शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

प्रसंग

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व्यास जी ने एक स्थान पर कहा...

 'बलवान् इन्द्रियग्रामः विद्वांसमपि कर्षति।' 

             व्यास जी के शिष्य जैमिनि इससे सहमत नहीं हुए। वे विद्वान थे। अपने को इन्द्रियजयी समझते थे। इन्द्रियों का समुदाय विद्वान् को कैसे अपनी ओर खींचता है ? यह वे समझ नहीं पा रहे थे। इसलिये व्यास वाक्य पर अंगुली उठाना उनके लिये स्वाभाविक था। वे इस वाक्य की सत्यता का प्रमाण चाहते थे। समय बीता। कालान्तर में जौमिनि अपनी कुटी में बैठे थे। अरण्य का एकान्त था। वे विचार मग्न थे। इतने में आकाश में बादल घिर आये। शीतल वायु का संचार होने लगा। वर्षा की बूँदें गिरने लगीं। वे देखते हैं- एक युवती कुटी के बाहर खड़ी भीग रही है। वह सलज्ज एवं संकुचित है। उसकी अंग कान्ति विद्युताभ सदृश है। दैहिक आभा मण्डल हिरण्यवर्ण है। अनिन्द्य देह सौष्ठव एवं विमल सौन्दर्य से युक्त उसका रूप माधुर्य आह्लादकारी है। जैमिनि ने उसे कुटी में आने के लिये कहा। वह आयी और इसके लिये मुनि (जैमिनि) को धन्यवाद देते हुए आभार व्यक्त किया। शर्करा समान मीठी वाणी युवती के मुख से निकल कर मुनि के कर्ण कुहरों में गई। वह पद्मिनी थी। उसके शरीर से निकलती हुई पद्म की सुगन्ध ने मुनि के प्राण प्रदेश को अधिकार में लिया। उसकी अनिन्द्य रूप राशि की छटा ने मुनि के नेत्रों में आकर डेरा जमाया। मुनि अपने चक्षु चषक से रूप की मदिरा का पान करने लगे। इसका परिणाम क्या हुआ ? नेत्रों के मार्ग से कामदेव ने जैमिनी के तन मन की गुहा में प्रवेश किया। जैमिनी धर्मात्मा महापुरुष थे। इसलिये उन्होंने उस युवती के साथ एकान्त का लाभ लेते हुए रति हेतु बल का प्रयोग नहीं किया। उन्होंने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। उसने एक शर्त रखी शर्त क्या थी ?

जो पुरुष नीचे झुक कर घोड़ा बन कर मुझे अपनी पीठ पर बिठा कर अग्नि की सात प्रदक्षिणा करेगा तथा साथ ही साथ प्रत्येक प्रदक्षिणा के पूरा होने पर ऊपर देख कर गधे के समान शब्द करेगा / रेंकेगा, उसके साथ मेरा विवाह होगा। जैमिनि ने शर्त मान लिया, यह सोच कर कि यहाँ आश्रम में मेरे अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति नहीं है; अतः मेरा घोड़ा बनना तथा गधे की तरह रेंकरना न देखेगा, न सुनेगा, विवाह हो जायेगा। इसे कोई जान नहीं पायेगा। यह सुन्दरी मेरी भोग्या पत्नी बन कर मुझे सुख देती रहेगी। वह युवती प्रसन्न हुई। उसने जैमिनि से अग्नि जलाने को कहा। अग्नि प्रज्ज्वलित हुई। जैमिनि घोड़ा बने। युवती ने जैमिनि की पीठ पर सवारी की। अग्नि की प्रदक्षिणा प्रारंभ हुई। प्रत्येक प्रदक्षिणा के अन्त में जैमिनि ऊपर मुख कर के उस युवती को देख कर गधे की तरह रेंकते थे। अंतिम प्रदक्षिणा के अन्त में जब वे गधे की ध्वनि करने के लिये ऊपर मुँह किये तो उन्होंने अपनी पीठ पर श्वेत दाढ़ी वाले कृष्णकाय व्यास जी को बैठे देखा। जैमिनी को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह सब उनके गुरु व्यासजी का खेल उन्हें सत्य से अवगत कराने के लिये था।

जैमिनि ने व्यास को प्रणाम किया और मान लिया कि- 'बलवान् इन्द्रियग्रामः विद्वांसमपि कर्षति' निरपेक्ष सत्य है। इस कथा से यह निष्कर्ष निकलता है कि काम प्रबलतम है। इससे परे कोई जीव नहीं है। चाहे वह देव हो, दानव हो वा मानव हो। जो कोई जीव अपने को इससे ऊपर समझता है और कामजयी होने का दर्प धारण करता है, उसकी वही दशा होती है, जो जैमिनि की हुई नारद की हुई। इस अमित। शक्ति काम को मैं प्रणाम करता हूँ। काम भगवान् विष्णु का नाम है। विष्णु अविनाशी है। इसलिये काम भी अविनाशी है। विष्णु अजेय है तो काम भी अजेय है। काम को कोई जीत नहीं सकता। काम सबको जीतता है। यह सभी प्राणियों में उन्माद के रूप में प्रकट होता है। व्यास वाक्य है...

 'यतः सर्वे प्रसूयन्ते ह्मनङ्गत्माङ्गदेहिनः ।

 उन्मादः सर्वभूतानां तस्मै कामात्मने नमः ।।' 
(महाभारत शान्तिपर्व भीष्मस्तवराज- ५१)

जिस अनंग की प्रेरणा से अंगधारी प्राणियों का जन्म होता है, जिससे समस्त जीव उन्मत्त हो उठते हैं, उस काम के रूप में प्रकट हुए परमेश्वर को नमस्कार । काम उलूखल तथा चक्षु मुसल है। उलूखल में रख कर मुसल मार-मार कर धान को कूटा जाता है। ऐसे ही आँखों से बार-बार देखते रहने से हृदयस्थ काम जागृत होता है। यह मंत्र है...

