शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

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प्रेसविज्ञप्तिः संस्कृतम् - १४.१॰.२॰२३ वार्ताहरः आचार्यदीनदयालशुक्लः



विभागीयस्तरस्य संस्कृतप्रतियोगितायां विजेतृणां छात्राणां सम्मानार्थं आयोजितः कार्यक्रमः।

बाँदा। अद्य दिनाङ्के १४.१॰. प्रातः ११: वादने जिलाविद्यालयनिरीक्षकः बांदा श्रीविजयपालसिंद्वारा  गिरवांनगरस्थस्य पंडितजवाहरलालनेहरूइण्टरकॉलेज इत्यस्य विद्यालयस्य आकस्मिकनिरीक्षणं विहितम्।


विद्यालये सर्वं सुष्ठु स्वस्थं च प्राप्य विद्यालयस्य प्राचार्यगणेशद्विवेदीमहोदयेन सह सर्वैः शिक्षकैः सह च अस्मिन् शैक्षणिकोन्नयनगोष्ठीयाम् उत्थानसभायां च संस्कृतप्रतिभासन्धानपरीक्षायै उपस्थिताः विद्यालयस्य छात्राः जिलास्तरस्य ध्वजरोहणस्य अनन्तरं, हमीरपुरस्य भुवनेश्वरीमहाविद्यालये संभागीयस्तरस्य आयोजने आयोजितायां प्रतियोगितायां राज्यस्तरस्य चयनितस्य छात्रस्य महेशस्य विद्यालयस्य नामे गौरवम् आनयितुं ट्राफी, प्रमाणपत्रं च सम्मानितं तथा विभागीयस्तरीय पर द्वितीय तृतीय स्थान पर स्थित छात्र ज्योति, नेहा, प्रज्ञा च ट्राफी प्रमाणपत्राणि च दत्तानि।


सभायां संस्कृतविषयस्य प्रवक्ता शिवपूजन त्रिपाठीमहोदयः तथा च छात्रान् राज्यस्तरं प्रति प्रेषयित्वा छात्रान् प्रकाशं कृतवान् इति व्यक्तिः सम्बोधितवान् तथा च जिलाविद्यालयनिरीक्षकेन शिक्षकान् छात्रान् च अभिनन्दनं कृत्वा तेषां उज्ज्वलभविष्यस्य कामना कृता समारोहस्य संचालनं श्रीअखिलेशशुक्लद्वारा सम्पादितम्।


विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनेन सह संस्कृतस्य अध्ययनमपि आवश्यकम् :

sanskritpravah प्रेसविज्ञप्ति: संस्कृतम् १३/१०/२०२३



 केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य  उद्घाटने कुलपति:प्रो.शशिकुमारः प्रावोचत्!

प्रेषक: आचार्यदीनदयालशुक्ल:


नवदेहली- विज्ञान-प्रौद्योगिक्याः अध्ययनं कुर्वतां छात्राणां कृते अपि संस्कृतस्य अध्ययनं महत्त्वपूर्णम् अस्ति । संस्कृतविषये ज्ञानं कृत्वा एव वयं विज्ञानप्रौद्योगिक्यां नूतनसंशोधनं कर्तुं शक्नुमः, यतः अस्माकं प्राचीनग्रन्थेषु संस्कृतभाषायां विस्तृतानि वस्तूनि पूर्वमेव उपलभ्यन्ते। एतत् कुलपतिः प्रो.शशिकुमारधीमानः केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य,नवदेहलीनगरस्य अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रस्य द्वितीयशैक्षणिकसत्रस्य उद्घाटनसमये हिमाचलप्रदेशतकनीकीविश्वविद्यालये, हमीरपुरे उक्तवान्। 

