बुधवार, 6 दिसंबर 2023

बेताल पच्चीसी-पच्चीसवीं कहानी-अंतिम.

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बेताल पच्चीसी-पच्चीसवीं कहानी-अंतिम.

योगी, राजा और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, "हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।"

इतना कहकर उसने मुर्दे को उसके कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, "हे राजन्! तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो।"

राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, "मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए।"

योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने तलवार से उसका सिर काट दिया। बेताल बड़ा खुश हुआ। बोला, "राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो।"

राजा ने कहा, "अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें आदर से पढ़े।"

बेताल ने कहा, "ऐसा ही होगा। ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से प्रसिद्ध होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।"

यह कहकर बेताल चला गया। उसके जाने के बाद शिवजी ने प्रकट होकर कहा, "राजन्, तुमने अच्छा किया, जो इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर राज्य स्थापित करोगे।"

इसके बाद शिवजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा श्मशान से नगर में आ गया। कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गया और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करते हुए अन्त में भगवत लोक को प्राप्त हुआ|

।। राजा भोज और माघ की कथा ।।


।। राजा भोज और माघ की कथा ।।



    राजाभोज की रानी और पंडित माघ की पत्नी दोनों खड़ी-खड़ी बातें कर रही थीं। राजा भोज ने उनके नजदीक जाकर उनकी बातें सुनने के लिए अपने कान लगा दिए। 

    यह देख माघ की पत्नी सहसा बोली- 'आओ मूर्ख! राजा भोज तत्काल वहां से हठ गए। हालांकि उसके मन में रोष तो नहीं था, तथापि स्वयं के अज्ञान पर उसे तरस अवश्य आ रहा था। वह जानना चाहते थे कि मैंने क्या मूर्खता की।

    राजसभा का समय हुआ। दंडी, भारवि आदि बड़े-बड़े पंडित आए राजा ने हर-एक के लिए कहा-'आओ मूर्ख! पंडित राजा की बात सुनकर हैरान हो गए, पर पूछने का साहस किसी ने नहीं किया। अंत में पंडित माघ आए। राजा ने वही बात दोहराते हुए कहा-'आओ मूर्ख! यह सुनते ही माघ बोले-

खादन्न गच्छामि हसन्न जल्पे
गतं न शोचामि कृतं न मन्ये।
द्वाभ्यां तृतीयो न भवामि राजन्!
किं कारणं भोज! भवामि मूर्ख:।।


    हे राजन्! मैं खाता हुआ नहीं चलता, हँसता हुआ नहीं बोलता, बीती बात की चिंता नहीं करता, कृतघ्न नहीं बनता और जहाँ दो व्यक्ति बात करते हों, उनके बीच में नहीं जाता। फिर मुझे मूर्ख कहने का क्या कारण है?

राजा को मूर्खता का रहस्य समझ में आ गया। अब वह तत्काल बोल उठा- 'आओ विद्वान्!

    इस घटना से हम समझ सकते हैं कि केवल शिक्षण या अध्ययन से विद्वत्ता नहीं आती। विद्वत्ता आती है- नैतिक मूल्यों को आत्मगत करने से। वे पुराने मूल्य, जो अच्छे हैं, खोने नहीं चाहिए। नए और पुराने मूल्यों में सामंजस्य होने से ही शिक्षा के साथ नैतिकता पनप सकेगी।



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गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

राजा भोज और बुढ़िया

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    एक समय की बात है कि राजा भोज और माघ पंडित सैर को गये थे । लौटते समय वे दोनों रास्ता भूल गये । तब वे दोनों विचार करने लगे, रास्ता भूल गये अब किससे पूछे । तब माघ पंडित ने कहा कि पास के खेत में जो बुढिया काम कर रही है उससे पूछे ।

दोनों बुढ़िया के पास गये, और कहा राम राम माँ जी । यह रास्ता कहाँ जायेगा । बुढिया ने उत्तर दिया कि "यह रास्ता तो यही रहेगा इसके ऊपर चलने वाले जायेंगे । भाई तुम कौन हो !"