 (१) 'चक्षुर्मुसलं काम उलूखलम् ।' ( अथर्व. ११ । ३ । ३)

 काम की ब्रह्मण्यता को इस मन्त्र में दिखाया गया है

 (२) ''कोऽदात्कस्मा अदात्कामोऽदात्कामायादात् ।

 कामो दाता कामः प्रतिगृहीता कामैतत्ते ॥" ( यजुर्वेद ७ । ४८)

 कः अदात् कस्मा अदात् कामः अदात् कामाय अदात् ।
 कामः दाता कामः प्रतिग्रहीता काम एतत् ते ॥

 कौन देता है ? किसके लिये देता है ? काम देता है। काम के लिये देता है। काम देने वाला दाता है। काम लेने वाला प्रतिगृहीता (आदाता) है। हे काम ! तुम्हारे लिये यह सब (जगत् व्यापार) है।

 (३) कामो जज्ञे प्रथमो नैनं देवा आपुः पितरो न मर्त्याः ।

 ततस्त्वमसि ज्यायान् विश्वहा महांस्तस्मै ते काम नम इत् कृणोमि ॥ ( अथर्व ९ । २ । १९ )

कामः प्रथमः जज्ञे = काम सर्वप्रथम प्रकट हुआ।

 एनम् न देवाः आपः न पितरः न मर्त्याः = इसे न देवों ने प्राप्त किया जान पाया न पितरों ने और न मर्त्यों ने। 

ततः त्वम् ज्यायान् विश्वहा महान् असि= इसलिये तू (काम) ज्येष्ठ है, सब का संहार करने वाला है तथा महान् है।

काम ! तस्मै ते नमः इत् कृणोमि= हे काम । उस तेरे लिये (प्रति) ही नमस्कार करता हूँ । काम साक्षात् रुद्र है। यह मन्त्र है ...

 (४) 'जहि त्वं काम मम ये सपत्ना अन्धा तमांस्यव पदयैनान्' -(अथर्व. ९ । २ । १०)

 काम ! त्वम् जहि ये मम सपनाः = हे काम । तू मार डालो, जो मेरे सपन (विरोधी) हैं, उन्हें ।

 अन्या (नि) तमांसि अव पादय एनान् = अन्धा कर देने वाले अन्धकार/ अज्ञान जो हैं, उन्हें अवपादित (नीचे गिरा दो।

" काम ज्येष्ठा इह मादयध्वम् ।' (अथर्व. ९ । २ । ८)

 हे ज्येष्ठ काम । इस लोक (जीवन) में मुझे आनन्दित करो।

 इससे स्पष्ट है; काम आनन्द का उत्स है, आनन्द निर्झर है, सुख का सागर है, हर्षायतन है। वेद में काम देवता है। इसके अषि ब्रह्मा हैं। 

अथकामसूक्तः ।

 (क)
 'कामस्तदग्रे समवर्तत मनसो रेतः प्रथमं यदासीत् । 

स काम कामेन बृहता सयोनी रायस्पोषं यजमानाय धेहि ॥ १ ॥ ' ( अथर्व १९ । ५२ । १)

 तद् कामः अग्रे समवर्तत = वह काम (ब्रह्म) सर्वप्रथम प्रकट हुआ।

 मनसः यद् प्रथमं आसीत् (स) रेतः = (उस काम के) मन (मनन करने) से जो प्रथम अस्तित्व में आया, वह रेत (बीज) था।

 सः काम ! बृहता कामेन = वह तू हे काम ! बृहत् काम (महेच्छा) के द्वारा।

 यजमानाय धेहि = यजमान (यज्ञकर्ता) को प्रदान कर। 

सयोनी = सयोनि (सशरीर) हो कर, देह धारण कर।

 रायः पोष = धन एवं अन्न वा सम्पत्ति एवं पुष्टि । 

(ख)
 'त्वं काम सहसासि प्रतिष्ठितो विभुर्विभावा सख आ सखीयते।

 त्वमुग्रः पृतनासु सासहिः सह ओजो यजमानाय धेहि ॥ २ ॥ (अथर्व १९ । ५२ । २ )

काम ! त्वं सहसा प्रतिष्ठितः असि हे काम । तू अपने नैसर्गिक बल से (सर्वत्र) प्रतिष्ठित (व्याप्त) है।

 (त्वं) विभुः विभावा (न्) हे काम । तू व्यापक है और दीप्तिमन्त है। 

 (त्व) सख =तू अपने में आकाशयुक्त हो भीतर से रिक्त हो। तुझ में सब कुछ गटकने/ लीलने की सामर्थ्य है। [ ख आकाश] |

 (वं) आ सखीयते तू अपने को सर्वत्र आकाशवत् व्यापक किये हुए हो अर्थात् तू सर्वत्र हो। विद्यमान हो। 

 त्वम् उग्रः = तुम उम्र (तीक्ष्ण) हो वा सबको विचलित करने वाले हो।

पृतनासु सासहिः= युद्ध में पराजित करने वाले हो अर्थात् महावीर हो ।

सहः ओजः यजमानाय धेहि = बल और ओज यजमान को दो।

 काम का आवेश होने पर जीव का बल बढ़ जाता है। उसमें ओज (उष्मा) का संचार होता है। ये गुण सूर्य रश्मि में होते हैं। किरणें उम्र होती हैं तथा पूतना (अन्धकार की राशि) का विनाश करती हैं। 
अन्धकार = आलस्य (तमोमयता जड़ता)। 

स गतौ सासहिः = चली जाती है। 

अर्थात् काम का आवेश होने पर जीव का आलस्य भाग जाता है। वह उत्साहयुक्त हो कर क्रिया में प्रवृत्त होता है।

 (ग)
 यत् काम कामयमाना इदं कृण्मसि ते हविः ।

 तन्नः सर्वं समृध्यतामथैतस्य हविषो वीहि स्वाहा ।।' ( अथर्व १९ । ५२ । ५)

काम ! यत् कामायमानाः =हे काम जिस फल की कामना करते हुए।

 इदं हविः ते कृण्मसि = यह हवि (आहुति) तेरे लिये हम देते हैं। 

तत् सर्वं नः समृध्यताम् = वह हवि सम्पूर्ण रूप से हमारे लिये समृद्धि लाये ।

 अथ एतस्य हविषः= इसलिये (अब) इस हविष को । 

वीहि= तू प्राप्त कर भक्षण कर वी भक्ष्यार्थक लोट् म. पु. एक व. । 

स्वाहा = हमारी यह आहुति तेरे लिये ही समर्पित है। सु + आहेति ।

 काम से ही व्यक्ति क्रिया में प्रवृत्त होता है। समस्त क्रियाएँ काम की प्रतिफल हैं। काम न होता तो क्रिया वा यह सृष्टि न होती। मनु का कथन है...

