बुधवार, 28 अगस्त 2024

संस्कृत भाषा का महत्त्व तथा आश्चर्यजनक तथ्य-

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संस्कृत भाषा का महत्त्व तथा आश्चर्यजनक तथ्य-

  1. संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा विश्व का सर्वप्रथम ग्रन्थ ऋग्वेद संस्कृत में ही है।
  2. सबसे शुद्ध व्याकरण (Accurate Grammar) आचार्य पाणिनी सुविरचित-‘अष्टाध्यायी’ संस्कृत का ही है।
  3. सबसे अच्छा कैलेंडर जिसमें नया साल सौर-प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है संस्कृत का है। संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी
  4. स्वास्थ्य के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है दिमाग तेज होता है, स्मरण-शक्ति, एकाग्रता तथा सकारात्मकता बढ़ती है। यह ‘स्पीच-थैरपी’ में भी मददगार है। विसर्ग(:) से उच्चरण से कपालभाती प्राणायाम तथा अनुस्वार (म्) के उच्चारण से भ्रामरी प्राणायाम का लाभ प्राप्त होता है।
  5. भाषाओं की माँ संस्कृत- विश्व की लगभग सभी भाषाएं (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संस्कृत से प्रभावित है। जैसे- हिन्दी, इंगलिश, जर्मन आदि।  संदर्भ: यूएनओ
  6. कंप्यूटर में प्रयोग के लिए भी सबसे अच्छी भाषा है अगली पीढ़ी के ‘सुपर कंप्यूटर’ संस्कृत भाषा पर आधारित बनाए जा रहे हैं जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। तथा नासा के पास संस्कृत  की 60,000 ताड़-पत्तों की पांडुलिपियां हैं जिनपर वे अध्ययन कर रहे हैं । संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1987 आदि
  7. किसी अन्य भाषा की अपेक्षा संस्कृत में सबसे कम शब्दो में वाक्य पूरा किया जा सकता है।                                  जैसे- असतो मा सद्गमय। (मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो)
  8. संस्कृत के प्रयोग से जीभ की सभी मांसपेशियो का प्रयोग तथा विकास होता है,  जिससे अन्य भाषाओं का उच्चारण भी सुलभ (Easy) होता  है।
  9. संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं।                                                             जैसे- अहं विद्यालयं गच्छामि।                                                गच्छामि अहं विद्यालयम्।                                            विद्यालयं गच्छामि अहम्।                                              इन तीनों वाक्यों के अर्थ में कोई अंतर नहीं है तथा व्याकरण के अनुसार भी सही है।
  10. संस्कृत में मात्र धार्मिक ग्रन्थ (पुराणादि) ही नहीं अपितु- चारों वेद, एतिहासिक ग्रन्थ ( रामायण, महाभारत), अद्भुत साहित्य (अभिज्ञानशाकुन्तलम्, मेघदुत, पंचतन्त्र, हितोपदेश), चिकित्सा तथा आयुर्वेद (चरकसंहिता), गणित (आर्यभट्टीयम्), खगोलविज्ञान (सिद्धान्तशिरोमणि), ज्योतिर्विज्ञान (बृहज्जातकम्, बृहत्पराशर-होराशास्त्रम्), योग, व्याकरण (अष्टाध्यायी), दर्शन (109 उपनिषद् आदि), नीति (चाणक्य नीति, विदुरनीति), वास्तुशास्त्र, नाट्यशास्त्र आदि विषयों पर असंख्य ग्रन्थ उपलब्ध हैं।
  11. अभी भी ‘मुत्तुर गांव, कर्नाटक’ में केवल संस्कृत में ही वार्तालाप होता है तथा यह उत्तराखण्ड की द्वितीय अधिकारिक भाषा है। भारत में ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी संस्कृत आज भी विश्वविद्यालय स्तर तक पढ़ाई जा रही है।

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संस्कृत में रोजगार के क्षेत्र-

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संस्कृत में रोजगार के क्षेत्र-

