शनिवार, 4 दिसंबर 2021

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय


 

विश्व के सबसे बेहतरीन व अनूठे विश्वविद्यालय के बारे में कुछ रोचक तथ्य । हमें गर्व है कि हम मालवीय जी की इस महान कृति के हम सेवक हैं.........
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के #100_गौरवशाली वर्ष के इतिहास पर एक नजर डालते हैं और जानते हैं इस विश्वविद्यालय से जुड़े 100 ऐसे तथ्य जो शायद आप ना जानते हों:
1. सर्वप्रथम प्रयाग राज की सड़कों पर अपने अभिन्न मित्र बाबू गंगा प्रसाद वर्मा और सुंदरलाल के साथ घूमते हुए मालवीय जी ने हिन्दू विश्वविद्यालय की रूपरेखा पर विचार किया।
2. 1904 ई में जब विश्वविद्यालय निर्माण के लिए चर्चा चल रही थी तब कइयों ने इसकी सफलता पर गहरा शक भी प्रगट किया था। कइयों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी विश्वविद्यालय वाराणसी की धरती पर निर्मित किया जा सकता है।
3. नवंबर 1905 में महामना मदन मोहन मालवीय ने हिन्दू विश्वविद्यालय निर्माण के लिए अपना घर त्याग दिया।
4. तत्कालीन काशीनरेश महाराजा प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में बनारस के मिंट हाउस में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पहली बैठक बुलाई गई।
5. जुलाई 1905 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रस्ताव पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया गया।
6. दिसम्बर 1905 ई. में वाराणसी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया। ठीक एक जनवरी 1906 ई. को कांग्रेस अधिवेशन के मंच से ही काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की गई।
7. जनवरी 1905 ई. में प्रयाग में साधु-संतों ने भी काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए स्वीकृति दे दी।
8. उस वक्त दरभंगा महाराज सर रामेश्वर बहादुर सिंह भी वाराणसी में 'शारदा विश्वविद्यालय' की स्थापना करना चाहते थे, लेकिन मालवीय जी कि योजना को सुनकर उन्होंने भी 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' निर्माण के लिए अपनी सहमति दे दी।
9. दरभंगा नरेश को बाद में हिन्दू युनिवर्सिटी सोसाइटी का प्रमुख बनाया गया।
10. पं. मदन मोहन मालीवय ने 15 जुलाई 1911 को हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए एक करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था।
11. बीएचयू पूरी दुनिया में अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जिसका निर्माण भिक्षा मांगकर मिली राशि से किया गया है।
12. महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में 20 लोगों को पूरे देश में घूम-घूमकर भिक्षा मांगने के लिए नियुक्त किया गया।
13. विश्वविद्यालय निर्माण के लिए नियुक्त हुए प्रबुद्ध भिक्षार्थियों में राजाराम पाल सिंह, पं. दीन दयाल शर्मा, बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, बाबू ईश्वर शरन, पं. गोकर्ण नाथ मिश्रा, पं. इकबाल नारायण गुर्टू, राय रामनुज दयाल बहादुर, राय सदानंद पांडेय बहादुर, लाला सुखबरी सिन्हा, बाबू वृजनंदन प्रसाद, राव वैजनाथ दास, बाबू शिव प्रसाद गुप्त, बाबू मंगला प्रसाद, बाबू राम चंद्र, बाबू ज्वाला प्रसाद निगम, ठाकुर महादेव सिंह, पं. परमेश्वर नाथ सप्रू, पं. विशंभर नाथ वाजपेयी, पं. रमाकांत मालवीय तथा बाबू त्रिलोकी नाथ कपूर शामिल थे।
14. 28 जुलाई 1911 को मालवीय जी ने अयोध्या नगरी से भिक्षाटन की शुरुआत की। इससे पूर्व उन्होंने सरयू नदी में स्नान किया और श्रीरामलला के दर्शन भी किए।
15. सन 1911 में ही मालवीय जी ने लाहौर और रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में भी भिक्षाटन किया। इस दौरान उनके साथ लाला लाजपत राय भी मौजूद रहे।