 'अकामस्य क्रिया काचित् दृश्यते नेह कर्हिचित्। '(मनुस्मृति २ । ४)

 काम के बिना कोई भी क्रिया दृष्टिगोचर नहीं होती। यह काम अनन्त है, अपार है। जैसे काम का अन्त नहीं है, वैसे समुद्र का अन्त नहीं है। समुद्र = आकाश

 आकाश की अनन्तता के सदृश काम का विस्तार है। आकाश का पार पाना शक्य नहीं। इसलिये काम के पार जाना सम्भव नहीं। कहते हैं...

 'समुद्र इव हि कामः नैव हि कामस्यान्तोऽस्ति न समुद्रस्य ।' (तैत्तिरीय ब्राह्मण २।२।५)

 उपनिषद् कहता है...

 'अथो खल्वाहुः काममय एवायं पुरुष इति ।

 स यथा कामो भवति तत्क्रतुर्भवति ।

 यत्क्रतुर्भवति तत् कर्म कुरुते ।

 यत् कर्म कुरूते तदभिसम्पद्यते ।" ( बृहदारण्यक उपनिषद् ४ । ४५)

 ऐसा कहा जाता है कि यह पुरुष काममय है। इसका जैसा काम होता है वैसा हो इसका विचार होता है । है। जैसा विचार होता है वैसा ही वह कर्म करता है। जैसा कर्म करता है, तदनुसार फल प्राप्त करता है। व्यास जी कहते हैं...

'नास्ति नासीत् नाभविष्यद् भूतं कामात्मकात् परम् । ( महाभारत शान्तिपर्व १६७ । ३४)

 ऐसा कोई प्राणी नहीं है, न था और न होगा जो काम से परे हो। अर्थात् सभी जन कामी हैं। कामिने नमः ।

 तत्त्वतः काम है क्या ? 

काम त्रिवर्णात्मक है...

क, अ, म ।क + अ+ म= काम।

 कम् पद प्रजापति का पर्याय है। इसमें श्रुति प्रमाण है। 

१. प्रजापति कः - (ऐतरेय ब्राह्मण अध्याय १० खण्ड ६)
 निश्चय ही प्रजापति क है। 

२. को वै नाम प्रजापतिः । - (ऐतरेय ब्राह्मण अध्याय १२ खण्ड १० )
क नाम निश्चय ही प्रजापति का है। 

३. ततो वै को नाम प्रजापतिरभवत्।( ऐत. बा. १२।१०)

 अकार ब्रह्मवाचक, वाग्पति है। इसमें भी श्रुति प्रमाण है।

३.१. अकारो वै सर्वावाक् । -( ऐतरेय ब्राह्मण २ । ३।६।)

 अ वर्ण निश्चय ही विश्ववाकु है।

 २.२. अ इति ब्रह्म । -( ऐतरेय ब्राह्मण २। ३।८। )
अ स्वर ब्रह्म (व्यापक तत्व) है। 

३.३. अक्षराणां अकारोऽस्मि । -(भगवद्रीतोपनिषद् १० ।३३ )

कृष्ण भगवान कहते हैं कि मैं अक्षरों में अकार (अ वर्ण) हूँ। कृष्ण स्वयं प्रजापति हैं। इसलिये वर्ण अभी प्रजापति हुआ। ममा माने माति + क सर्व पूज्य नाम म काल, शिव, विष्णु, ब्रह्म, यम ।

 इससे सिद्ध हुआ-काम परमेश्वर वाचक शब्द है। जो सब कुछ है, सर्व समर्थ है, सर्व नियन्ता है वह यही काम है। यह काम देवता है, अदेह है तथा व्यापक है। इस कामदेव को मैं स्वबुद्धि से बारम्बार प्रणाम करता हूँ।

 स्त्री और पुरुष के बीच प्रवाहित होने वाली अदृश्य विद्युत् का नाम काम है। यह काम इन दोनों को अभिमुख होने के लिये उन्हें उन्मत्त करता है, देखने के लिये प्रमत्त करता है, वार्ता के लिये विमत्त करता है। यह काम उन्हें परस्पर मिलने के लिये क्षुब्ध करता है, स्पर्श के लिये आन्दोलित करता है। यह काम उन्हें आलिंगन पाश में बाँधता है तथा सहवास की अग्नि में पकाता है। यह काम दोनों का पारस्परिक संगम कराकर आनन्द व चरम सुख की त्रिवेणी बहाता है। इस त्रिवेणी में तीनों ताप तर जाते हैं। ये दोनों एक दूसरे की काया से रिसते मधु का आस्वादन करते हैं, नव पंखुड़ियों का अवदंशन करते हैं, मकरंदित यष्टि का परिरम्भन करते हैं, सौन्दर्यतार का संस्पर्शन करते हैं तथा सुगन्धित मन का अवलम्बन लेते हैं। काम का यह आचार इन दोनों के लिये सहज श्रान्तिहर है, सुखकर है तथा चित्तबद्धकर है।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

बेताल पच्चीसी-बाईसवीं कहानी

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शेर बनाने का अपराध किसने किया? ... (बेताल पच्चीसी-बाईसवीं कहानी)




कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे। लड़कों के सयाने होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये। लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए। यह सोच करके चारों चार दिशाओं में चल दिये।

कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर मिले। एक ने कहा, "मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।" दूसरे ने कहा, "मैं उसके खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ।" तीसरे ने कहा, "मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ।" चौथा बोला, "मैं उसमें जान डाल सकता हूँ।"

फिर वे अपनी विद्या की परीक्षा लेने जंगल में गये। वहाँ उन्हें एक मरे शेर की हड्डियाँ मिलीं। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया। एक ने माँस डाला, दूसरे ने खाल और बाल पैदा किये, तीसरे ने सारे अंग बनाये और चौथे ने उसमें प्राण डाल दिये। शेर जीवित हो उठा और सबको खा गया।

यह कथा सुनाकर बेताल बोला, "हे राजा, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?"