संस्कृत भाषा एवं विषय के अध्ययन के पश्चात् युवाओं के लिए रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध हैं, संस्कृत भाषा के अध्ययन के पश्चात् प्राप्त होने वाले रोजगार के अवसरों की यहाँ पर चर्चा की जा रही है. ये अवसर सरकारी,  निजी और सामाजिक सभी क्षेत्रों में मौजूद हैं-
सरकारी क्षेत्र –
  1. प्रशासनिक सेवा - केन्द्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य स्तर पर राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा इसके लिए प्रतिवर्ष रिक्तियां निकाली जाती हैं. जो युवा संस्कृत से स्नातक हैं, वे इसके लिए आवेदन कर सकते हैं.
  2. प्राथमिक अध्यापक – प्राथमिक स्तर पर अध्यापन के लिए देश भर में शिक्षकों की आवश्यकता रहती है, किसी राज्य में बारहवीं कक्षा तो कहीं स्नातक कक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थी  शिक्षक-प्रशिक्षण के पात्र होते हैं. जिन छात्रों ने संस्कृत विषय के साथ विशारद या शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे भी इस प्रशिक्षण के लिए पात्र होते हैं.
  3. प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक (टी.जी.टी) – देश भर में माध्यमिक विद्यालयों में कहीं अनिवार्य और कहीं ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत विषय का अध्यापन किया जाता है, जिसमें पढ़ाने वाले प्रशिक्षित अध्यापकों का चयन राज्य भर्ती बोर्ड अथवा केन्द्रय विद्यालय संगठन सी.बी.एस.सी. के माध्यम से होता है। संस्कृत से स्नातक परीक्षा (शास्त्री, बी.ए.) उत्तीर्ण और अध्यापन में प्रशिक्षण (बी.एड.) प्राप्त अभ्यर्थी इसके लिए पात्र होते हैं। के.व. सं www.kvsangathan.nic.inwww.himachal.nic.in/hpsssb www.dsssbonline.nin.in तथा समस्त राज्यों के शिक्षा विभाग समय समय पर इसकी सूचना प्रकाशित करते रहते हैं।
  4. प्रवक्ता अथावा पी.जी.टी– देश भर में उच्च माध्यमिक विद्यालयों में ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत का अध्यापन किया जाता है, जिसमें अध्यापन करने वाले प्रवक्ताओं का चयन केंद्र एवं राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. संस्कृत विषय से परास्नातक(एम.ए.) परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थी इसके लिए पात्र होते हैं।
  5. सहायक व्याख्याता– देश भर के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों एवं राज्य विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अध्यापन किया जाता है, जिसमें अध्यापन करने वाले सहायक व्याख्याताओं का चयन विश्वविद्यालय अथवा राज्य भर्ती बोर्ड के माध्यम से होता है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा(NET/SLET) तथाकनिष्ठ शोध अध्येतावृत्ति परीक्षा(JRF) उत्तीर्ण छात्र इसमें चयन के लिए पात्र होते हैं। 25 तथा 73 दो कोड संस्कृत विषय हेतु नेट परीक्षा का आयोजन करते हैं। https://cbsenet.nic.in
  6. अनुसन्धान सहायक - संस्कृत में शोध कार्य करने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र के शोध-संस्थान अपने यहाँ अनुसन्धान सहायकों की नियुक्ति करते हैं. इस पद के लिए अनिवार्य योग्यता संस्कृत विषय में परास्नातक अथवा विद्यावारिधि (Ph.D.) है। ये नियुक्तियाँ कहीं-कहीं पर वेतनमान और कहीं पर निश्चित मानदेय पर की जाती हैं.
  7. सेना में धर्मगुरु– भारतीय सेना में अधिकारी स्तर(JCO) का धर्मगुरु का पद होता है। जिन छात्रों ने संस्कृत विषय के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की है तथा निर्धारित शारीरिक मानदण्ड को पूरा करते हैं, वे इस परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं। सेना के भर्ती बोर्ड द्वारा समय समय-समय पर इस पद हेतु रिक्तियां निकाली जाती हैं. www.joinindianarmy.nic.in
  8. अनुवादक- सरकारी प्रतिष्ठान और सामाजिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों में अनुवादक का पद होता है, विभिन्न भाषाओं में आये पत्रों तथा अन्य साहित्य के अनुवाद कार्य के लिए इस पद पर नियुक्ति की जाती है. स्नातक स्तर पर संस्कृत का अध्ययन तथा अनुवाद में डिप्लोमा प्राप्त करने वाले छात्र इसमें आवेदन करने के लिए अर्ह होते हैं. इस पद के लिए माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों के बराबर ही वेतनमान निर्धारित होता है.
  9. योग शिक्षक– आज दुनियाँ भर में जिस प्रकार स्वास्थ्य और योग के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, उससे योग प्रशिक्षकों की मांग भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। संस्कृत के जिन स्नातकों ने गुरुकुल में योग का अभ्यास किया है और योगशिक्षा में कोई उपाधि प्राप्त की है, वे इस क्षेत्र में आसानी से रोजगार पा सकते हैं. सरकारी विद्यालयों एवं गैर सरकारी उपक्रमों में योग प्रशिक्षितों के लिए पर्याप्त मात्रा में रिक्तियां निकलती रहती हैं. आजकल बहुराष्ट्रीय संस्थाएं भी योग प्रशिक्षकों की सेवाएँ लेने लगीं हैं।
  10. पत्रकार– पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है. भारत में यह फलता-फूलता उद्योग है, जो युवाओं के लिए न केवल रोजगार के अवसर उपलब्ध करता है, अपितु चुनौतीपूर्ण कार्यों के माध्यम से यश और प्रतिष्ठा भी प्रदान करता है। जिन छात्रों ने संस्कृत में स्नातक उपाधि प्राप्त की है तथा पत्रकारिता में प्रशिक्षण लिया है वे इस क्षेत्र में कार्य के लिए पात्र होते हैं। भाषा पर मजबूत पकड़ के कारण संस्कृत के छात्रों को अन्य प्रतियोगियों की अपेक्षा वरीयता प्राप्त होती है। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में कार्य के अनेक अवसरों के साथ वेतन व सुविधाओं की यहाँ कोई सीमा नहीं होती है.डीडी न्यूज चैनल पर प्रतिदित संस्कृत वार्ता (समाचार) तथा विशेष कार्यक्रम वार्तावली का प्रसारण किया जाता है।

