sanskritpravah
मंगलवार, 26 सितंबर 2023
पण्डितराज जगन्नाथ जी का लवंगी से प्रेम
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सोमवार, 7 अगस्त 2023
गुरुवार, 13 जुलाई 2023
श्लोकचतुष्टयम्।।
गुरुवार, 6 जुलाई 2023
कुछ गृन्थों के मङ्गलाचरणम्
कुछ गृन्थों के मङ्गलाचरणम्
1.कादम्बरी (बाणभट्ट)
कथा
नमस्कारात्मक मंगलाचरण, त्रिगुणमय परब्रहा की स्तुति , वंशस्थ छन्द
रजोजुषे
जन्मनि सत्ववृत्तये स्थितौ प्रजानां प्रलये तमःस्पृशे।
अजाय
सर्गस्थितिनाशहेतवे त्रयीमयाय त्रिगुणात्मने नमः।।१।।
हिन्दी-अनुवाद- (जो)
प्राणियों के प्रादुर्भाव काल में रजोगुण युक्त (अर्थात् ब्रह्मा के रूप में), स्थिति-काल में सात्त्विक वृत्ति वाला (अर्थात् सत्त्वगुणयुक्त विष्णु के
रूप में) तथा प्रलयकाल में तमोगुण स्पर्शी (अर्थात् तमोगुण युक्त प्रलयङ्कर शिव के
रूप में) होता है। (संसार की) सृष्टि, स्थिति एवं प्रलय
(विनाश) के कारण बनने वाले, वेदत्रयी में व्याप्त, त्रिगुणस्वरूप एवं अजन्मा (उस) परब्रह्म को नमस्कार है।।१।।
जयन्ति
बाणासुरमौलिलालिता दशास्यचूडामणिचक्रचुम्बिनः।
सुरासुराधीशशिखान्तशायिनो
भवच्छिदस्त्र्यम्बकपादपांसवः।।२।।
हिन्दी-अनुवाद- असुरराज
बाण द्वारा (आदरपूर्वक) सिर-माथे लगाई गई, लंकापति रावण के
शिरोमणि-समूह को चूमने वाली देवताओं तथा राक्षसों के अधिपतियों के शिखाग्रभाग पर
शयन करने वाली, भवबंधन काटने वाली , त्रिनेत्रधारी
भगवान शिव की चरणधूलि विजयिनी बनें।।२।।
जयत्युपेन्द्रः
स चकार दूरतो बिभित्सया यः क्षणलब्धलक्ष्यया।
दृशैव
कोपारुणया रिपोरुरः स्वयं भयाद्धिन्नमिवास्त्रपाटलम्।।३।।
हिन्दी-अनुवाद- (नृसिंह
रूपधारी,
देवराज इन्द्र के अनुजकल्प) ठन उपेन्द्र की जय हो जिन्होंने विदीर्ण
कर देने की इच्छा से दूर से (ही) क्षणमात्र में लक्ष्य को प्राप्त कर लेने वाली
(अतएव) क्रोध के कारण रक्तवर्णा दृष्टि से ही शत्रुकल्प हिरण्यकशिपु के वक्ष:स्थल
को इस प्रकार अस्पताल अर्थात् रुधिर की भाँति श्वेत रक्त बना दिया था, मानो विदारणाय से वह अपने आप फट गया हो।।३।।
नमामि
भोश्चरणाम्बुजद्वयं सशेखरैः मौखरिभिः कृतार्चनम्।
समस्तसामन्तकिरीटवेदिकाविटङ्कपीठोल्लुठितारुणाङ्गुलि।।४।।
हिन्दी-अनुवाद- मुकुट
धारण करने वाले मौखरि क्षत्रियों द्वारा समर्पित तथा समस्त सामन्तों (अधीनस्थ
प्रदेशाधिपतियों) की किरीटरूपी वेदिकाओं की मध्यवर्तिनी विटङ्कभूमि (अर्थात् उन्नत
प्रदेश) पर रगड़ जाने के कारण लाल हो जाने वाली (गुरुदेव) भारवि (भत्सु) के
चरणकमलयुगल की मैं (बाणभट्ट) वन्दना करता हूँ।।४।।
अकारणाविष्कृतवैरदारुणादसज्जनात्कस्य
भयं न जायते।
विषं
महादेव यस्य दुर्वचः सुदुःसहं सन्निहितं सदा मुखे।।५।।
हिन्दी-अनुवाद-बिना किसी
कारण के ही वैरभाव प्रकट करने वाले अतएव क्रूर दुष्टपुरुष से किसे भय नहीं उत्पन्न
होता,
जिसके मुख में अत्यन्त दुस्सह दुर्वचन उसी प्रकार सदैव भरा रहता है
जैसे महासर्प के मुख में अत्यन्त असह्य विष सदैव भरा रहता है।।५।।
2. अभिज्ञानशाकुन्तलम्
या सृष्टि: स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या
हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्त: श्रुतिविषयगुणा: या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहु: सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिन: प्राणवन्त:
प्रत्यक्षाभि: प्रपन्नस्तुनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीश:।।
स्रग्धरा छन्द ,, अनुप्रास एंव समासोक्ति अलंकार , आशीर्वादात्मक मंगलाचरण , अष्टमूर्ति भगवान शिव की