राजा ने कहा, "जिसने प्राण डाले उसने, क्योंकि बाकी तीन को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे हैं। इसलिए उनका कोई दोष नहीं है।"
यह सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा जाकर फिर उसे लाया। रास्ते में बेताल ने एक नयी कहानी सुनायी।

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा? ... (बेताल पच्चीसी-तेईसवीं कहानी)

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योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा? ... (बेताल पच्चीसी-तेईसवीं कहानी)




कलिंग देश में शोभावती नाम का एक नगर था। उसमें राजा प्रद्युम्न राज करता था। उसी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था, जिसका देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था। जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्याएँ सीख चुका तो एक दिन दुर्भाग्य से वह मर गया। बूढ़े माँ-बाप बड़े दु:खी हुए। चारों ओर शोक छा गया। जब लोग उसे लेकर श्मशान में पहुँचे तो रोने-पीटने की आवाज़ सुनकर एक योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया। पहले तो वह खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा, फिर योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर उस लड़के के शरीर में घुस गया। लड़का उठ खड़ा हुआ। उसे जीता देखकर सब बड़े खुश हुए।

वह लड़का वही तपस्या करने लगा।

इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्, यह बताओ कि यह योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा?"

राजा ने कहा, "इसमें क्या बात है! वह रोया इसलिए कि जिस शरीर को उसके माँ-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएँ प्राप्त कीं, उसे छोड़ कर जा रहा था। हँसा इसलिए कि वह नये शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकेगा।"

राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा जाकर उसे लाया तो रास्ते में बेताल ने कहा, "हे राजन्, मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि बिना जरा-सा भी हैरान हुए तुम मेरे सवालों का जवाब देते रहे हो और बार-बार आने-जाने की परेशानी उठाते रहे हो। आज मैं तुमसे एक बहुत भारी सवाल करूँगा। सोचकर उत्तर देना।"

इसके बाद बेताल ने यह कहानी सुनायी।

बेताल पच्चीसी-पच्चीसवीं कहानी-अंतिम.

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बेताल पच्चीसी-पच्चीसवीं कहानी-अंतिम.

योगी, राजा और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, "हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।"

इतना कहकर उसने मुर्दे को उसके कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, "हे राजन्! तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो।"

राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, "मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए।"

योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने तलवार से उसका सिर काट दिया। बेताल बड़ा खुश हुआ। बोला, "राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो।"

राजा ने कहा, "अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें आदर से पढ़े।"

बेताल ने कहा, "ऐसा ही होगा। ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से प्रसिद्ध होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।"

यह कहकर बेताल चला गया। उसके जाने के बाद शिवजी ने प्रकट होकर कहा, "राजन्, तुमने अच्छा किया, जो इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर राज्य स्थापित करोगे।"

इसके बाद शिवजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा श्मशान से नगर में आ गया। कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गया और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करते हुए अन्त में भगवत लोक को प्राप्त हुआ|

।। राजा भोज और माघ की कथा ।।


।। राजा भोज और माघ की कथा ।।



    राजाभोज की रानी और पंडित माघ की पत्नी दोनों खड़ी-खड़ी बातें कर रही थीं। राजा भोज ने उनके नजदीक जाकर उनकी बातें सुनने के लिए अपने कान लगा दिए। 

    यह देख माघ की पत्नी सहसा बोली- 'आओ मूर्ख! राजा भोज तत्काल वहां से हठ गए। हालांकि उसके मन में रोष तो नहीं था, तथापि स्वयं के अज्ञान पर उसे तरस अवश्य आ रहा था। वह जानना चाहते थे कि मैंने क्या मूर्खता की।

    राजसभा का समय हुआ। दंडी, भारवि आदि बड़े-बड़े पंडित आए राजा ने हर-एक के लिए कहा-'आओ मूर्ख! पंडित राजा की बात सुनकर हैरान हो गए, पर पूछने का साहस किसी ने नहीं किया। अंत में पंडित माघ आए। राजा ने वही बात दोहराते हुए कहा-'आओ मूर्ख! यह सुनते ही माघ बोले-

खादन्न गच्छामि हसन्न जल्पे
गतं न शोचामि कृतं न मन्ये।
द्वाभ्यां तृतीयो न भवामि राजन्!
किं कारणं भोज! भवामि मूर्ख:।।


    हे राजन्! मैं खाता हुआ नहीं चलता, हँसता हुआ नहीं बोलता, बीती बात की चिंता नहीं करता, कृतघ्न नहीं बनता और जहाँ दो व्यक्ति बात करते हों, उनके बीच में नहीं जाता। फिर मुझे मूर्ख कहने का क्या कारण है?

राजा को मूर्खता का रहस्य समझ में आ गया। अब वह तत्काल बोल उठा- 'आओ विद्वान्!

    इस घटना से हम समझ सकते हैं कि केवल शिक्षण या अध्ययन से विद्वत्ता नहीं आती। विद्वत्ता आती है- नैतिक मूल्यों को आत्मगत करने से। वे पुराने मूल्य, जो अच्छे हैं, खोने नहीं चाहिए। नए और पुराने मूल्यों में सामंजस्य होने से ही शिक्षा के साथ नैतिकता पनप सकेगी।



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गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

राजा भोज और बुढ़िया

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    एक समय की बात है कि राजा भोज और माघ पंडित सैर को गये थे । लौटते समय वे दोनों रास्ता भूल गये । तब वे दोनों विचार करने लगे, रास्ता भूल गये अब किससे पूछे । तब माघ पंडित ने कहा कि पास के खेत में जो बुढिया काम कर रही है उससे पूछे ।

दोनों बुढ़िया के पास गये, और कहा राम राम माँ जी । यह रास्ता कहाँ जायेगा । बुढिया ने उत्तर दिया कि "यह रास्ता तो यही रहेगा इसके ऊपर चलने वाले जायेंगे । भाई तुम कौन हो !"