  1. सम्पादक– किसी पुस्तक, पत्र–पत्रिका के प्रकाशन में सम्पादक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। संस्कृत के साथ ही हिन्दीभाषी क्षेत्र में पत्र-पत्रिका या पुस्तकों के प्रकाशन संस्थानों में सम्पादक का कार्य करने के लिए संस्कृत के अध्येताओं को वरीयता दी जाती है. इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र में अवसर हैं, जहाँ वेतन और प्रतिष्ठा की लिए असीम संभावनाएं हैं। इलेक्ट्रोनिक मीडिया के आ जाने के बाद यह क्षेत्र बहुत ही आकर्षक और चुनौतीपूर्ण हो गया है.
  2. लिपिक– सरकारी क्षेत्र (कर्मचारी चयन आयोग एवं रेलवे आदि) में लिपिक संवर्ग में नियुक्ति के लिए बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक है. संस्कृत के वे छात्र जिन्होंने बारहवीं या विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे इस नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. पूरे वर्ष किसी न किसी विभाग में इस पद पर भर्ती के लिए रिक्तियां आती रहती हैं।  
निजी एवं सामाजिक क्षेत्र –
  1. लेखक– जिन छात्रों की साहित्य विमर्श एवं सृजन में अभिरुचि है, वे संस्कृत साहित्य से प्रेरणा लेकर लेखन कार्य कर सकते है. आजकल लेखन का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जिसमें प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, विज्ञापन, रेडियो, टेलीविज़न आदि के लिए लेखन भी आता है.
  2. ज्योतिषी – ज्योतिषी के रुप में भी अपना कार्यालय खोलकर जीविकोपार्जन किया जा सकता है। अथवा किसी संस्था के साथ भी जुडा जा सकता है। www.futurepointindia.com
  3. वास्तु सलाहकार- वास्तु सलाहकार के रूप में रोजगार का एक नया विकल्प उपलब्ध है. संस्कृत के स्नातक वास्तुविज्ञान में दक्ष होकर रोजगार का अवसर सृजित कर सकते हैं. वास्तुशास्त्र में कोर्स सरकारी विश्विद्यालयों से भी किया जा सकता है। यथा- www.Slbsrsv.ac.in
  4. पुरोहित– भारत जैसे देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले सोलह संस्कारों एवं अन्य उपासना अनुष्ठानों में पुरोहित की आवश्यकता पड़ती है. इसके विशेषज्ञ पुरोहित वर्ग के लिए रोजगार का यह एक अच्छा विकल्प है. इस क्षेत्र में भी आय अध्येता के ज्ञान और कौशल पर आश्रित है.
  5. प्रवाचक - भारतीय दर्शन और लोक जीवन की बेहतर समझ रखने वाले संस्कृत के अध्येता इस क्षेत्र में आकर सामाजिक कल्याण के साथ आजीविका के लिए श्रेष्ठ अवसर पा सकते हैं. इस क्षेत्र में यश और प्रतिष्ठा के साथ जीवनवृत्ति की अपार सम्भावनाएं हैं.
  6. दार्शनिक – दर्शन व्यक्ति से लेकर समाज और राष्ट्र तक की दिशा तय करता है. समाज में कुछ ऐसे प्रश्नों पर विमर्श करने, जिनके समाधान आम सामाजिक व्यवस्था और तन्त्र के पास नहीं होते हैं अथवा बदलते सामाजिक और वैश्विक परिदृश्य में परम्परागत मूल्यों के साथ नवीन जीवन दृष्टि का तालमेल बिठाने में दार्शनिकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसलिए समाज में इन्हें सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है. इनके लेखों और व्याख्यानों से प्राप्त होने वाली आय उच्चस्तरीय जीवनयापन के लिए पर्याप्त होती है. इसके अतिरिक्त ऐसे अध्येताओं को औपचारिक रूप से कुछ संस्थानों में सेवा करने के अवसर भी प्राप्त होते हैं.
