मुद्राराक्षस की संक्षिप्त कथा
यह 6 अंको का राजनीति - विषयक नाटक है। इसमें मुद्रा (अंगूठी) के द्वारा राक्षस को वश में करने का वर्णन है, अत: इसका नाम मुद्राराक्षस पड़ा। इसमे चाणक्य ने, नंदवंश का नाश किया है और अपनी कूटनीतिक चालों से नन्दवंश के मुख्य मंत्री राक्षस को वह चन्द्रगुप्त का मुख्य मंत्री बना देता है। क्योंकि बिना राक्षस को नियंत्रित किये चन्द्रगुप्त का राज्य स्थिर नहीं हो सकता।
अंक प्रथम - चाणक्य स्वयं नन्द्रवंश के नाश की प्रतिज्ञा करते हैं, और नन्द्रवंश के मुख्यमंत्री राक्षस को अपने वश में करके चन्द्रगुप्त का राज्य सुइट कमुख्य मंत्री बनाकर उसका कर ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं। विषानुसार योजनाएँ बनायी जाती हैं। चाणक्य के प्रयोग से मायकेत के पिता, पर्वतक की हत्या काता राष्ट्रमस ने एक राक्षस है और ने उसे मरवाया गुप्तचर प्रचार "करता है कि है। चाणक्य का जिसका नाम क्षपणक, जीवसिद्धि है का परम राक्षस के परम मित्र बन जाता है दो अन्य मित्र हैं- सेठ चन्दनदास एक जोहरी ओर शकटदास ( एक कायस्था । चाणक्य के एक गुप्तचर को झूठ चन्दनदास के घर स और वह चाणक्य, क्षसू की राक्षस कि एक अंगूठी मिल जाती उस चाणक्य का को दे देता है एक जाली पत्र लिखकर उस मुद्रा से है पेर मुहर लगाकर उन सभी में विद्रोह करा देता है। फिर उसी मुद्रा की सहायता से चन्दनदास (जाहरी) को फाँसी और शकटदास ( कायस्थ) को सपरिवार कारावास की सजा सुना देता हैं।
अंक द्वितीय - राक्षस के एक गुप्तचर द्वारा ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त ' के वध की ' राक्षस की योजना असफल हो गयी हैं और उसके ही आदमी मारे गए हैं। चाणक्य का ही एक व्यक्ति जिसका नाम सिद्धार्थक है वह शकटदास को बचाकर राक्षस का प्रेमपात्र, बनता है और उसके राक्षस की मुद्रा भी उसे लौटाता है। पश्चात् राक्षस के गुप्तचर के द्वारा चाणक्य और चंद्रगुप्त में मनमुटाव की सूचना राक्षस को दी गई है।
अंक तृतीय - राक्षस को धोखा देने के लिए चन्द्रगुप्त और चाणक्य के बीच मे कृत्रिम कलह दिखाया जाता है। 'कौमुदी महोत्सव' मनाने की आज्ञा को चाणक्य रोक देता है। परन्तु चन्द्रगुप्त इस स्वीकार नहीं करता और आज्ञा को चन्द्रगुप्त द्वारा चाणक्य को बुलाया जाने पर, चाणक्य कृत्रिम (नकली) कोध करता है और मन्त्री पद से त्याग पत्र प्रस्तुत करता है। राक्षस के गुप्तचर इस घटना को वास्तविक कलह समझते हैं।
अंक चतुर्थ - राक्षस का गुप्तचार सुचना देता है कि चन्द्रगुप्त, और चाणक्य के बीच मन मुटाव हो गया है और चंद्रगुप्त ने चाणक्य को मन्त्रिपद से हटा दिया है। मलयकेतु को विश्वास, हो जाता है कि राक्षस चाणक्य से क्रुद्ध हैं चन्द्रगुप्त से नहीं अतः राक्षस और मलयकेतु चंद्रगुप्त पर आक्रमण करने की योजना बनाते हैं।
अंक-पंचम - चाणक्य अपनी करनीति के द्वारा राक्षस और मलयकेतु में फुट डालने में समर्थ होता है। चाणक्य ने शकटदास से एक पत्र लिखवाया जिसमे चन्द्रगुप्त को राजा बनाने की बात लिखी और उस पर राक्षस की मुद्रा लगाकर उसे राक्षस के अन्य मित्रा के पास भेजा। राक्षस का कपटी मित्र सिद्धार्थक उसे ले जाता है। चाणक्य ने पर्वतश्वर के आभूषण गुप्तचरों के द्वारा राक्षस को ही बेच दिया। और जब वह आभूषण राक्षस के पास मिले तो इससे मलयकेतु को विश्वास हो जाता है कि राक्षस ने ही उसके पिता पर्वतेश्वर की हत्या की है।
अंक षष्ठ - अमात्य राक्षस मलयकेतु के सैन्य शिविर से निकल कर पहना आ जाता है। चाणक्य के आदेशानुसार दो व्यक्ति चन्दनदास को पकड़कर वध्यभूमि ले जाते हैं। 'चाणक्य के एक गुप्तचर से राक्षस को कि सूचना मिलती है कि चन्दनदास को फांसी दी जा रही है। चंदनदास को फाँसी देने के लिए वध्र्यभूमि की ओर ले जाया जा रहा है। आमात्य राक्षसवहाँ पहुँच कर अपने परम मित्र चन्दनदास के प्राणों की रक्षा के लिए आत्म- समर्पण करता है। चाणक्य इस शर्त पर चन्दनदास को छोड़ने के लिए तैयार होता कि राक्षस चन्द्रगुप्त का अमात्य बन जाए। राक्षस तैयार हो जाता है।
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