सोमवार, 7 अगस्त 2023
गुरुवार, 13 जुलाई 2023
श्लोकचतुष्टयम्।।
गुरुवार, 6 जुलाई 2023
कुछ गृन्थों के मङ्गलाचरणम्
कुछ गृन्थों के मङ्गलाचरणम्
1.कादम्बरी (बाणभट्ट)
कथा
नमस्कारात्मक मंगलाचरण, त्रिगुणमय परब्रहा की स्तुति , वंशस्थ छन्द
रजोजुषे
जन्मनि सत्ववृत्तये स्थितौ प्रजानां प्रलये तमःस्पृशे।
अजाय
सर्गस्थितिनाशहेतवे त्रयीमयाय त्रिगुणात्मने नमः।।१।।
हिन्दी-अनुवाद- (जो)
प्राणियों के प्रादुर्भाव काल में रजोगुण युक्त (अर्थात् ब्रह्मा के रूप में), स्थिति-काल में सात्त्विक वृत्ति वाला (अर्थात् सत्त्वगुणयुक्त विष्णु के
रूप में) तथा प्रलयकाल में तमोगुण स्पर्शी (अर्थात् तमोगुण युक्त प्रलयङ्कर शिव के
रूप में) होता है। (संसार की) सृष्टि, स्थिति एवं प्रलय
(विनाश) के कारण बनने वाले, वेदत्रयी में व्याप्त, त्रिगुणस्वरूप एवं अजन्मा (उस) परब्रह्म को नमस्कार है।।१।।
जयन्ति
बाणासुरमौलिलालिता दशास्यचूडामणिचक्रचुम्बिनः।
सुरासुराधीशशिखान्तशायिनो
भवच्छिदस्त्र्यम्बकपादपांसवः।।२।।
हिन्दी-अनुवाद- असुरराज
बाण द्वारा (आदरपूर्वक) सिर-माथे लगाई गई, लंकापति रावण के
शिरोमणि-समूह को चूमने वाली देवताओं तथा राक्षसों के अधिपतियों के शिखाग्रभाग पर
शयन करने वाली, भवबंधन काटने वाली , त्रिनेत्रधारी
भगवान शिव की चरणधूलि विजयिनी बनें।।२।।
जयत्युपेन्द्रः
स चकार दूरतो बिभित्सया यः क्षणलब्धलक्ष्यया।
दृशैव
कोपारुणया रिपोरुरः स्वयं भयाद्धिन्नमिवास्त्रपाटलम्।।३।।
हिन्दी-अनुवाद- (नृसिंह
रूपधारी,
देवराज इन्द्र के अनुजकल्प) ठन उपेन्द्र की जय हो जिन्होंने विदीर्ण
कर देने की इच्छा से दूर से (ही) क्षणमात्र में लक्ष्य को प्राप्त कर लेने वाली
(अतएव) क्रोध के कारण रक्तवर्णा दृष्टि से ही शत्रुकल्प हिरण्यकशिपु के वक्ष:स्थल
को इस प्रकार अस्पताल अर्थात् रुधिर की भाँति श्वेत रक्त बना दिया था, मानो विदारणाय से वह अपने आप फट गया हो।।३।।
नमामि
भोश्चरणाम्बुजद्वयं सशेखरैः मौखरिभिः कृतार्चनम्।
समस्तसामन्तकिरीटवेदिकाविटङ्कपीठोल्लुठितारुणाङ्गुलि।।४।।
हिन्दी-अनुवाद- मुकुट
धारण करने वाले मौखरि क्षत्रियों द्वारा समर्पित तथा समस्त सामन्तों (अधीनस्थ
प्रदेशाधिपतियों) की किरीटरूपी वेदिकाओं की मध्यवर्तिनी विटङ्कभूमि (अर्थात् उन्नत
प्रदेश) पर रगड़ जाने के कारण लाल हो जाने वाली (गुरुदेव) भारवि (भत्सु) के
चरणकमलयुगल की मैं (बाणभट्ट) वन्दना करता हूँ।।४।।
अकारणाविष्कृतवैरदारुणादसज्जनात्कस्य
भयं न जायते।
विषं
महादेव यस्य दुर्वचः सुदुःसहं सन्निहितं सदा मुखे।।५।।
हिन्दी-अनुवाद-बिना किसी
कारण के ही वैरभाव प्रकट करने वाले अतएव क्रूर दुष्टपुरुष से किसे भय नहीं उत्पन्न
होता,
जिसके मुख में अत्यन्त दुस्सह दुर्वचन उसी प्रकार सदैव भरा रहता है
जैसे महासर्प के मुख में अत्यन्त असह्य विष सदैव भरा रहता है।।५।।
2. अभिज्ञानशाकुन्तलम्
या सृष्टि: स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या
हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्त: श्रुतिविषयगुणा: या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहु: सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिन: प्राणवन्त:
प्रत्यक्षाभि: प्रपन्नस्तुनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीश:।।
स्रग्धरा छन्द ,, अनुप्रास एंव समासोक्ति अलंकार , आशीर्वादात्मक मंगलाचरण , अष्टमूर्ति भगवान शिव की
स्तुति ।अष्टपदात्मिका
पत्रलवी नामक नान्दी।
शब्दार्थ
जिस सृष्टि को ब्रह्मा ने सबसे
पहले बनाया, वह अग्नि जो
विधि के साथ दी हुई हवन सामग्री ग्रहण करती है, वह होता जिसे
यज्ञ करने का काम मिला है, वह चन्द्र और सूर्य जो दिन और रात
का समय निर्धारित करते हैं, वह आकाश जिसका गुण शब्द हैं और
जो संसार भर में रमा हुआ है, वह पृथ्वी जो सब बीजों को
उत्पन्न करने वाली बताई जाती है, और वह वायु जिसके कारण सब
जीव जी रहे हैं अर्थात् उस सृष्टि, अग्नि, होता, सूर्य, चन्द्र, आकाश, पृथ्वी और वायु इन आठ प्रत्यक्ष रूपों में जो
भगवान शिव सबको दिखाई देते हैं, वे शिव आप लोगों का कल्याण
करें।
3. मेघदूतम्-
कश्चित्कान्ता विरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत:
शापेनास्तग्ङमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तु:।
यक्षश्चक्रे जनकतनया स्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।
वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण कश्चित शब्द ब्रहा का वाचक है अतः मांगलिक है)
कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्नी का भारी विरह
सहो। इससे उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और
जहाँ सीता जी के स्नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।
4. नीतिशतकम् -
दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये ।
स्वानुभूत्येकमानाय नम: शान्ताय तेजसे ।।1
नमस्कारात्मक मंगलाचरण ब्रहा को नमस्कार ।
अनुष्टुप छन्द , अनुप्रास एंव स्वभावोक्ति अलंकार
दिशाओं और कालों से अपरिमित (मापा न जा सकने वाले), अनन्त तथा चैतन्यस्वरूप वाले, केवल व्यक्तिगत अनुभवों से जाने जा सकने वाले, शान्ति और ज्योति स्वरूप उस परब्रह्म को प्रणाम है ।
5. शिवराजविजयम्-
"विष्णोर्माय भगवती यया स्मोहितं जगत" *(भागवत-10/1/25*)
"हिस्त्रः स्वपापेन विहिंसितः खलः साधुः समत्वेन भयाद् विमुच्यते" *(भागवत--10/7/31*)
वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण भगवान विष्णु तथा उनकी ऐश्वर्यशालिनी माया का कथन है ।।
6. किरातार्जुनीयम् –
श्रियः कुरूणामधिपस्य पालनीं प्रजासु वृत्तिं यमयुङ्क्त वेदितुम्
।
स वर्णिलिङ्गी विदितः समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचरः ।।
वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण लक्ष्मी की
स्तुति , वंशस्थ छन्द।
7. उत्तररामचरितम्-
इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे।विन्देम देवतां
वाचममृतामात्मनः।।