  7. समाजसुधारक - सामाजिक समरसता की स्थापना और समाज को जोड़ने में समाज सेवकों की बड़ी भूमिका होती है. छोटे-बड़े आयोजन हों या आपदागरीबों की शिक्षादीक्षास्वास्थ्य हो या अन्य ऐसे कार्य जिस ओर सुविधा सम्पन्न वर्ग का ध्यान नहीं जाता हैउस ओर समाज सुधारक कार्य करते हैं. समकालीन अव्यवस्थाओं और बुराइयों से समाज को बचाकर रखनासत्ता और धर्मं की स्थापनाओं को समाज के निचले तबके तक पहुँचाने का कठिन कार्य भी इन्हीं समाज सुधारकों का है. समाज में ऐसे लोगों की बड़ी प्रतिष्ठा है. कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं ऐसे लोगों के कार्य की सराहना करतीं हैं और बड़े-बड़े पुरस्कारों से उनका सम्मान करती हैं. ऐसे लोगों की जीवनवृत्ति सञ्चालन का दायित्व समाज अथवा स्वयंसेवी संस्थाएं स्वयं अपने ऊपर ले लेती हैं.
  8. नेता - छोटी से छोटी लोकतान्त्रिक इकाई से लेकर प्रदेश और राष्ट्र में नेतृत्व और व्यवस्था बनाने का गुरुतर दायित्व नेता के कन्धों पर होता है. नेता समाज या राष्ट्र को जिस दिशा की ओर ले जाना चाहता हैजनता उसी की ओर उन्मुख होकर चलने को तैयार हो जाती है. इसलिए किसी भी राष्ट्र में नेतृत्व का शिक्षित और संस्कारी होना अत्यावश्यक है. भारत जैसे बहुल जनसँख्या प्रधान और विशाल देश में केवल राजनीति में ही नहीं अपितु प्रत्येक क्षेत्र में कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है. संस्कृत के अध्येताओं से ये अपेक्षा रहती है की वे जिस क्षेत्र में जायेंगे वहाँ पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करेंगेइसलिए उनके लिए यह क्षेत्र भी खुला हुआ है. इस क्षेत्र में पदप्रतिष्ठाचुनौतियाँअवसर और कार्यक्षेत्र की कोई सीमा नहीं हैं.
  9. अन्वेषक  पूरे संसार में इतिहास आदि के ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत संस्कृत साहित्य है. वेदपुराणरामायण और महाभारत से लेकर संस्कृत के ललित साहित्य में तत्कालीन समाज एवं व्यवस्था का चित्रण है. इतिहासभूगोलशासन व्यवस्थाव्यापारकृषिजलवायुनदियाँबादलअधिवासग्रह-नक्षत्र सबके बारे में संस्कृत के विशाल साहित्य में चर्चा मिलती है. इन तत्वों के बारे में विमर्श करना तथा समय की आवश्यकता के अनुसार इनका विश्लेषण करना अन्वेषकों का कार्यक्षेत्र है. नासा जैसी संस्थाएं इस पर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहीं है. भारत में भी ऐसे विद्वानों की आवश्कता हैजो तथ्यों को जुटाकर उनकी प्रामाणिकता पर कार्य करें.
  10. उद्योगपति - भारत जैसे विशाल जनसँख्या वाले देश में कल कारखाने लगाना बहुत ही लाभ देने वाला रोजगार मन जाता है. संस्कृत का अध्येता उद्योग लगाकर कितना प्रगति कर सकता हैइसका अनुमान पतंजलि प्रतिष्ठान जैसे उपक्रमों से लगाया जा सकता है. खान-पानस्वास्थ्यसौन्दर्य प्रसाधन पूजा सामग्री आदि ऐसे अनेक क्षेत्र हैजिसमें संस्कृत का ज्ञान सहायता करता है. भावनात्मक रूप से भी लोग इस क्षेत्र में आदर प्राप्त विद्वानों के उत्पाद प्रयोग करने में आगे देखे जाते हैं. इसके अतिरिक्त ऐसा कोई उद्योग-व्यापार नहीं हैजहाँ संस्कृत अध्येता के लिए अवसर न हो.
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बालगीतम्

