/2023/02/20/there-are-many-opportunities-in-sanskrit-dr-madan-kumar-jhavarya/

आत्मानं न जानाति यो न जानाति संस्कृतम् आचार्यदीनदयालशुक्ल:


भारतीया संस्कृतिः विश्वस्य सर्वासु संस्कृतिषु प्राचीना श्रेष्ठा प्रेष्ठा च इति सर्वैः विद्वद्भिः स्वीक्रियते । संस्कृतिः मानव-अन्तःकरणस्य अज्ञानं दूरीकरोति, चित्तभ्रममपहरति, ज्ञानलोकं प्रकाशयति च तस्य मूलं संस्कृतम् एव भवति अतः तादृशं लक्ष्यं मनसि निधाय संस्कृतस्य रक्षणाय सम्वर्धनाय उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानद्वारा सञ्चालितभाषाशिक्षणकक्षान्तर्गतं बौद्धिकसत्रस्य आयोजनं कृतम्।अस्य सत्रस्य शुभारम्भः मङ्लाचरणद्वारा अभवत्। अतिथीनां परिचयः कार्यशालावृत्तकथनसत्रं च संयोजकेन प्रशिक्षकेण दीनदयालशुक्लवर्येण कृतम्। संस्थानस्य रूपरेखां व्यक्तिकुर्वन् तेन भणितं यत् संस्थानस्य स्थापना दिसम्बरमासस्य ३१ दिनाङ्के १९७६ तमे वर्षेऽभूत्। तदारभ्य संस्थानमिदं संस्कृतभाषां प्रति निरन्तरप्रयासरतेन विकासाय प्रयत्नशीलो वर्तते। प्रतिमासं ०३ तः ०४ सहस्रछात्र-छात्राः संस्कृतभाषां शिक्षन्तः सन्ति। अनेन सह वर्तमानाभाषाविषयकीं योजनामपि प्रस्तुतवान्।  अवसेऽस्मिन् प्रतिभागिभिः अनुभवकथनं मुकुलकौशिकेन तथा चोत्तरीयामेरिकातः लक्ष्मीः एवञ्च मलेशियातः बाबूराम तथा पार्वती आशीषत्रिपाठी गीता शर्मादयोऽपि स्व-स्वानुभवकथनमकथयन्। कार्यक्रमेऽस्मिन् मुख्यवक्तृरूपेण  सहायकाचार्येण डॉ ० मदनकुमारझावर्येण संस्कृतभाषायाः उपादेयता प्रकाशिता।  सहैव वर्तमानसमये संस्कृतभाषाक्षेत्रे समुपलब्धावसरेभ्यः परिचयं कारितवान्। संस्कृतभाषा न केवलं कर्मकाण्डभाषा अपितु सर्वस्मिन् क्षेत्रे संस्कृतस्योपादेयता वर्तते इति तेन निगदितम्। तेनोदारितं यत् जनाः संस्कृतेन सर्वक्षेत्रेषु वृत्तिं प्राप्तुं  शक्यन्ते।अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा । आदौ वेदमयी दिव्या यत: सर्वा: प्रवृत्तय: तथा मानवस्य श्रेष्ठप्रवृत्तीनां सन्तुलनं भवति तथा आचारस्य पवित्रतायाः व्यवहाराणाम् उत्कृष्टतायाः च सम्यक् ज्ञानं भवति सा संस्कृतिः । अतः एवोक्तं मनुना – एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवः ।(मनुस्मृतिः) इत्यादिद्युदाहरणै: प्रबोधितम्। मध्ये च दिव्यासाहनी द्वारा संस्कृतगीतं प्रस्तुतम्।  मुख्यवक्त्रा कथितं यत् विना संस्कृतज्ञानेन भारतविषये वयं ज्ञातुमेव न शक्नुमः।संस्कृतं संस्कृतेर्मूलं ज्ञान-विज्ञानवारिध्ः ।

वेदतत्त्वार्थसंजुष्टं लोकालोककरं शिवम् ॥

अतः वक्तुं शक्यते यत् संस्कृतिः संस्कृतम् अनयोर्मध्ये घनिष्ठतरः सम्बन्धः अस्ति । संस्कृतेः संरक्षणाय संस्कृतभाषा अनिवार्या । अस्माकं सभ्यता-संस्कृतिश्च संस्कृतग्रन्थेष्वेव दरीदृश्यते । संस्कृतेन सह संस्कृतेः सम्बन्धः यदि विच्छिन्नः भवति, तर्हि भारतीयसंस्कृतेः संरक्षणं न भवत्येव ।  अतः सर्वैः मिलित्वा संस्कृतभाषा पठनीया पाठनीया तथा च चहुदिक्षु प्रचारणीया प्रसारणीया च।कार्यक्रमेऽस्मिन्नुत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थाननिदेशवर्यः विनयकुमारश्रीवास्तवः समस्तप्रतिभागीनां प्रशंसां कुर्वन् अकथयत् यत् संस्कृतशिक्षणयोजनेयं सर्वदा नैरन्तर्येण गतिशीला भविष्यति। अवसरेऽस्मिन् प्रशासनिकाधिकारी डॉ दिनेशमिश्रः, सर्वेक्षिका चन्द्रकला शाक्य एवं प्रशिक्षणप्रमुखः सुधिष्ठकुमारमिश्रः, प्रशिक्षणसमन्वयकः धीरजमैठाणी, समन्वयिका राधाशर्मादयः समुपस्थिताः आसन्।