"बहिन हम तो पथिक है "- राजा भोज बोला ।
बुढ़िया बोली -"पथिक तो दो है एक सूरज और एक चन्द्रमा । तुम कौन से पथिक हो ।" 

भोज बोला -"हम तो राजा है ।"
"राजा तो दो है एक इन्द्र और एक यमराज । तुम कौनसे राजा हो" - बुढ़िया बोली ।

"बहन हम तो क्षमतावान है" - माघ बोला ।
"क्षमतावान दो है एक पृथ्वी और दूसरी स्त्री । भाई तुम कौन हो " - बुढ़िया बोली ।

"हम तो साधू है" - राजा भोज कहने लगा ।
" साधू तो दो है एक तो शनि और दूसरा सन्तोष । भाई तुम कौन हो" - बुढ़िया बोली । 

"बहिन हम तो परदेसी है" - दोनों बोले ।
" परदेसी तो दो है एक जीव और दूसरा पे़ड़ का पात । भाई तुम कौन हो" - बुढ़िया बोली ।

" हम तो गरीब है " - माघ पंडित बोला
" गरीब तो दो है एक तो बकरी का जाया बकरा और दूसरी लड़की ।" - बुढ़िया बोली । 

" बहिन हम तो चतुर है" - माघ पंडित बोला ।
" चतुर तो दो है एक अन्न और दूसरा पानी । तुम कौन हो सच बताओ ।" - बुढ़िया बोली

इस पर दोनों बोले हम कुछ भी नहीं जानते । जानकार तो तुम हो ।
तब बुढ़िया बोली कि " तुम राजा भोज हो और ये पंडित माघ है । जाओ यही उज्जैन का रास्ता है ।"


शिक्षा - जब बड़ो के सामने आपकी एक ना चले तो समझ लो, हार मान लेना ही बेहतर है । 


🌸 श्रीरामः शरणं समस्तजगतां
रामं विना का गती।
रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं
रामाय कार्यं नम:। 
रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो
रामस्य सर्वं वशे। 
रामे भक्तिरखण्डिता भवतु मे
राम त्वमेवाश्रयः।। 

(१, श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणमहत्त्वम्)


शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

पशुपक्षिणां ध्वनय:

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मयूरस्य केका। मयूरः कायति।🦚
गजस्य क्रोञ्चनम्। गजः क्रोञ्चति। 🐘
अश्वस्य ह्रेषा। अश्वः ह्रेषते। 🐎
सिंहस्य गर्जना। सिंहः गर्जति।🦁
शुनकस्य भषणं/बुक्कनम्।
शुनकः भषति/बुक्कति।🐕
वराहस्य घुरणम्।वराहः घुरति।🐷
कोकिलस्य कूजनम्। कोकिलः कूजति।🐦‍⬛
व्याघ्रस्य गर्जनम्।व्याघ्रः गर्जति।🐯
वृषभस्य उन्नादः। वृषभः उन्नदति।🐂
धेनोः रम्भः। धेनुः रम्भति।🐮
शुकस्य रटनम्। शुकः रटति।🦜
सर्पस्य फुत्कारः। सर्पः फुत्करोति।🐍
मण्डूकः रटरटायति।🐸
गर्दभस्य गर्दनम्। गर्दभः गर्दति।🫏
रासभस्य रासनम्। रासभः रासते।
उभावपि समानौ।
मधुकरस्य गुञ्जनम्। मधुकरः गुञ्जति।🐝
मशकस्य मशनम्। मशकः मशति। 🦟
बिडालः मीवति 🐈


सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

मङ्गलाचरणम्

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आबृह्माण्डपिपीलिकान्ततनुभि: सूविद्धमानावृतम् 
जाग्रतस्वप्नसुसुप्तिभाषकतया सर्वत्र या दीप्यति। 
सा देवी जगदम्बिका भगवती श्री राजराजेश्वरी, 
श्रीविद्या करुणानिधि शुभकरी भूयात्सदा श्रेयसे।।



शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

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प्रेसविज्ञप्तिः संस्कृतम् - १४.१॰.२॰२३ वार्ताहरः आचार्यदीनदयालशुक्लः



विभागीयस्तरस्य संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

बाँदा। अद्य दिनाङ्के १४.१॰. प्रातः ११: वादने जिलाविद्यालयनिरीक्षकः बांदा श्रीविजयपालसिंद्वारा  गिरवांनगरस्थस्य पंडितजवाहरलालनेहरूइण्टरकॉलेज इत्यस्य विद्यालयस्य आकस्मिकनिरीक्षणं विहितम्।


विद्यालये सर्वं सुष्ठु स्वस्थं च प्राप्य विद्यालयस्य प्राचार्यगणेशद्विवेदीमहोदयेन सह सर्वैः शिक्षकैः सह च अस्मिन् शैक्षणिकोन्नयनगोष्ठीयाम् उत्थानसभायां च संस्कृतप्रतिभासन्धानपरीक्षायै उपस्थिताः विद्यालयस्य छात्राः जिलास्तरस्य ध्वजरोहणस्य अनन्तरं, हमीरपुरस्य भुवनेश्वरीमहाविद्यालये संभागीयस्तरस्य आयोजने आयोजितायां प्रतियोगितायां राज्यस्तरस्य चयनितस्य छात्रस्य महेशस्य विद्यालयस्य नामे गौरवम् आनयितुं ट्राफी, प्रमाणपत्रं च सम्मानितं तथा विभागीयस्तरीय पर द्वितीय तृतीय स्थान पर स्थित छात्र ज्योति, नेहा, प्रज्ञा च ट्राफी प्रमाणपत्राणि च दत्तानि।


सभायां संस्कृतविषयस्य प्रवक्ता शिवपूजन त्रिपाठीमहोदयः तथा च छात्रान् राज्यस्तरं प्रति प्रेषयित्वा छात्रान् प्रकाशं कृतवान् इति व्यक्तिः सम्बोधितवान् तथा च जिलाविद्यालयनिरीक्षकेन शिक्षकान् छात्रान् च अभिनन्दनं कृत्वा तेषां उज्ज्वलभविष्यस्य कामना कृता समारोहस्य संचालनं श्रीअखिलेशशुक्लद्वारा सम्पादितम्।


विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनेन सह संस्कृतस्य अध्ययनमपि आवश्यकम् :

sanskritpravah प्रेसविज्ञप्ति: संस्कृतम् १३/१०/२०२३



 केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य  उद्घाटने कुलपति:प्रो.शशिकुमारः प्रावोचत्!