16. मुजफ्फरनगर में भिक्षाटन के दौरान अजीब वाकया हुआ जब सड़क पर एक गरीब भिखारिन ने अपनी दिनभर की कमाई मालवीय जी को काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय निर्माण के लिए समर्पित कर दिया।
17. मालवीय जी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे।
18. शुरू-शुरू में विश्वविद्यालय में सात कॉलेजों की स्थापना का प्रस्ताव पारित हुआ। इनमें, संस्कृत कॉलेज, कला एवं साहित्य कॉलेज, विज्ञान एवं तकनीकि कॉलेज, कृषि कॉलेज, वाणिज्य (कॉमर्स) कॉलेज, मेडिसिन कॉलेज और म्यूजिक एवं फाइन आर्ट्स कॉलेज शामिल थे।
19. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रस्ताव के समय देश में कुल पांच विश्वविद्यालय मौजूद थे - कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, लाहौर और इलाहाबाद में।
20. मालवीय जी का यह स्पष्ट मत था कि विश्वविद्यालय में धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।
21. विश्वविद्यालय के नाम में 'हिन्दू' शब्द को लेकर भी मालवीय जी को कइयों से तिरस्कार भी झेलना पड़ा। उस वक्त मालवीय जी ने हिन्दुत्व को समावेशी बताते हुए इसे अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण का आधार माना।
22. अक्टूबर सन 1915 ईस्वीं में बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी बिल पारित हुआ। इसके बाद इस विश्वविद्यालय के निर्माण की मंजूरी ब्रिटिश हुकूमत ने दे दी थी।
23. ८ फरवरी 1916 ई के दिन बसंत पंचमी के पावन अवसर पर दोपहर 12 बजे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिलान्यास का कार्यक्रम शुरू हुआ।
24. इस मौके पर वायसरॉय लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।
25. उस वक्त बनारस के कलेक्टर थे मिस्टर लेम्बर्ट जिन्होंने इंजीनियर राय छोटेलाल साहब के साथ मिलकर पूरी व्यवस्था का खाका तैयार किया था।
26. बीएचयू के शिलान्यास स्थल पर मदनवेदी का निर्माण किया गया था।
27. पुष्पवर्षा के बीच वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग ने विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया।
28. काशी के संस्कृत विद्वानों ने हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण में कोई रुचि नहीं दिखाई थी।
29. यही नहीं शिलान्यास समारोह को लेकर काशी में विशेष उत्साह भी नहीं दिखा।
30. दो मुद्दों पर काशी की जनता ने शिलान्यास का विरोध भी किया था।
31. पहला - शिलापट्ट पर सम्राट शब्द का संस्कृत में उल्लेख।
32. दूसरा - शिलापट्ट पर काशी के धर्माचार्यों या शंकराचार्य का नाम ना उल्लिखित होना।
33. विवाद इतना गहरा गया कि विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह के बहिष्कार की घोषणा काशी की जनता ने कर दिया।
34. शिलान्यास समारोह में अंग्रेजों के शामिल होन पर नगवां इलाके के संभ्रांत व्यक्ति खरपत्तू सरदार ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी।
35. बाद में मालवीय जी को खरपत्तू को वचन देना पड़ा किया शिलान्यास के बाद विश्वविद्यालय के किसी भी कार्यक्रम में अंग्रेज शिरकत नहीं करेंगे।
36. जबतक मालवीय जी जीवित रहे तबतक कोई भी अंग्रेज अधिकारी विश्वविद्यालय के किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सका।
37. विश्वविद्यालय स्थापना के ताम्रपत्र में कुल तीन जगह 'ॐ' लिखा हुआ है। भारतीय परंपरा में तीन बार ॐ का जाप करना अत्यंत ही शुभ और पुण्यकारी माना गया है।
38. विश्वविद्यालय के ताम्रपत्र के अनुसार 'मनु की संतानों को अनुशासन और न्याय की शिक्षा देने के लिए ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।'