कुलपतिः अवदत् यत् भारतस्य सर्वा: भाषाः संस्कृतात् उत्पन्नाः। राष्ट्रियशिक्षानीत्याः अन्तर्गतं भारतस्य सर्वासु भाषासु प्रचारार्थं कार्यं क्रियते । कुलपतिः सर्वान् छात्रान् संस्कृताध्ययनार्थम् आहूतवान्। तस्मिन् एव काले  शैक्षणिक-अधिष्ठाता केन्द्राधिकारी च प्रो० जय देवेनोक्तं यत् अस्मिन् सत्रे कक्ष्या: ऑनलाइन-आफलाइन-इत्यत्र च संचालिताः भविष्यन्ति। अनौपचारिकसंस्कृतशिक्षणकेन्द्रे ३१ अक्टोबर् पर्यन्तं प्रवेशार्थम् आनलाइन् आवेदनं कर्तुं शक्नुवन्ति। अस्मिन् अवसरे तकनीकीविश्वविद्यालयस्य प्राध्यापकाः, छात्राश्च उपस्थिताः आसन्।

नौरास्थ राजकीय महाविद्यालयस्य प्राचार्यः मुख्यातिथिरूपेण समुपस्थिता:  डॉ. राजेशशर्म महाभागेनोक्तं यत् संस्कृतं प्रत्येकस्मिन् व्यक्तिषु वर्तते। अद्यत्वेऽपि संस्कृतं जन्मतः मृत्युपर्यन्तं मनुष्यस्य संस्कारैः सह सम्बद्धम् अस्ति । तथापि वयं संस्कृतं व्यवहारे न स्थापयामः, यस्मात् कारणात् अद्यत्वे अपि संस्कृतस्य जागरणार्थं प्रयत्नाः करणीयाः भवन्ति। १६ शती पर्यन्तं भारते सर्वं संस्कृतभाषायां आसीत्, तदनन्तरं बहुकारणात् भारते संस्कृतस्य महत्त्वं न्यूनीकृतम्, परन्तु अद्य पुनः एकवारं संस्कृतस्य उत्थानाय प्रयत्नाः क्रियन्ते।

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

(बेताल पच्चीसी-चौबीसवीं कहानी)

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माँ-बेटी के बच्चों में क्या रिश्ता हुआ?



किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा, राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश के राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये।

उसके जाने पर रानी और बेटी जंगल से निकलकर आयीं और राजा को मरा देखकर बड़ी दु:खी हुईं। वे दोनों शोक करती हुईं एक तालाब के किनारे पहुँची। उसी समय वहाँ चंडसिंह नाम का साहूकार, अपने लड़के के साथ घोड़े पर चढ़कर, शिकार खेलने के लिए उधर आया। दो स्त्रियों के पैरों के निशान देखकर साहूकार अपने बेटे से बोला, "अगर ये स्त्रियाँ मिल जायें तो जायें, तब जिससे चाहो, विवाह कर लेना।"

लड़के ने कहा, "छोटे पैर वाली छोटी उम्र की होगी, उससे मैं विवाह कर लूँगा। आप बड़ी से कर लें।"

साहूकार विवाह नहीं करना चाहता था, पर बेटे के बहुत कहने पर राजी हो गया।

थोड़ा आगे बढ़ते ही उन्हें दोनों स्त्रियां दिखाई दीं। साहूकार ने पूछा, "तुम कौन हो?"

रानी ने सारा हाल कह सुनाया। साहूकार उन्हें अपने घर ले गया। संयोग से रानी के पैर छोटे थे, पुत्री के पैर बड़े। इसलिए साहूकार ने पुत्री से विवाह किया, लड़के का विवाह रानी से हो गया| इस तरह पुत्री सास बनी और माँ बेटे की बहू। उन दोनों के आगे चलकर कई सन्तानें हुईं।

इतना कहकर बेताल बोला, "राजन्! बताइए, माँ-बेटी के जो बच्चे हुए, उनका आपस में क्या रिश्ता हुआ?"