प्रेषक: आचार्यदीनदयालशुक्ल:


नवदेहली- विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनं कुर्वतां छात्राणां कृते अपि संस्कृतस्य अध्ययनं महत्त्वपूर्णम् अस्ति । संस्कृतविषये ज्ञानं कृत्वा एव वयं विज्ञानप्रौद्योगिक्यां नूतनसंशोधनं कर्तुं शक्नुमः, यतः अस्माकं प्राचीनग्रन्थेषु संस्कृतभाषायां विस्तृतानि वस्तूनि पूर्वमेव उपलभ्यन्ते। एतत् कुलपतिः प्रो.शशिकुमारधीमानः केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य,नवदेहलीनगरस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य द्वितीयशैक्षणिकसत्रस्य उद्घाटनसमये हिमाचलप्रदेशतकनीकीविश्वविद्यालये, हमीरपुरे उक्तवान्। 

कुलपतिः अवदत् यत् भारतस्य सर्वा: भाषाः संस्कृतात् उत्पन्नाः। राष्ट्रियशिक्षानीत्याः अन्तर्गतं भारतस्य सर्वासु भाषासु प्रचारार्थं कार्यं क्रियते । कुलपतिः सर्वान् छात्रान् संस्कृताध्ययनार्थम् आहूतवान्। तस्मिन् एव काले  शैक्षणिक-अधिष्ठाता केन्द्राधिकारी च प्रो० जय देवेनोक्तं यत् अस्मिन् सत्रे कक्ष्या: ऑनलाइन-आफलाइन-इत्यत्र च संचालिताः भविष्यन्ति। अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रे ३१ अक्टोबर् पर्यन्तं प्रवेशार्थम् आनलाइन् आवेदनं कर्तुं शक्नुवन्ति। अस्मिन् अवसरे तकनीकीविश्वविद्यालयस्य प्राध्यापकाः, छात्राश्च उपस्थिताः आसन्।

नौरास्थ राजकीय महाविद्यालयस्य प्राचार्यः मुख्यातिथिरूपेण समुपस्थिता:  डॉ. राजेशशर्म महाभागेनोक्तं यत् संस्कृतं प्रत्येकस्मिन् व्यक्तिषु वर्तते। अद्यत्वेऽपि संस्कृतं जन्मतः मृत्युपर्यन्तं मनुष्यस्य संस्कारैः सह सम्बद्धम् अस्ति । तथापि वयं संस्कृतं व्यवहारे न स्थापयामः, यस्मात् कारणात् अद्यत्वे अपि संस्कृतस्य जागरणार्थं प्रयत्नाः करणीयाः भवन्ति। १६ शती पर्यन्तं भारते सर्वं संस्कृतभाषायां आसीत्, तदनन्तरं बहुकारणात् भारते संस्कृतस्य महत्त्वं न्यूनीकृतम्, परन्तु अद्य पुनः एकवारं संस्कृतस्य उत्थानाय प्रयत्नाः क्रियन्ते।

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

(बेताल पच्चीसी-चौबीसवीं कहानी)

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माँ-बेटी के बच्चों में क्या रिश्ता हुआ?



किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा, राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश के राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये।

उसके जाने पर रानी और बेटी जंगल से निकलकर आयीं और राजा को मरा देखकर बड़ी दु:खी हुईं। वे दोनों शोक करती हुईं एक तालाब के किनारे पहुँची। उसी समय वहाँ चंडसिंह नाम का साहूकार, अपने लड़के के साथ घोड़े पर चढ़कर, शिकार खेलने के लिए उधर आया। दो स्त्रियों के पैरों के निशान देखकर साहूकार अपने बेटे से बोला, "अगर ये स्त्रियाँ मिल जायें तो जायें, तब जिससे चाहो, विवाह कर लेना।"

लड़के ने कहा, "छोटे पैर वाली छोटी उम्र की होगी, उससे मैं विवाह कर लूँगा। आप बड़ी से कर लें।"

साहूकार विवाह नहीं करना चाहता था, पर बेटे के बहुत कहने पर राजी हो गया।

थोड़ा आगे बढ़ते ही उन्हें दोनों स्त्रियां दिखाई दीं। साहूकार ने पूछा, "तुम कौन हो?"

रानी ने सारा हाल कह सुनाया। साहूकार उन्हें अपने घर ले गया। संयोग से रानी के पैर छोटे थे, पुत्री के पैर बड़े। इसलिए साहूकार ने पुत्री से विवाह किया, लड़के का विवाह रानी से हो गया| इस तरह पुत्री सास बनी और माँ बेटे की बहू। उन दोनों के आगे चलकर कई सन्तानें हुईं।

इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्! बताइए, माँ-बेटी के जो बच्चे हुए, उनका आपस में क्या रिश्ता हुआ?"

यह सवाल सुनकर राजा बड़े चक्कर में पड़ा। उसने बहुत सोचा, पर जवाब न सूझ पड़ा। इसलिए वह चुपचाप चलता रहा।

बेताल यह देखकर बोला, "राजन्, कोई बात नहीं है। मैं तुम्हारे धैर्य और पराक्रम से प्रसन्न हूँ। मैं अब इस शव से निकल जाता हूँ। तुम इसे योगी के पास ले जाओ। जब वह तुम्हें इस शवको सिर झुकाकर प्रणाम करने को कहे तो तुम कह देना कि पहले आप करके दिखाओ। जब वह सिर झुकाकर समझायें तो तुम उसका सिर काट लेना। उसका बलिदान करके तुम सारी पृथ्वी के राजा बन जाओगे। सिर नहीं काटा तो वह तुम्हारी बलि देकर सिद्धि प्राप्त करेगा।"

इतना कहकर बेताल चला गया और राजा शव को लेकर योगी के पास आया।



समाचारपत्रम्

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विश्वस्य वृत्तान्त: समाचारपत्रम् ११ अक्टोबर २०२३



उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)