39. विश्वविद्यालय की स्थापना में महामना मदन मोहन मालवीय जी की क्या भूमिका है इसका ताम्रपत्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
40. कुछ लोगों का मानना है कि ऐनिबेसेंट के नाम का उल्लेख भी इस ताम्रपत्र में नहीं है। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि ताम्रपत्र में ऐनिबेसेंट के नाम का उल्लेख मालवीय जी ने 'वासन्ति वाग्मिता' के रूप में कराया था।
41. ताम्रपत्र में विश्वविद्यालय के लिए दान देने वाले राजाओं के नाम नहीं हैं बल्कि उनके राज्यों के नाम लिखे गए हैं। जैसे - मेवाड़, काशी, कपूर्थला आदि।
42. ताम्रपत्र में विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय 'परमात्मा' को दिया गया है।
43. ताम्रपत्र में लॉर्ड हार्डिंग को 'धीर-वीर प्रजाबंधु' लिखा गया है। इसे लेकर वाराणसी की जनता ने मालवीय जी का उपहास भी उड़ाया और व्यंग चित्र भी बनाये।
44. सबसे पहले विश्वविद्यालय निर्माण के लिए वाराणसी के हरहुआ इलाके में भूमि उपलब्ध कराने का विचार महाराज प्रभुनारायण को आया था। बाद में इसे मालवीय जी ने खारिज कर दिया।
45. वाराणसी के दक्षिण में 1300 एकड़ भूमि (5.3किमी) को तत्कालीन काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह ने महामना को विश्वविद्यालय निर्माण के लिए दान में दे दिया।
46. शिलान्यास के वर्ष 1916 ई को गंगा में भयानक बाढ़ आई और विश्वविद्यालय की भूमि पूरी तरह से जलमग्न हो गई। पहले विश्वविद्यालय को गंगा के बिल्कुल किनारे बसाने का विचार था।
47. इसके बाद मां गंगा को प्रणाम करते हुए विश्वविद्यालय परिसर को गंगा नदी से थोड़ी दूर बसाने का निर्णय लिया गया।
48. कुल 12 गांवों को खाली कराकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।
49. इन 12 गावों में भोगावीर, नरियां, आदित्यपुर, करमजीतपुर, सुसुवाही, नासीपुर, नुवांव, डाफी, सीर, छित्तुपुर, भगवानपुर और गरिवानपुर शामिल हैं।
50. बिजनौर के धर्मनगरी निवासी राजा ज्वाला प्रसाद ने काशी हिन्दू विश्वविद्याल का नक्शा तैयार किया तथा अपने दिशानिर्देश में ईमारतों को मूर्त रूप दिया।
51. विश्वविद्यालय को प्राप्त पूरी जमीन अर्द्धचंद्राकार है।
52. विश्वविद्यालय के अर्द्धचंद्राकार डिजाइन और इसके बीचो-बीच स्थित विश्वनाथ मंदिर को देखकर काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने इसे शिव का त्रिपुंड और बीच में स्थित शिव की तीसरी आंख बताया था।
53. यहां निर्मित भवन इण्डो-गोथिक स्थापत्य कला के भव्य नमूने हैं।
54. शुरुआत में विश्वविद्यालय की भाषा को अंग्रेजी रखा गया हालांकि मालवीय जी ने इसे हिन्दी में किए जाने का विश्वास महात्मा गांधी को दिलाया था।
55. युवाओं को तकनीकि ज्ञान देने के लिए आजादी से पहले ही विश्वविद्यालय में बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज (BENCO) 1919 ई, कॉलेज ऑफ माइनिंग एंड मेटलॉजी 1923 ई और कॉलेज ऑफ टेक्नॉलॉजी 1932 ई की शुरुआत कर दी गई थी।
56. विश्वविद्यालय में तीन संस्थान हैं : चिकित्सा (इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज), तकनीक (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) और कृषि (इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रिकल्चर साइंसेज)।
57. विश्वविद्यालय में 11 संकाय है : चिकित्सा, कला, वाणिज्य, शिक्षा विधि, प्रबंधतंत्र, दृश्यकला, संस्कृति विद्याधर्म, विज्ञान, समाज विज्ञान, संगीत, महिला महाविद्यालय।
58. वाराणसी में बीएचयू से संबद्ध चार महाविद्यालय मौजूद हैं : डीएवी पीजी कॉलेज, बसंता कॉलेज फॉर वुमेन, आर्य महिला कॉलेज, बसंता कॉलेज कमक्षा।
