रविवार, 1 जून 2025

संस्कृत भाषा की समृद्धि

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विश्व की सबसे ज्यादा सम्रद्ध भाषा कौनसी है.....?

अंग्रेजी में 'THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG' एक प्रसिद्ध वाक्य है। 

जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए, मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया जिसमे चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है। 

अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।-

क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।

अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाये दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। 

यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है! 

पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है, किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥

अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वन्देसंस्कृतम्! 

एक और उदहारण है।-

दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः
दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः

अर्थात: दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खण्डन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।

है ना खूबसूरत? इतना ही नहीं, क्या किसी भाषा में *केवल 2 अक्षर* से पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में ये करना असम्भव है। माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र ” दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है। देखिये –

भूरिभिर्भारिभिर्भीराभूभारैरभिरेभिरे
भेरीरे भिभिरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिभा:।

अर्थात- निर्भय हाथी जो की भूमि पर भार स्वरूप लगता है, अपने वजन के चलते, जिसकी आवाज नगाड़े की तरह है और जो काले बादलों सा है, वह दूसरे दुश्मन हाथी पर आक्रमण कर रहा है।

एक और उदाहरण-

क्रोरारिकारी कोरेककारक कारिकाकर।
कोरकाकारकरक: करीर कर्करोऽकर्रुक॥

अर्थात- क्रूर शत्रुओं को नष्ट करने वाला, भूमि का एक कर्ता, दुष्टों को यातना देने वाला, कमलमुकुलवत, रमणीय हाथ वाला, हाथियों को फेंकने वाला, रण में कर्कश, सूर्य के समान तेजस्वी [था]।

पुनः क्या किसी भाषा मे केवल *तीन अक्षर* से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? यह भी संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में असंभव है!
उदहारण- 

देवानां नन्दनो देवो नोदनो वेदनिंदिनां
दिवं दुदाव नादेन दाने दानवनंदिनः।।

अर्थात- वह परमात्मा [विष्णु] जो दूसरे देवों को सुख प्रदान करता है और जो वेदों को नहीं मानते उनको कष्ट प्रदान करता है। वह स्वर्ग को उस ध्वनि नाद से भर देता है, जिस तरह के नाद से उसने दानव [हिरण्यकशिपु] को मारा था।

अब इस छंद को ध्यान से देखें इसमें पहला चरण ही चारों चरणों में चार बार आवृत्त हुआ है, लेकिन अर्थ अलग-अलग हैं, जो यमक अलंकार का लक्षण है। इसीलिए ये महायमक संज्ञा का एक विशिष्ट उदाहरण है -

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जतीशमार्गणा:।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा:॥

अर्थात- पृथ्वीपति अर्जुन के बाण विस्तार को प्राप्त होने लगे, जबकि शिवजी के बाण भंग होने लगे। राक्षसों के हंता प्रथम गण विस्मित होने लगे तथा शिव का ध्यान करने वाले देवता एवं ऋषिगण (इसे देखने के लिए) पक्षियों के मार्गवाले आकाश-मंडल में एकत्र होने लगे।

जब हम कहते हैं की संस्कृत इस पूरी दुनिया की सभी प्राचीन भाषाओं की जननी है तो उसके पीछे इसी तरह के खूबसूरत तर्क होते हैं। यह विश्व की अकेली ऐसी भाषा है, जिसमें "अभिधान- सार्थकता" मिलती है अर्थात् अमुक वस्तु की अमुक संज्ञा या नाम क्यों है, यह प्रायः सभी शब्दों में मिलता है। जैसे इस विश्व का नाम संसार है तो इसलिये है क्यूँकि वह चलता रहता है, परिवर्तित होता रहता है-

संसरतीति संसारः गच्छतीति जगत् आकर्षयतीति कृष्णः रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः इत्यादि।