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च्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)       


उच्चारणस्थानानि



                           
          क्रम / संस्कृत-सूत्राणि / वर्ण / उच्चारण स्थान/ श्रेणी  


१) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः। 
२) इ-चु-य-शानां तालु। 
३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा। 
४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: । 
५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ । 
६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च । 
७) एदैतौ: कण्ठ-तालु । 
८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् । 
९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् । 



१) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः।
-अकार (अ, आ), कु= कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार (ह्), और विसर्जनीय (:) का उच्चारण स्थान कंठ और जीभ का निचला भाग  "कंठ्य"  है।


२) इ-चु-य-शानां तालु। 
-इकार (इ, ई ) , चु= चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार (य) और शकार (श) इनका “ तालु और जीभ / तालव्य ” उच्चारण स्थान है।  


३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा। 
-ऋकार (ऋ), टु = टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ (र) और षकार (ष) इनका “ मूर्धा और जीभ / मूर्धन्य ” उच्चारण स्थान है। 


४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: ।
-लृकार (लृ), तु = तवर्ग ( त, थ, द, ध, न ), लकार (ल) और सकार (स) इनका उच्चारण स्थान “दाँत और जीभ / दंत्य ” है।


५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ ।
- उकार (उ, ऊ), पु = पवर्ग ( प, फ, ब, भ, म ) और उपध्मानीय इनका उच्चारण स्थान "दोनों होंठ / ओष्ठ्य ” है। 


६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च ।
- ञकार (ञ), मकार (म), ङकार (ङ), णकार (ण), नकार (न), अं  इनका उच्चारण स्थान “नासिका” है ।  


७) एदैतौ: कण्ठ-तालु । 
- ए और ऐ का उच्चारण स्थान “कंठ तालु और जीभ / कंठतालव्य” है।


८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् ।
- ओ और औ का उच्चारण स्थान “कंठ, जीभ और होंठ / कंठोष्ठ्य” है। 
  

९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् ।
-वकार का उच्चारण स्थान “दाँत, जीभ और होंठ / दंतोष्ठ्य” है ।

                    -------------------------------------- 
१०) जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् ।
-जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान “ जिह्वामूल ” है ।

११) अनुस्वारस्य नासिका ।
-अनुस्वार (ं) का उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

१२) क, ख इति क-खाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्गसद्दशो जिह्वा-मूलीय: ।
-क, ख से पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ जिह्वामूलीय ” कहलाते है ।

१३) प, फ इति प-फाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्ग-सद्दश उपध्मानीय: ।
-प, फ के आगे पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ उपध्मानीय ” कहलाते है ।

१४) अं , अ: इति अच् परौ अनुस्वार-विसर्गौ ।
-अनुस्वार और विसर्ग “ अच् ” से परे होते है; जैसे — अं , अ: ।

संस्कृतवर्णविचारः

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संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran)-


(1) वर्ण,
(2) प्रत्याहार
(3) प्रयत्न

संस्कृत व्याकरण को माहेश्वर शास्त्र भी कहा जाता है।

👉 माहेश्वर का अर्थ है-- *शिव जी*
👉 माहेश्वर सूत्र की संख्या --- *14*

                (1)  वर्ण
संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के होते है---
3= *स्वर*
4= *व्यञ्जन*।

🌸👉 *संस्कृत में स्वर*--: ( *अच्*)तीन प्रकार के होते है-----:
1=■ *ह्रस्व स्वर* ( पाँच)---  इसमें एक मात्रा का समय लगता है। *अ , इ , उ , ऋ , लृ*

2=■ *दीर्घ स्वर* (आठ)---: इसमें दो मात्रा ईआ समय लगता है। आ , ई , ऊ , ऋ , ए ,ऐ ,ओ , औ

3= ■ *प्लुत स्वर* --: इसमे तीन मात्रा का समय लगता है।
जैसे--- *हे राम३*
*ओ३म* ।

🌸👉  सस्कृत में व्यञ्जन (हल् ) ----:

व्यञ्जन चार प्रकार के होते है----
1= 👉स्पर्श व्यञ्जन --: *क से म तक* = 25 वर्ण

2= 👉अन्तःस्थ व्यञ्जन ---: *य , र , ल , व*= 4 वर्ण

3= 👉 ऊष्म व्यञ्जन --: *श , ष , स , ह* = 4 वर्ण

4= 👉 संयुक्त व्यञ्जन --: *क्ष , त्र , ज्ञ* = 3 वर्ण

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

            (2)   प्रत्याहार

🌸 *प्रत्याहारों की संख्या* = 42
● *अक् प्रत्याहार*---: अ इ उ ऋ लृ  ।
● *अच् प्रत्याहार* ---:अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● *अट् प्रत्याहार* ---: अ इ उ ऋ  लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र्  ।
● *अण् प्रत्याहार* ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल्  ।
● *इक् प्रत्याहार*----:  इ उ ऋ लृ  ।
● *इच् प्रत्याहार*----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● *इण् प्रत्याहार*-----:  इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल्   ।
● *उक् प्रत्याहार* ----: उ ऋ लृ  ।
● *एड़् प्रत्याहार* ----: ए ओ  ।
● *एच् प्रत्याहार*----- : ए ओ ऐ औ  ।
● *ऐच् प्रत्याहार* ----- ऐ औ  ।
● *जश् प्रत्याहार* --- : ज् ब् ग् ड् द्   ।
● *यण् प्रत्याहार* ---': य् व् र् ल्   ।
● *शर् प्रत्याहार*-----: श् ष् स्    ।
● *शल् प्रत्याहार* ---- : श्  ष्  स्  ह्  ।
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆

                       (3) *प्रयत्न*---

👉  " *वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को ' प्रयत्न ' कहते है।*
👉 प्रयत्न *दो प्रकार* के होते है---:
1= आभ्यान्तर प्रयत्न
2= बाह्य प्रयत्न
■ *आभ्यान्तर प्रयत्न*----:
आभ्यान्तर प्रयत्न *पाँच प्रकार* के होते है----:
☆ *1*= स्पृष्ट ( *स्पर्श*)-----: *क से म तक के वर्ण  ।*
☆ *2*= ईषत् -- स्पृष्ट -----: *य ,र  , ल , व  ।*
☆ *3*= ईषत् -- विवृत ------:  *श  , ष  , स , ह  ।*