59. विश्वविद्यालय से 70 किमी दक्षिण में मीरजापुर जनपद में बरकछा नामक स्थान पर 'राजीव गांधी दक्षिणी परिसर' स्थित है।
60. विश्वविद्यालय के भीतर प्रेस, हवाई अड्डा (रन-वे), पोस्ट ऑफिस, केंद्रीय विद्यालय और प्रमुख बैंकों के कार्यालय मौजूद हैं।
61. महिला शिक्षा : आजादी से पूर्व 1936-37 ई. में विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में 100 लड़कियां स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण कर रही थीं।
62. मालवीय जी का स्वप्न था कि गंगा को नहर के माध्यम से विश्वविद्यालय के अंदर लाया जाए लेकिन एक दुर्घटना की वजह से यह कार्य रोक दिया गया।
63. हिन्दू विश्वविद्यालय का कार्य सर्वप्रथम काशी में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज के एक भवन में शुरू हुआ।
64. विश्वविद्यालय के लिए आचार्यों का चयन बिना किसी कमेटी, रेज्यूमे या सिफारिश के किया गया।
65. कुछ विद्वानों को निमंत्रण देकर, कुछ स्वयं की प्रेरणा से विश्वविद्यालय में पढ़ाने पहुंचे।
66. यहां पढ़ाने वाले कुछ विद्वान तो ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी धन-सम्पत्ति तक विश्वविद्यालय के नाम कर दी।
67. बीएचयू के आजीवन रजिस्ट्रार और चीफ वार्डन रहे श्यामाचरण डे ने अपनी पूरी सम्पत्ति विश्वविद्यालय के नाम कर दी।
68. श्यामाचरण डे आजीवन एक रुपया की तनख्वाह पर विश्वविद्यालय की ओर से मिली जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे।
69. सभी प्रोफेसर, वो चाहे जिस भी विषय के विद्वान रहे हों कुर्ता-धोती और कंधे पर रखने वाला दुपट्टा पहनकर ही विश्वविद्यालय में पढ़ाने आते थे।
70. अंग्रेजी भाषा के प्रोफेसर निक्सन भी कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर धोती-कुर्ता पहनकर कृष्ण मंदिर का घंटा बजाया करते थे।
71. 1930 में जब महामना को बंबई में गिरफ्तार किया गया तो बीएचयू से 24 छात्रों के एक दल के साथ एक छात्रा कुमारी शकुंतला भार्गव भी बंबई में धरना देने के लिए पहुंची थी।
72. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चंद्रशेखर आजाद, राजगुरू, रामप्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र काशी और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ही था।
73. महाराज प्रभुनारायण सिंह के पौत्र और बाद में काशी नरेश बने महाराजा विभूति नारायण सिंह आजीवन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे।
74. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर 'गुरू जी' ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ही जूलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन तक की शिक्षा ग्रहण की और बाद में यहां अध्यापन का कार्य भी किया।
75. मालवीय जी के निमंत्रण पर आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आए थे।
76. बीएचयू परिसर में ही हेडगेवार और गोलवलकर के बीच मुलाकात हुई। बाद में गोलवलकर आरएसएस के सरसंघचालक बने।
77. आरएसएस और मालवीय जी के बीच मधुर संबंधों का ही नतीजा रहा कि विश्वविद्यालय परिसर में ही संघ के नाम दो कमरों का प्लॉट अलॉट हुआ।
78. 1929 से 1942 के बीच संघ की कई शाखाएं विश्वविद्यालय परिसर में खुल चुकी थीं।
79. 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन कुलपति गोविन्द मालवीय ने संघ के भवन को अपने कब्जे में ले लिया। संघ पर से प्रतिबंध हटने के बाद भवन दुबारा आरएसएस को सौंप दिया गया।
80. 8 अप्रैल 1938 ईस्वी को रामनवमी के दिन विश्वविद्यालय परिसर में 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पेवेलियन' का शिलान्यास मालवीय मदन मोहन मालवीय, हेडगेवार और गोलवलकर की अगुवाई में हुआ।