जहाँ तक मुझे ज्ञान है विश्व की अन्य भाषाओं में ऐसी अभिधानसार्थकता नहीं है। 

Good का अर्थ अच्छा, भला, सुन्दर, उत्तम, प्रियदर्शन, स्वस्थ आदि है किसी अंग्रेजी विद्वान् से पूछो कि ऐसा क्यों है तो वह कहेगा है बस पहले से ही इसके ये अर्थ हैं क्यों हैं वो ये नहीं बता पायेगा।
ऐसी सरल और समृद्ध भाषा जो सभी भाषाओं की जननी है आज अपने ही देश में अपने ही लोगों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रही है बेहद चिंताजनक है।

#आचार्यदीनदयालशुक्ल:

रविवार, 18 मई 2025

गो माता की महिमा

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नमो नमः 🙏 
आत्मीय बन्धुओं,
सादर अभिवादन 

गो माता के विषय में कुछ दुर्लभ एवं रोचक तथ्य




1- हर व्यक्ति जन्म लेता है गो-पुत्र के रूप में-इसलिये उसका एक *गोत्र* होता है।

2- हर व्यक्ति अपना विवाह मुहूर्त चाहता है *गो धूलि बेला* में।

3- हर व्यक्ति मृत्यु के बाद जाना चाहता है गोलोक धाम, हर आत्मा चाहती है गोलोकवास

4- हर जीव वैतरणी पार करना चाहता है -मृत्यु से पहले *गो दान* करके।

           सोचिये ! हर कामना पूरी करने के लिए गो माता का सहारा लेना पड़ रहा है। लेकिन उसी गो माता की सेवा के लिए समय नही होता है।

   आज हम गो माता के विषय में भारतीय सनातनियों के लिए कुछ रोचक जानकारी प्रस्तुत करते हैं....!!

1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनन्दपूर्वक चैन की सांस लेती है। वहाँ की जगह से वास्तु दोष स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। 

2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं। 

3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे, गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है। 

4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की *विपदाओं* को गौ माता हर लेती है। 

5. गौ माता के खुर में *नागदेवता* का वास होता है। जहाँ गौ माता विचरण करती है उस जगह *सांप बिच्छू* नहीं आते हैं। 

6. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है जिस घर को नित्य गोबर से लीपते है वहां कभी *धन की कमी* नहीं होती है।

7. गो माता की जुबान में अमृत होता है जिस वस्तु को गौ की जीभ स्पर्श कर ले वह पवित्र माना गया है।

8. गो माता के पांच विकार (दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) यह पंचगव्य सभी शारिरिक दोषों का नाश करते हैं।

*सभी सनातनी हिन्दू समाज तक यह जानकारी जरुर शेयर करें।*
🙏🙏🚩🚩🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*जय श्री राम जय श्री कृष्णा राधे राधे*


*सादर सधन्यवाद*
*आचार्यदीनदयालशुक्ल:*(संस्कृतशिक्षक:)
शिक्षाप्रमुख: 
*भारतीय ज्योतिष संस्थानं ट्रस्ट वाराणसी उत्तरप्रदेश*
https://sanskritpravaha.blogspot.com/2024/09/blog-post.html

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

नास्ति मातृसमा छाया

राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च |
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातरः स्मृताः ||

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:। 
नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रिया ॥

माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान, इस दुनिया में कोई जीवनदाता नहीं।

किसी बनावटी डे की जरूरत नहीं
निर्जीव पत्थरों में मातृत्व भर देने की शक्ति सनातन धर्म में ही थी, है और रहेगी 

1. 'यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी।'
(अर्थात, हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है।)

2. 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।'
(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)

3. 'माता गुरुतरा भूमेरू।'
(अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।)

4. 'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'

5. 'मातृ देवो भवः।'
(अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।)

6. 'अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।'

(भावार्थः जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।)

7. 'माँ' के गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है-
'प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।'

(अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।)

8. 'रजतिम ओ गुरु तिय मित्रतियाहू जान।
निज माता और सासु ये, पाँचों मातृ समान।।'