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चटका ब्रूते चूँ चूँ चूँ
वदति कुक्कुटः कुकडूँ कूॅं ।।

वदति कोकिलः कुहू कुहू
हर्षं यामो मुहुः मुहुः ।।

शिखिनः वाणी केका केका
टर्र–टर्र कुरुते मण्डूकः ।।

बालः विहसति हा हा हा
काकः प्रलपति का का का ।।

वदति वानरः खौं खौं खौं
भषति कुक्कुरो भौं भौं भौं ।।

शब्दार्थ :
चटका - चिड़िया । कुक्कुटः - मुर्गा । भृङ्गः - भौंरा । गुञ्जति - गुंजार करता है । कपोतः - कबूतर ।  शिखिनः - मोर की । मण्डूकः - मेंढक । बालः - बालक । विहसति - हँसता है । काकः - कौवा । प्रलपति - चिल्लाता है । वानरः - बन्दर । कुक्कुरः - कुत्ता । भषति - बोलता है । कोकिलः - कोयल । हर्षं यामो - खुश होते हैं । मुहुः-मुहुः - बारबार ।

 नोट- यह कविता उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग की कक्षा चार की पुस्तक से गृहीत है । इसमें पशु–पक्षियों की बोली को लयबद्ध किया गया है ।

सोमवार, 25 मार्च 2024

मुद्राराक्षस की संक्षिप्त कथा

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                              मुद्राराक्षस की संक्षिप्त कथा 




यह 6 अंको का राजनीति - विषयक नाटक है। इसमें मुद्रा (अंगूठी) के द्वारा राक्षस को वश में करने का वर्णन है, अत: इसका नाम मुद्राराक्षस पड़ा। इसमे चाणक्य ने, नंदवंश का नाश किया है और अपनी कूटनीतिक चालों से नन्दवंश के मुख्य मंत्री राक्षस को वह चन्द्रगुप्त का मुख्य मंत्री बना देता है। क्योंकि बिना राक्षस को नियंत्रित किये चन्द्रगुप्त का राज्य स्थिर नहीं हो सकता।


अंक प्रथम चाणक्य स्वयं नन्द्रवंश के नाश की प्रतिज्ञा करते हैं, और नन्द्रवंश के मुख्यमंत्री  राक्षस को अपने वश में करके चन्द्रगुप्त का राज्य सुइट कमुख्य मंत्री बनाकर उसका कर ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं। विषानुसार योजनाएँ बनायी जाती हैं। चाणक्य के प्रयोग से मायकेत के पिता, पर्वतक की हत्या काता राष्ट्रमस ने एक राक्षस है और ने उसे मरवाया गुप्तचर प्रचार "करता है कि है। चाणक्य का जिसका नाम क्षपणक, जीवसिद्धि है का परम राक्षस के परम मित्र बन जाता है दो अन्य मित्र हैं- सेठ चन्दनदास एक जोहरी ओर शकटदास ( एक कायस्था । चाणक्य के एक गुप्तचर को झूठ चन्दनदास के घर स और वह चाणक्य, क्षसू की राक्षस कि एक अंगूठी मिल जाती उस चाणक्य का को दे देता है एक जाली पत्र लिखकर उस मुद्रा से है पेर मुहर लगाकर उन सभी में विद्रोह करा देता है। फिर उसी मुद्रा की सहायता से चन्दनदास (जाहरी) को फाँसी और शकटदास ( कायस्थ) को सपरिवार कारावास की सजा सुना देता हैं।