नमस्कारात्मक मंगलाचरण स्तुति सरस्वती(वाक् देवी)
द्वादश पद नान्दी का प्रयोग , पथ्यावक्त्र
छन्द , श्लेष अलंकार।
नीतिशतकम् मङ्गलाचरणम्
दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये ।
स्वानुभूत्येकमानाय नम: शान्ताय तेजसे ।।1
सरलार्थ: - प्राच्यादिदिशाभि:, कालै: च यस्य मापनं नैव शक्यं विद्यते, य: अन्तरहित: अस्ति, य: परमज्ञानस्वरूपम्, केवलं अनुभवेन एव ज्ञातुं शक्य: अस्ति, य: शान्तिस्वरूपम्, ज्योतिस्वरूपम् च अस्ति तस्मै परमात्मने नमस्कृयते ।
छन्द: - अनुष्टुप छन्द:
छन्दलक्षणम् - पंचमं लघु सर्वत्र, सप्तमं द्विचतुर्थयो: । षष्ठं गुरु विजानीयादेतत्पद्यस्य लक्षणम् ।
हिन्दी - दिशाओं और कालों से अपरिमित (मापा न जा सकने वाले), अनन्त तथा चैतन्यस्वरूप वाले, केवल व्यक्तिगत अनुभवों से जाने जा सकने वाले, शान्ति और ज्योति स्वरूप उस परब्रह्म को प्रणाम है ।
काव्यनुवाद -
दिशा काल से अपरिमित अविनाशी जगदीश ।
शान्त !, तेज !, अनुभूतिगत ब्रह्म ! दास नतशीश ।।
इति
कादम्बरी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर संग्रह यहां देखें–
कादम्बरी वाणभट्ट द्वारा रचित संस्कृत साहित्य का महान उपन्यास है। बाणभट्ट राजा हर्षवर्धन के दरबार की शोभा बढ़ाया करते थे। उन्होंने हर्षवर्धन के राज्य और उस समय का वर्णन करते हुए प्रतिष्ठित रचना ‘हर्षचरित’ भी लिखी थी। राजा हर्षवर्धन स्वयं भी संस्कृत के विद्वान हुआ करते थे और उन्होंने ‘नागनन्द’, ‘रत्नावली’ और ‘प्रियदर्शिका’ जैसी रचनाएं संस्कृत में लिखी थीं। ‘कादम्बरी’ दो प्रेम कहानियों का मिश्रण है। इसका यह नाम कहानी की नायिका कादम्बरी के नाम पर दिया गया है। कादम्बरी को चन्द्रपीड़ और महाश्वेता को पुण्डरीक से प्रणय हुआ है और पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। यह कहानी कई जन्मों की है जिसमें एक जन्म में किये गए अच्छे-बुरे कर्मों का फल अगले जन्म में मिला है।
1. अन्वयः का अर्थ क्या है – संतान
2. आश्रम किसका था? – जाबालि ऋषि का
3. इंद्रायुध पूर्वजन्म में कौन था? – पुण्डरीक का मित्र कपिंजल
4. इस घटना के समय उसके पिता की क्या अवस्था थी? – अतिवृद्ध
5. उज्जयनी के राजा कौन है? – तारापीड
6. कादंबरी कथा का प्रधान नायक कौन है? – चन्द्रापीड
7. कादंबरी कथा का प्रारंभ कब से होता हैं? – शूद्रक वर्णन से
8. कादंबरी का मंगलाचरण क्या हैं – नमस्कारात्मक
9. कादंबरी का मुख्य रस क्या है? – श्रृंगार रस
10. कादंबरी की सहनायिका कौन हैं? – महाश्वेता
11. कादंबरी के मंगलाचरण में कौन-सा छन्द हैं? – वंशस्थ
12. कादम्बरी कथा किसकी है? – कल्पना प्रसूत
13. कादम्बरी कथा मे वर्णन क्या है? – तीन जन्मो का
14. कादम्बरी का अनुचर क्या है? – केयूरक
15. कादम्बरी का अर्थ क्या है? – सुरा या मदिरा
16. कादम्बरी का शाब्दिक अर्थ क्या है? – मदिरा
17. कादम्बरी का पात्र किसकी है? – पत्रलेखा की
18. कादम्बरी का प्रधान रस क्या है? – श्रृंगार रस
