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कविता संग्रह
शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021
सुभाषितम्
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम्
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्रीः।
इति विचारयति कोषगते द्विरेफे
हा हंत हंत नलिनीं गज उज्जहार॥
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