(अर्थात, जिस प्रकार संसार में पाँच प्रकार के पिता होते हैं, उसी प्रकार पाँच प्रकार की माँ होती हैं। जैसे, राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी मूल जननी माता।)

9. 'स्त्री ना होती जग म्हं, सृष्टि को रचावै कौण।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों, मन म्हं धारें बैठे मौन।
एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।'

(अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की, तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई।)

10. आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥
 
(भावार्थ- जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है । बछड़े को बांधने मे माँ की जांघ ही खम्भे का काम करती है।।

उपाध्यायान दशाचार्य अचार्याणाम शतं पिता
सहस्रं तु पितृनि माता गौरवेणातिरिच्यते।मनुस्मृति  2.148 

भावार्थ : वेदांगों के सहित वेद अध्ययन कराने वाले द्विज आचार्य का दस गुना,आचार्य से पिता का सौ गुना और पिता से माता का स्थान हजार गुना होता है ।

सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

भवान्याष्टकम्





न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्गतिस्त्वं
गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥८


रविवार, 6 अक्टूबर 2024

नवरात्रोत्सवः

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आश्विनमासस्य शुक्लपक्षे नवरात्रोत्सवः अत्यन्तं महत्वपूर्णः हिन्दूनां पर्वेषु एकः भवति, यत्र भक्ताः नवदुर्गायाः पूजनं श्रद्धया भक्त्या च कुर्वन्ति। नवरात्रेः समये मन्दिराणि सुशोभितानि भवन्ति, सर्वत्र पुष्पाणां अलङ्कारः दीपध्वजैः च वातावरणं अत्यन्तं पवित्रं सन्तोषपूर्णं च भवति। एते नव दिनानि प्रत्येकस्मिन दिने दुर्गादेव्याः नवभेदाः पूजायाः विषये अत्यन्तं श्रद्धया पूज्यन्ते, ये शक्तिस्वरूपाः विविधरूपेण संसारं पालयन्ति। अस्मिन् महोत्सवे भक्ताः उपवासं कृत्वा पूजाः जपं होमं च कुर्वन्ति, यतः तेषां विश्वासः अस्ति यः नवरात्रे उपासना करोति सः परमशक्तेः कृपां प्राप्नोति। नवरात्र्याः अन्तिमे दिने अष्टमी अथवा नवमी तिथौ कन्यापूजनं क्रियते, यत्र कन्यकाः दुर्गायाः स्वरूपेण सम्मान्याः सन्ति च तेषां चरणस्पर्शं कृत्वा आशीर्वादाः लभ्यन्ते। नवरात्रे सप्तमीदिने  काञ्चीपुरे काञ्चीपीठायां शक्तिदेव्याः विशेषपूजा भवति, यत्र दुर्गाप्रतिमायाः नवान्नप्राशनं सम्पूर्णतः सिद्धिः इति स्मर्यते।  नवरात्रोत्सवे भारतस्य विविधेषु प्रदेशेषु विविधविधाः नृत्यगीतप्रतियोगिताः आयोज्यन्ते, यत्र भक्ताः दुर्गामहाकाव्यस्य स्तुतिः गानं च कुर्वन्ति। एतस्मिन काले भारतदेशस्य पश्चिमे भागे गरबा डाण्डियानृत्यं च प्रसिद्धं भवति, यत्र स्त्रियः पुरुषाः च रात्रौ देवालयेषु अथवा मण्डपेषु मिलित्वा आनन्दपूर्वकं नृत्यं कुर्वन्ति। नवरात्रस्य पर्वणि दुर्गादेव्याः विजयायाः प्रतीकः दशहरा पर्वः अपि च भवति, यत्र रावणवधं रामेण कृतः  रावणवधं धर्मस्य विजयः इति  जनैः उत्सवस्वरूपेण स्मर्यते। । नवरात्र्याः अनन्तरं विजयदशम्यां रामलीला इति नाटकम् अपि कार्यक्रमः भवति, यत्र रामायणस्य चरित्राणां अभिनयः जनानां समक्षं प्रकट्यते।

नमामि संस्कृतम्