इन्द्रं यमं मातरिश्वा नमाहुः।
वेदान्तिनो निर्वचनीयमेकम्
यं ब्रह्म शब्देन विनिर्दिशन्ति॥
अर्थः - प्राचीन काल के मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने जिसे इंद्र , यम , मातरिश्वान (वैदिका देवता)
शैवायमीशं शिव इत्यवोचन्
यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति।
बुद्धस्तथार्हन् इति बौद्ध जैनाः
सत् श्री अकालेति च सिख्ख सन्तः॥
बौद्ध और जैन जिसे बुद्ध और अर्हन्त कहते हैं तथा
सिक्ख सन्त जिसे सत् श्री अकाल कहकर पुकारते हैं।
शास्तेति केचित् कतिचित् कुमारः
स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या।
यं प्रार्थन्यन्ते जगदीशितारम्
स एक एव प्रभुरद्वितीयः॥
अर्थः - जिस जगत के स्वामी को कोई शास्ता तो कोई प्रकृति ,
कोई कुमारस्वामी कहते हैं तो कोई जिसको स्वामी , माता-पिता कहकर भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं ,
वह प्रभु एक ही है
अर्थात् अद्वितीय है ।
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