यह सवाल सुनकर राजा बड़े चक्कर में पड़ा। उसने बहुत सोचा, पर जवाब न सूझ पड़ा। इसलिए वह चुपचाप चलता रहा।

बेताल यह देखकर बोला, "राजन्, कोई बात नहीं है। मैं तुम्हारे धैर्य और पराक्रम से प्रसन्न हूँ। मैं अब इस शव से निकल जाता हूँ। तुम इसे योगी के पास ले जाओ। जब वह तुम्हें इस शवको सिर झुकाकर प्रणाम करने को कहे तो तुम कह देना कि पहले आप करके दिखाओ। जब वह सिर झुकाकर समझायें तो तुम उसका सिर काट लेना। उसका बलिदान करके तुम सारी पृथ्वी के राजा बन जाओगे। सिर नहीं काटा तो वह तुम्हारी बलि देकर सिद्धि प्राप्त करेगा।"

इतना कहकर बेताल चला गया और राजा शव को लेकर योगी के पास आया।



समाचारपत्रम्

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विश्वस्य वृत्तान्त: समाचारपत्रम् ११ अक्टोबर २०२३



उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)

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च्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)       


उच्चारणस्थानानि



                           
          क्रम / संस्कृत-सूत्राणि / वर्ण / उच्चारण स्थान/ श्रेणी  


१) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः। 
२) इ-चु-य-शानां तालु। 
३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा। 
४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: । 
५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ । 
६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च । 
७) एदैतौ: कण्ठ-तालु । 
८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् । 
९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् । 



१) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः।
-अकार (अ, आ), कु= कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार (ह्), और विसर्जनीय (:) का उच्चारण स्थान कंठ और जीभ का निचला भाग  "कंठ्य"  है।


२) इ-चु-य-शानां तालु। 
-इकार (इ, ई ) , चु= चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार (य) और शकार (श) इनका “ तालु और जीभ / तालव्य ” उच्चारण स्थान है।  


३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा। 
-ऋकार (ऋ), टु = टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ (र) और षकार (ष) इनका “ मूर्धा और जीभ / मूर्धन्य ” उच्चारण स्थान है। 


४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: ।
-लृकार (लृ), तु = तवर्ग ( त, थ, द, ध, न ), लकार (ल) और सकार (स) इनका उच्चारण स्थान “दाँत और जीभ / दंत्य ” है।


५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ ।
- उकार (उ, ऊ), पु = पवर्ग ( प, फ, ब, भ, म ) और उपध्मानीय इनका उच्चारण स्थान "दोनों होंठ / ओष्ठ्य ” है। 


६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च ।
- ञकार (ञ), मकार (म), ङकार (ङ), णकार (ण), नकार (न), अं  इनका उच्चारण स्थान “नासिका” है ।  


७) एदैतौ: कण्ठ-तालु । 
- ए और ऐ का उच्चारण स्थान “कंठ तालु और जीभ / कंठतालव्य” है।


८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् ।
- ओ और औ का उच्चारण स्थान “कंठ, जीभ और होंठ / कंठोष्ठ्य” है। 
  

९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् ।
-वकार का उच्चारण स्थान “दाँत, जीभ और होंठ / दंतोष्ठ्य” है ।

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१०) जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् ।
-जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान “ जिह्वामूल ” है ।

११) अनुस्वारस्य नासिका ।
-अनुस्वार (ं) का उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

१२) क, ख इति क-खाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्गसद्दशो जिह्वा-मूलीय: ।
-क, ख से पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ जिह्वामूलीय ” कहलाते है ।

१३) प, फ इति प-फाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्ग-सद्दश उपध्मानीय: ।
-प, फ के आगे पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ उपध्मानीय ” कहलाते है ।

१४) अं , अ: इति अच् परौ अनुस्वार-विसर्गौ ।
-अनुस्वार और विसर्ग “ अच् ” से परे होते है; जैसे — अं , अ: ।