 

अंक द्वितीय - राक्षस के एक गुप्तचर द्वारा ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त  ' के वध की ' राक्षस की योजना असफल हो गयी हैं और उसके  ही आदमी मारे गए हैं। चाणक्य का ही एक व्यक्ति जिसका नाम सिद्धार्थक है वह शकटदास को बचाकर राक्षस का प्रेमपात्र, बनता है और उसके राक्षस की मुद्रा भी उसे लौटाता है। पश्चात् राक्षस के गुप्तचर के द्वारा चाणक्य और चंद्रगुप्त में मनमुटाव की सूचना राक्षस को दी गई है।


अंक तृतीय - राक्षस को धोखा देने के  लिए चन्द्रगुप्त और चाणक्य के बीच मे कृत्रिम कलह दिखाया जाता है। 'कौमुदी महोत्सव' मनाने की आज्ञा को चाणक्य रोक देता है। परन्तु चन्द्रगुप्त इस स्वीकार नहीं करता और आज्ञा को चन्द्रगुप्त द्वारा चाणक्य को बुलाया जाने पर, चाणक्य कृत्रिम (नकली) कोध करता है और मन्त्री पद से त्याग पत्र प्रस्तुत करता है। राक्षस के गुप्तचर इस घटना को वास्तविक कलह समझते हैं।


अंक चतुर्थ - राक्षस का गुप्तचार सुचना देता है कि चन्द्रगुप्त, और चाणक्य के बीच मन मुटाव हो गया है और चंद्रगुप्त ने चाणक्य को मन्त्रिपद से हटा दिया है। मलयकेतु को विश्वास, हो जाता है कि राक्षस चाणक्य से क्रुद्ध हैं चन्द्रगुप्त से नहीं अतः राक्षस और मलयकेतु चंद्रगुप्त पर आक्रमण करने की योजना बनाते हैं।


अंक-पंचम - चाणक्य अपनी करनीति के द्वारा  राक्षस और मलयकेतु में फुट डालने में समर्थ होता है। चाणक्य   ने शकटदास से एक पत्र लिखवाया जिसमे चन्द्रगुप्त को राजा बनाने की बात लिखी और उस पर राक्षस की मुद्रा लगाकर उसे राक्षस के अन्य मित्रा के पास भेजा। राक्षस का कपटी मित्र सिद्धार्थक उसे ले जाता है। चाणक्य ने पर्वतश्वर के आभूषण गुप्तचरों के द्वारा राक्षस को ही बेच दिया। और जब वह आभूषण राक्षस के पास मिले तो इससे मलयकेतु को विश्वास हो जाता है कि राक्षस ने ही उसके पिता पर्वतेश्वर की हत्या की है।


अंक षष्ठ - अमात्य राक्षस मलयकेतु के सैन्य शिविर से निकल कर पहना आ जाता है। चाणक्य के आदेशानुसार दो व्यक्ति चन्दनदास को पकड़कर वध्यभूमि ले जाते हैं। 'चाणक्य के एक गुप्तचर से राक्षस को कि  सूचना मिलती है कि चन्दनदास को फांसी दी जा रही है। चंदनदास को फाँसी देने के लिए वध्र्यभूमि की ओर ले जाया जा रहा है। आमात्य राक्षसवहाँ पहुँच कर अपने परम मित्र चन्दनदास के प्राणों की रक्षा के लिए आत्म- समर्पण करता है। चाणक्य इस शर्त पर चन्दनदास को छोड़ने के लिए तैयार होता कि राक्षस चन्द्रगुप्त का अमात्य बन जाए। राक्षस तैयार हो जाता है।

 इस प्रकार चाणक्य की कूटनीतिक चाल से राक्षस जैसा अमात्य चंद्रगुप्त के राज्यसभा की सोभा को गौरवान्वित करता है। 

पंचतन्त्र

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पञ्चतन्त्र इतिहास में सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय कथाग्रन्थ हैं। इसकी कथाएँ सभी वर्गों के लोगो को रूचिकर और प्रिय लगती हैं।पञ्चतन्त्र के लेखक का नाम विष्णुशर्मा हैं।

