शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021

हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार


                 
                  रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम्, 
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्रीः।
                 इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे
हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार


एक भौंरा था । वह घूमते-घूमते कमलमें जा बैठा । सुगन्ध आ रही थी खूब । इधर सूर्य अस्त हो गया तो कमल बन्द हो गया । उसमें भौंरा विचार करता है कि हम बन्द हो गये अब । इसमेंसे निकलें कैसे ? कमलको कैसे काटें ? भौंरा बाँसको काट देता है । बाँसमें छेद कर देता है । उसमें छेद बनाकर बच्चे देता है और भीतर रहता है । आप विचार करोकमलकी पंखुड़ी काटनेमें उसे जोर आता है क्या ? परन्तु उससे सुगन्ध लेता है तो अब काटे कैसे ? वह भौंरा सोचता है

‘रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् ।’ रात चली जायगीबड़ा सुन्दर प्रभात हो जायगा । ‘भास्वानुदेष्यति’ सूर्य भगवान् उदय होंगे और ‘हसिष्यति पंकजश्रीः’यह कमलकी शोभा खिल जायगी । फिर मर्जी आवे जहाँ बैठेंमर्जी आवे जहाँ जावें । फिर ठीक हो जायगा ।

 ‘इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे’वह बेचारा विचार कर रहा है कि यह हो जायगायह हो जायगा । इतनेमें ही हाथी आता है । पानी पीता हैफिर सूँडसे कमलोंको ऐसे लपेटता है । उतनेमें वह तो मर जाता है ।

 ‘हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार’


ऐसे ही मनुष्य कहता हैऐसे करेंगेऐसे करेंगे । क्या करेंगे राम नाम सत् हैयह तो आ ही जायगा ।



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