19. कादम्बरी का प्रमुख पात्र कौन है? – चन्द्रापीड
20. कादम्बरी का स्रोत क्या है? – बृहत्कथा
21. कादम्बरी की कथा कहाँ से ली गई है? – गुणाढ्य की बृहत्त कथा
22. कादम्बरी की माता का नाम क्या है? – मदिरा
23. कादम्बरी की विधा क्या है? – कथा
24. कादम्बरी की सहचरी कौन हैं? – मदलेखा
25. कादम्बरी के अनुचर का क्या नाम है? – केयूरक
26. कादम्बरी के कितने भाग है? – 2
27. कादम्बरी के प्रारम्भ में कितने पद हैं? – 20, 13 में कथा प्रशंसा
28. कादम्बरी के मंगलाचरण में किसकी स्तुति की गई है? – त्रिगुणात्मक ब्रह्म की
29. कादम्बरी के मंगलाचलण मे कितने श्लोक हैं? – 20
30. कादम्बरी के माता पिता का क्या नाम है? – मदिरा और चित्ररथ
31. कादम्बरी के लेखक कौन हैं? – बाणभट्ट
32. कादम्बरी में कथा वर्णित किसकी है? – चन्द्रापीड की
33. कादम्बरी में सरोवर का वर्णन किसका है? – अच्छोद सरोवर का
34. किसके तीन जनमो का वर्णन हैं? – चन्द्रापीड
35. कुबेर का समय क्या निश्चित किया गया है? – 450-430
36. कुबेर के कितने पुत्र थे? – 4
37. कुबेर के पिता का क्या नाम था? – वात्स्यायन
38. कुबेर ने सरलता से किसे जीत लिया था? – स्वर्ग को
39. कुलीरा का अर्थ क्या है? – केकड़ा
40. कौन राजा सिद्धादेश होता है? – उन्मत्तः
41. गद्यकाव्य के कितने भेद हैं? – 2, कथा आख्यायिका
42. गुरू का उपदेश क्या है? – जलविहीन
43. घटिका शतक उपाधि किसे दी गई है? – अम्बिकादत्त व्यास
44. चन्द्रापीड की सेविका का क्या नाम है? – पत्रलेखा
45. चन्द्रापीड के घोड़े का क्या नाम है? – इंद्रायुध
46. चन्द्रापीड के पिता का नाम क्या है? – तारापीड
47. जाबालि के पुत्र का नाम क्या है? – हारीत
48. तात का अर्थ क्या है? – पिता, पुत्र, पूजनीय
49. तारापीड की पत्नि कौन थी? – विलासवती
50. तारापीड की राजधानी का क्या नाम है? – उज्जयिनी
52. तारिलिका किस की सहचरी है? – महाश्वेता की
53. धन सम्पति का भयंकर मद कब तक शांत नही होता? – अंतिम अवस्था तक
54. पत्रलेखा किसकी पुत्री है? – कुलुताधिपति
55. पत्रलेखा पूर्वजन्म में कौन थी? – रोहिणी
56. पारिजात पल्लव से लक्ष्मी क्या ग्रहण करती हैं? – राग
57. पुण्डरीक के पिता का नाम क्या है? – श्वेतकेतु
58. पुण्डरीक के माता पिता का क्या नाम है? – लक्ष्मी और श्वेतकेतु
59. प्राचीनतम गद्य का उदाहरण कहां मिलता है? – कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय सहिंता में
60. प्रीतिकूट किस नदी के तट पर था? – हिरन्यवाह या शोणनाद
61. बाण की पत्नी किसकी बहन थी? – मयूर भट्ट
62. बाण की बहन का क्या नाम था? – मालती
63. बाण के पिता कितने भाई थे? – 11
64. बाण के पूर्वजों का निवास कहां था? – प्रीतिकूट नामक ग्राम
65. बाण के लिए वाणी वाणों बभूव किसने कहा है? – गोवर्धनाचार्य
66. बाणभट्ट का वंश किससे प्रारम्भ होता है? – दधीच तथा सरस्वती के पुत्र
67. बाणभट्ट का समय हिंसात्मक शताब्दी। बाणभट्ट की रीति क्या है? – पांचाली