पंचतंत्र का समय इतिहासकारों केअनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य (३४५ ई० पू० - ३०० ई० पू०) के समकालीन माना गया है। इस प्रकार इसके लेखन का समय ३०० ५ ई० पू० के लगभग होगा। प्रो० हर्टल इसका समय लगभग २०० ई० पू० मानते हैं। डा. हर्टल और प्रो० एडगर्तत ने पंचतन्त्र के मूलरूप के लिए बहुत परिश्रम किया है।


पंचतंत्र की कथा और शैली :-

\महिलारोप्य, के राजा अमर शक्ति के तीन मूर्ख पूत्रों को को ६ मास में बुद्धिमान तथा राजनीतिक विद्या में पारंगत बनाने का बीड़ा उठाकर विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की रचना का कार्य प्रारंभ किया और अपनी प्रतिज्ञा को भी उन्होंने पूरा किया। पंचतन में ५ मुख्य कथाएं हैं। प्रत्येक कथा में अनेक अकथाएँ हैं।

प्रत्येक तंत्र में एक-एक नीति - शिक्षा दी है।

तत्रों के नामादि इस प्रकार हैं :-                             

                                                 अकथाएँ                   श्लोकसंख्या                   कथा

1-मित्रभेद                                        22                         ४६१(461)             शेर और बैल की मित्रता तुडवाना

2- मित्रसंप्राप्ति                                 6                           १९९(199)          काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी

3- काकोलूकीय                                16                          २५५ (255)          काक और उल्लू की कथा

 4- लब्धप्रणाश                                 11                          ८० (80)              बन्दर और मगर की कथा

5- अपरीक्षितकारक                         14                           ८८ (88)              ब्राहमणी और न्याले की कथा

मित्रभेद में यह ज्ञान दिया गया है कि किस प्रकार दो मित्रों में झगड़ा करा दिया जाए। शेर निगलक और बैल संजीवक घनिष्ट मित्र थे। करतक और दमनक नामक दो गीदड़ो ने उनमें फूट डाल दी और बैल की हत्या करवा दी।

 मित्रसंप्राप्ति में नीतिशिक्षा है कि अनेक उपयोगी मित्र बनाने चाहिए। कौआ, कछुआ, हिरन और चूहा साधनहीन होने पर भी मित्रता के बल पर सुखी रहे।

काकोलूकीय में नीति शिक्षा है कि स्वार्थसद्धि के लिए शत्रु से भी मित्रता कर ले और बाद में उसे धोखा देकर नष्ट कर दे  अर्थात् सन्धि-विग्रह की शिक्षा। कौआ उल्लू 'से मित्रता कर लेता है और बाद में उल्लू के किले में आग लगा देता है।

लब्ध-प्रणाश में नीतिशिक्षा है कि वुद्धिमान् बुद्धि-बल में जीत जाता है और मूर्ख हाथ में आई हुई वस्तु से भी हाथ खो बैठता है। बन्दर और मगर की मित्रता होती है। मगर की पत्नी बन्दर का मीठा दिल चाहती है। बन्दर मगर से यह कहकर जान बचाता है कि मेरा दिल पेड़ पर छूट गया है, अत: किनारे पहुँचा दो। बदर भाग जाता है और मगर मूँह ताकता रह जाता है। हाथ में आई हुई वस्तु भी मुर्खता से हाथ से निकल जाती है। 

अपरीक्षित-कारक की नीति शिक्षा है कि बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताए। ब्राह्मणी ने अपने प्रिय तथा सर्प से शिशु की रक्षा करने वाले नेवले की चट समझ कर हत्या कर दी कि उसने बच्चे को मार डाला है। वह बिना विचारे काम करने से बाद में पछताती है।

पंचतन्त्र का विश्वव्यापी प्रचार

पशुकथा के माध्यम से राजनीति की शास्त्र शिक्षा देने के कारण पंचतन्त्र का विश्वव्यापी प्रचार हुआ है। बाइबिल के बाद इसका ही संसार में सबसे अधिक प्रचार है। इसके लगभग २५० संस्करण विश्व की ५० से अधिक भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से तीन-चौथाई भाषाएँ भारत से बाहर की हैं। एशिया और यूरोप में ही नहीं, अपितु अन्य महाद्वीपों में भी इसका प्रचार प्रसार है।