स्तुति ।अष्टपदात्मिका
पत्रलवी नामक नान्दी।
शब्दार्थ
जिस सृष्टि को ब्रह्मा ने सबसे
पहले बनाया, वह अग्नि जो
विधि के साथ दी हुई हवन सामग्री ग्रहण करती है, वह होता जिसे
यज्ञ करने का काम मिला है, वह चन्द्र और सूर्य जो दिन और रात
का समय निर्धारित करते हैं, वह आकाश जिसका गुण शब्द हैं और
जो संसार भर में रमा हुआ है, वह पृथ्वी जो सब बीजों को
उत्पन्न करने वाली बताई जाती है, और वह वायु जिसके कारण सब
जीव जी रहे हैं अर्थात् उस सृष्टि, अग्नि, होता, सूर्य, चन्द्र, आकाश, पृथ्वी और वायु इन आठ प्रत्यक्ष रूपों में जो
भगवान शिव सबको दिखाई देते हैं, वे शिव आप लोगों का कल्याण
करें।
3. मेघदूतम्-
कश्चित्कान्ता विरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत:
शापेनास्तग्ङमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तु:।
यक्षश्चक्रे जनकतनया स्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।
वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण कश्चित शब्द ब्रहा का वाचक है अतः मांगलिक है)
कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्नी का भारी विरह
सहो। इससे उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और
जहाँ सीता जी के स्नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।
4. नीतिशतकम् -
दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये ।
स्वानुभूत्येकमानाय नम: शान्ताय तेजसे ।।1
नमस्कारात्मक मंगलाचरण ब्रहा को नमस्कार ।
अनुष्टुप छन्द , अनुप्रास एंव स्वभावोक्ति अलंकार
दिशाओं और कालों से अपरिमित (मापा न जा सकने वाले), अनन्त तथा चैतन्यस्वरूप वाले, केवल व्यक्तिगत अनुभवों से जाने जा सकने वाले, शान्ति और ज्योति स्वरूप उस परब्रह्म को प्रणाम है ।
5. शिवराजविजयम्-
"विष्णोर्माय भगवती यया स्मोहितं जगत" *(भागवत-10/1/25*)
"हिस्त्रः स्वपापेन विहिंसितः खलः साधुः समत्वेन भयाद् विमुच्यते" *(भागवत--10/7/31*)
वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण भगवान विष्णु तथा उनकी ऐश्वर्यशालिनी माया का कथन है ।।
6. किरातार्जुनीयम् –
श्रियः कुरूणामधिपस्य पालनीं प्रजासु वृत्तिं यमयुङ्क्त वेदितुम्
।
स वर्णिलिङ्गी विदितः समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचरः ।।
वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण लक्ष्मी की
स्तुति , वंशस्थ छन्द।
7. उत्तररामचरितम्-
इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे।विन्देम देवतां
वाचममृतामात्मनः।।
नमस्कारात्मक मंगलाचरण स्तुति सरस्वती(वाक् देवी)
द्वादश पद नान्दी का प्रयोग , पथ्यावक्त्र
छन्द , श्लेष अलंकार।
नीतिशतकम् मङ्गलाचरणम्
दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये ।
स्वानुभूत्येकमानाय नम: शान्ताय तेजसे ।।1
सरलार्थ: - प्राच्यादिदिशाभि:, कालै: च यस्य मापनं नैव शक्यं विद्यते, य: अन्तरहित: अस्ति, य: परमज्ञानस्वरूपम्, केवलं अनुभवेन एव ज्ञातुं शक्य: अस्ति, य: शान्तिस्वरूपम्, ज्योतिस्वरूपम् च अस्ति तस्मै परमात्मने नमस्कृयते ।
छन्द: - अनुष्टुप छन्द:
छन्दलक्षणम् - पंचमं लघु सर्वत्र, सप्तमं द्विचतुर्थयो: । षष्ठं गुरु विजानीयादेतत्पद्यस्य लक्षणम् ।
हिन्दी - दिशाओं और कालों से अपरिमित (मापा न जा सकने वाले), अनन्त तथा चैतन्यस्वरूप वाले, केवल व्यक्तिगत अनुभवों से जाने जा सकने वाले, शान्ति और ज्योति स्वरूप उस परब्रह्म को प्रणाम है ।
काव्यनुवाद -
दिशा काल से अपरिमित अविनाशी जगदीश ।
शान्त !, तेज !, अनुभूतिगत ब्रह्म ! दास नतशीश ।।
इति