68. बाणभट्ट की बहिन का नाम क्या है? – मालती
69. बाणभट्ट के अनुसार सज्जन पुरुष श्रेष्ठ वचनों से किसके समान मन हरण करते हैं? –मणि नूपुरों सदृश
70. बाणभट्ट ने अपने गुरु का क्या नाम बताया है? – भर्तु (भत्सु)
71. बाणभट्ट शैव कौन थे – शिव के उपासक
72. बाणस्तु पंचानन किसने कहा है? – श्रीचंद्रदेव
73. बिना मेदोदोष के गुरुत्व उत्पन्न करने वाला कौन है? – गुरुपदेश
74. महापाप कितने है? – 5
75. महाश्वेता का आश्रम कौन-सा है? – अच्छोद सरोवर
76. महाश्वेता की सहचरी का नाम क्या है? – तरलिका
77. राजप्रकृतिः में कौन-सा समास है? – षष्ठी तत्पुरुष
78. राजप्रकृति कैसी होती है? – विह्वला
79. लक्ष्मी निष्ठुरता का गुण किससे प्राप्त किया? – कौस्तुभमणि
80. लक्ष्मी साधु भाव की क्या है? – बाध्यशाला
81. लक्ष्मीमद : शब्द कहाँ का है? – शुकनासोपदेश का
82. वात्स्यायन वंश में कौन ब्राह्मण हुए? – कुबेर
83. विट का अर्थ क्या है? – धूर्त
84. विदिशा किस नदी के किनारे स्थित है? – वेत्रवती
85. वृक्ष किस सरोवर के निकट था? – पम्पा पद्म सरोवर
86. वेशम्पायन की माता का क्या नाम है? – मनोरमा
87. वेशम्पायन को किसने पानी पिलाया? – हारीत ने
88. वैशम्पायन को किस आश्रम में लाया गया? – जाबालि ऋषि के
89. वैशम्पायन को किसने उठाया? – हारीत ने
90. वैशम्पायन को घोंसले से नीचे किसने गिराया था? – शबर सेनापति ने
91. वैशम्पायन जब आश्रम में लाया गया तब कौन सी ऋतु थी? – ग्रीष्म
92. वैशम्पायन पूर्व जन्म में क्या था? – पुण्डरीक
93. शबर किस अवस्था का था? – युवावस्था
94. शबर के चले जाने पर शुक को किसकी अनुभूति हुई? – प्यास की
95. शुक का क्या नाम था? – वैशम्पायन
96. शुक किस वृक्ष पर रहता था? – शाल्मली
97. शुक शबर की दृष्टि से कैसे बचा? – शाल्मली की जड़ों में छिपकर
98. शुकनसोपदेश में उपदेश कौन देता है? – शुकनाश
99. शुकनाश किसे उपदेश देता है? – चन्द्रापीड
100. शुकनाशोपदेश किस ग्रन्थ का अंश है? – कादम्बरी का
101. शुकनाशोपदेश में मंत्री कौन है? – शुकनाश
102. शुकनाशोपदेश में मुख्य रूप से किसका वर्णन है? – लक्ष्मी का
103. शुकनास की पत्नी का क्या नाम है? – मनोरमा
104. शुकनास ने चंद्रापीड के लिये कौन सा शब्द प्रयोग किया? – तात
105. शुकनासोपदेश कादम्बरी का एक प्रकरण मात्र है
106. शुकनासोपदेश: में कौन समास है? – बहुब्रीही समास
107. शूद्रक की राजधानी का क्या नाम है? – विदिशा
108. शूद्रक की सभा में शुक लेकर कौन आया? – चांडाल कन्या
109. शूद्रक पूर्व जन्म में क्या था? – चन्द्रापीड
110. समुद्र मंथन में कितने रत्न निकले? – 14
111. समुद्र मंथन में लक्ष्मी सहित कितने रत्न निकले थे? – 14
112. ह्वेनशांग किस काल में में भारत में रहा? – 629-645
114. सोडढल ने बाण के लिए क्या कहा है? – बाणः कविनामिह चक्रवर्ती
115. हर्षवर्धन का काल क्या है? – 606-648
116. हर्षवर्धन के समय कौन विदेशी भारत भ्रमण पर आया? – ह्वेनसांग
117. हारीत कौन था? – जाबालि का पुत्र