☆ *4*=  विवृत ----:
अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ  ।

☆ *संवृत----:
" *इसमें वायु का मार्ग बन्द रहता है । प्रयोग करने में ह्रस्व  " अ " का प्रयत्न संवृत होता है किन्तु शास्त्रीय प्रक्रिया में " अ "  का प्रयत्न विवृत होता है।*
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
🌸 *बाह्य प्रयत्न* ------:
👉 उच्चारण की उस चेष्टा को " बाह्य प्रयत्न " कहते है ; जो मुख से वर्ण निकलते समय होती है।
👉 *बाह्य प्रयत्न  -- 11 प्रकार के होते है।*

(1=विवार  2= संवार  3= श्वास 4= नाद 5= घोष 6=:अघोष 7= अल्पप्राण 8= महाप्राण 9= उदात्त 10= अनुदात्त 11= त्वरित  )
         ----------------------

स्वपरिचयः (Self Introduction)

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स्वपरिचयः (Self Introduction)

1) 

1) मम नाम ...दीनदयालः.... ।

मेरा नाम ....दीनदयाल.... है।    
(My name is Deendayal)


2) अहम् ............ कक्षायां पठामि। (षष्ठी/ सप्तमी/ अष्टमी)

मैं ............ कक्षा में पढ़ता हूँ।   
      (I am Studying in class ……..)


3) मम विद्यालयस्य नाम विद्यालय ......अस्ति। 

मेरे विद्यालय का नाम केन्द्रीय विद्यालय .............. है।
(I Study in Kendriya Vidyalaya ……………….)


4) अहं मूलतः ....उत्तरप्रदेशतः....अस्मि।

 मैं मूल रूप से ....... उत्तरप्रदेश...... से हूँ। 
     (I am basically from 
Uttar pradesh)


5) वर्तमाने अहम् …काशी... इति स्थाने निवसामि ।

वर्तमान समय में मैं ......... स्थान पर रह रहा हूँ।    
   (I live in ………………)


6) मम पितुः नाम.........अस्ति,  सः ...अध्यापकः... अस्ति।*

मेरे पिता जी का नाम ....... हैं, वह एक ...अध्यापक... हैं।   

(My Father’s name is .………. he is a Teacher)


7) मम मातुः नाम ............ अस्ति, सा ...गृहिणी... अस्ति। *
मेरी माता जी का नाम ............. है, वह एक ...गृहिणी...है। 

(My Mother’s name is ………… she is a HouseWife)


8) मम रुचिः .....अध्ययने, क्रीड़ने..... च अस्ति/ स्तः/ सन्ति।# 

मेरी रुचि ....पढ़ने, खेलने.... में है।   
(My hobbies are Studying & Playing)


9) अहम् ...प्राध्यापकः.... भवितुम् इच्छामि।* 

मैं .....प्राध्यापक..... बनना चाहता हूं।   
(I want to be a Professor)
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             * व्यवसाय: (Profession)-
1)  प्राध्यापकः = Professor,
2) व्याख्याता= Lecturer
3)  अध्यापकः/ अध्यापिका =Teacher,
4) अधिकारी = Officer;
5) अभियन्ता/ तंत्रज्ञः = Engineer;
6)  वैद्यः/ वैद्या= Doctor,
7)  न्यायवादी = lawyer,
8)  प्रबन्धकः= Manager,
9) वायुयान-चालकः=pilot,
10)  सैनिकः=police,
11) उट्टङ्ककः = Typist,
12)  लिपिकः = Clerk,
13) विक्रयिकः = Salesman;
14) व्यवसायिकः=Businessman,
15)  वैज्ञानिक:- scientist

16) क्रीडक: - Sports Player  

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                      # रुचि: (Hobbies)-

1) अध्ययने-Studying,
2)  पठने-Reading,
3) पाठने- Teaching,
4) गायने-Singing,
5) नृत्ये-Dancing,
6) क्रीडने-Playing,
7) तरणे-Swimming, 
8) चित्रनिर्माणे-Painting,
9) भ्रमणे-visiting,
10) शयने=Sleeping,
11) भोजने=Eating

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प्रहेलिका संस्कृतम्।

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प्रश्न:

केशवं पतितं दृष्ट्वा, पाण्डवाः हर्षनिर्भराः। 
रुदन्ति कौरवाः, सर्वे हा हा केशव केशव ।।

अर्थः

गिरे हुए केशव को देखकर पांडव हर्ष से भर गए, सभी कौरव हे केशव, हे केशव चिल्ला रहे थे।

उत्तर:
हम्म्म...., दिलचस्प परिदृश्य, है ना? पांडव आनन्द मना रहे हैं जबकि कोरव केशव के लिए विलाप कर रहे है ? !! लगभग ऐसा लगता है कि कवि ने शब्दों को रखने में गलती कर दी है!

(केशव भगवान कृष्ण के कई नामों में से एक है। उन्हें केशी नामक राक्षस को मारने के बाद ऐसा कहा जाता था।)

खेर, आइए यहां श्लोक में कुछ विशेष शब्द देखें- केशव को के शव के रूप में विभाजित किया जाए तो शव का अर्थ है के (कण का सातवा मामला) शब्द) पानी में शव केडेवर (शव) पानी में शव । पा अण्डवाः पा-पानी ।अण्डवा:- अण्डों से पैदा होने वाली, मछलियाँ अण्डों से पानी में पैदा होती है

कौर रवा

की भयानक रावः शोर मचाने वाले
भेड़िये / लोमड़ी भयानक रोने के साथ चिल्लाते हैं

अब इसका अर्थ यह हुआ कि

पानी में गिरे हुए शव को देखकर मछलियाँ खुशी से झूम उठीं। वह उनके लिए एक दावत थी) जबकि भेड़िये विलाप कर रहे थे क्योंकि उन्हें पानी में मृत शरीर का एक टुकड़ा नहीं मिल सका

ओह, अब यह अधिक समझ में आता है, है ना :)।

अगले पाठ तक, अभ्यास करके खुश!