"बहिन हम तो पथिक है "- राजा भोज बोला ।
बुढ़िया बोली -"पथिक तो दो है एक सूरज और एक चन्द्रमा । तुम कौन से पथिक हो ।" 

भोज बोला -"हम तो राजा है ।"
"राजा तो दो है एक इन्द्र और एक यमराज । तुम कौनसे राजा हो" - बुढ़िया बोली ।

"बहन हम तो क्षमतावान है" - माघ बोला ।
"क्षमतावान दो है एक पृथ्वी और दूसरी स्त्री । भाई तुम कौन हो " - बुढ़िया बोली ।

"हम तो साधू है" - राजा भोज कहने लगा ।
" साधू तो दो है एक तो शनि और दूसरा सन्तोष । भाई तुम कौन हो" - बुढ़िया बोली । 

"बहिन हम तो परदेसी है" - दोनों बोले ।
" परदेसी तो दो है एक जीव और दूसरा पे़ड़ का पात । भाई तुम कौन हो" - बुढ़िया बोली ।

" हम तो गरीब है " - माघ पंडित बोला
" गरीब तो दो है एक तो बकरी का जाया बकरा और दूसरी लड़की ।" - बुढ़िया बोली । 

" बहिन हम तो चतुर है" - माघ पंडित बोला ।
" चतुर तो दो है एक अन्न और दूसरा पानी । तुम कौन हो सच बताओ ।" - बुढ़िया बोली

इस पर दोनों बोले हम कुछ भी नहीं जानते । जानकार तो तुम हो ।
तब बुढ़िया बोली कि " तुम राजा भोज हो और ये पंडित माघ है । जाओ यही उज्जैन का रास्ता है ।"


शिक्षा - जब बड़ो के सामने आपकी एक ना चले तो समझ लो, हार मान लेना ही बेहतर है । 


🌸 श्रीरामः शरणं समस्तजगतां
रामं विना का गती।
रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं
रामाय कार्यं नम:। 
रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो
रामस्य सर्वं वशे। 
रामे भक्तिरखण्डिता भवतु मे
राम त्वमेवाश्रयः।। 

(१, श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणमहत्त्वम्)


शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

पशुपक्षिणां ध्वनय:

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मयूरस्य केका। मयूरः कायति।🦚
गजस्य क्रोञ्चनम्। गजः क्रोञ्चति। 🐘
अश्वस्य ह्रेषा। अश्वः ह्रेषते। 🐎
सिंहस्य गर्जना। सिंहः गर्जति।🦁
शुनकस्य भषणं/बुक्कनम्।
शुनकः भषति/बुक्कति।🐕
वराहस्य घुरणम्।वराहः घुरति।🐷
कोकिलस्य कूजनम्। कोकिलः कूजति।🐦‍⬛
व्याघ्रस्य गर्जनम्।व्याघ्रः गर्जति।🐯
वृषभस्य उन्नादः। वृषभः उन्नदति।🐂
धेनोः रम्भः। धेनुः रम्भति।🐮
शुकस्य रटनम्। शुकः रटति।🦜
सर्पस्य फुत्कारः। सर्पः फुत्करोति।🐍
मण्डूकः रटरटायति।🐸
गर्दभस्य गर्दनम्। गर्दभः गर्दति।🫏
रासभस्य रासनम्। रासभः रासते।
उभावपि समानौ।
मधुकरस्य गुञ्जनम्। मधुकरः गुञ्जति।🐝
मशकस्य मशनम्। मशकः मशति। 🦟
बिडालः मीवति 🐈


सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

मङ्गलाचरणम्

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आबृह्माण्डपिपीलिकान्ततनुभि: सूविद्धमानावृतम् 
जाग्रतस्वप्नसुसुप्तिभाषकतया सर्वत्र या दीप्यति। 
सा देवी जगदम्बिका भगवती श्री राजराजेश्वरी, 
श्रीविद्या करुणानिधि शुभकरी भूयात्सदा श्रेयसे।।