निशुल्कं विदेशेषीयेभ्यः अपि संस्कृतं पाठयति संस्कृतशिक्षकः

 वार्ताहरः - डॉ.अरुणेशकुमारपाण्डेयः  २२/०२/२०२३  



 निशुल्कं विदेशेषीयेभ्यः अपि संस्कृतं पाठयति संस्कृतशिक्षकः।



भारतीयत्वस्य मूलमिदं संस्कृतम् अस्ति। वृत्ति- प्राप्त्यौ चरित्रनिर्माणार्थमस्माकं ध्यानमकेन्द्रितमस्ति। दुष्परिणामोऽस्य वर्तमानेऽनुभवं कर्तुं शक्नुमः। संस्कृतभाषाविषयका: बहव्यः विशेषता: अप्युक्तास्सन्ति। सरलसंस्कृतसंभाषणद्वारा संस्कृतव्याकरणे प्रवेश:, संस्कृतव्याकरणद्वारा संस्कृतग्रन्थेषु , संस्कृतग्रन्थान् पठित्वा भारतीयसंस्कृतिं ज्ञानविज्ञानपरम्परां विज्ञाय अभ्यासव्यवहारयोः आनीय अस्माभिः निर्वहणीयम् । एतदर्थं जागरुकतया संस्कृतसम्भाषणं करणीयम् । मानवहिताय काचित् भाषास्ति चेत् तत् संस्कृतम् इति एतत्विचारान् तथा दृढ़सङ्कलपं स्वजीवने अङ्गीकृत्य काश्याः संस्कृतशिक्षिका दीनदयालशुक्लवर्यः ऑनलाइनसंस्कृतसम्भाषणशिक्षणस्य कक्षा: सञ्चाल्यन्ते। मूलतः एषः महोदयः उत्तरप्रदेशतः अस्ति तथा संस्कृतविषयमधिकृत्य अनेन काशीहिन्दूविश्वविद्यालयतः संस्कृतविषये परास्नातकं सम्पादितम्। संस्कृतभारतीद्वारा अपि नैकाः कक्ष्या चालयित्वा जनान् संस्कृतं पाठयति। आसु कक्षासु सर्वे न केवलं धाराप्रवाह: संस्कृतसम्भाषणं कुर्वन्ति अपितु ते सर्वेऽपि आचरणं व्यवहारञ्चापि कुर्वन्ति । कक्ष्यासु ते वैदेशिकाः नियमितं समुपस्थिताः भवन्ति। संस्कृतसमुपासकाः तथा वाग्देव्याराधनेकृतसङ्कल्पवता संस्कृतं पठित्वा ज्ञात्वा च स्वस्य व्यवहारे आनयन्ति। येन तेषु संस्कार: व्यवहार: कृतज्ञता, समयपालनं च आगच्छति । एत्तर्थं जना: उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थानं संस्कारदायकं संस्थानम् अपि वदन्ति । अस्य प्रत्यक्षप्रमाणं वयं संस्कृतभाषाशिक्षणस्य ऑनलाइनकक्ष्यासु दृष्टुं शक्नुमः । प्रत्येकस्मिन् सप्ताहे सत्रत्रयं प्रचलति । इदं सत्रम् अस्य फरवरीमासस्य प्रथमदिनाङ्कतः मार्चमासस्य प्रथमदिनाङ्कपर्यन्तं भविष्यति। प्रतिदिनं सायंकाले अष्टवादने सञ्चालित ऑनलाइनकक्षायां (Online Google Meet द्वारा) प्रवेशं कुर्वन्ति । अनन्तरं सरस्वतीवन्दना, ध्येयमन्त्र: च कृत्वा धार्मिकमन्त्राणां पाठं कुर्वन्ति भवति । मिलित्वा एव स्वस्य अभ्यासं तथा भारतीयपरम्पराणाम् अध्ययनं कुर्वन्ति । शान्तिमन्त्रात् परं प्रश्नसत्रमपि आयोजिता भवति। अस्मिन् सत्रे आहत्य पञ्चाशताधिका: वैदेशिकाः उपस्थिता: भवन्ति।

सोमवार, 2 जनवरी 2023

शीतकालीनशिविरम्


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