81. अपनी भुजाओं के बल पर शेर को मारने वाले बचाऊ पहलवान महामना मदन मोहन मालवीय के अभिन्न मित्र थे। बचाऊ पहलवान ने मालवीय जी के प्राणों की रक्षा के लिए खुद के प्राणों की बलि दे दी थी।
82. विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति होने का गौरव राय बहादुर सर सुंदरलाल को प्राप्त हुआ।
83. इनके बाद सर पीएस शिवस्वामी अय्यर ने इस पद को सुशोभित किया।
84. कालांतर में वर्ष 1919 से लेकर 1939 तक पं. मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय के कुलपति पद की शोभा को बढ़ाई।
85. 24 सितम्बर 1939 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति के रुप में इस अति पावन पद पर काबिज हुए।
86. राधाकृष्णन आठ वर्षों तक विश्वविद्यालय के कुलपति बने रहे।
87. राधाकृष्णन के बाद अमरनाथ झा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति बने।
88. अमरनाथ झा के बाद क्रमश: पं. गोविन्द मालवीय, आचार्य नरेन्द्र देव, सीपी रामास्वामी अैय्यर, वीएस झा, एनएच भगवती, त्रिगुण सेन, एसी जोशी, कालू लाल श्रीमाली आदि ने विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित किया।
90. प्रख्यात वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर ने विश्वविद्यालय के अतिलोकप्रिय कुलगीत की रचना की।
91. पुरावनस्पति वैज्ञानिक बीरबल साहनी, भौतिक वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर, भूपेन हजारिका, अशोक सिंहल, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हरिवंश राय बच्चन जैसी महान विभूतियों ने इस विश्वविद्यालय की कीर्ति में चार चांद लगाया।
92. विश्वविद्यालय परिसर के भीतर ही विशाल विश्वनाथ मंदिर स्थित है।
93. इस मंदिर का शिलान्यास 11 मार्च 1931 में कृष्णास्वामी ने किया।
94. मालवीय जी चाहते थे कि भव्य विश्वनाथ मंदिर उनके जीवन काल में ही बन जाए लेकिन ऐसा शायद विधि को मंजूर नहीं था।
95. मालवीय जी के अंतिम समय में उद्योगपति जुगलकिशोर बिरला ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह बीएचयू परिसर में नियत स्थान पर ही भव्य विश्वनाथ मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द कराएंगे।
96. 17 फरवरी 1958 को महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान विश्वनाथ की स्थापना इस मंदिर में हुई।
97. बीएचयू स्थित विश्नाथ मंदिर पूरे भारत में सबसे ऊंचा शिवमंदिर है। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 76 मीटर (250 फीट) है। यह मंदिर विश्वविद्यालय के केंद्र में स्थित है।
98. 60 से भी ज्यादा देशों के विद्यार्थी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों, संकायों और संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं।
99. महामना मदन मोहन मालवीय का आदर्श वाक्य था, 'उत्साहो बलवान राजन्''। अर्थात, उत्साह पूर्वक कर्म में लगो तभी शक्तिशाली बन सकते हो।
100. बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के निर्माण में अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले महामना मदन मोहन मालवीय जी को स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।।

हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी




किसी समय वर्षा के मौसम में वर्षा न होने से प्यास के मारे हाथियों का झुंड अपने स्वामी से कहने लगा -- हे स्वामी, हमारे जीने के लिए अब कौन- सा उपाय है ? छोटे- छोटे जंतुओं को नहाने के लिए भी स्थान नहीं है और हम तो स्नान के लिए स्थान न होने से मरने के समान है।


 क्या करें ? कहाँ जाएँ ? 


हाथियों के राजा ने समीप ही जो एक निर्मल सरोवर था, वहाँ जा कर दिखा दिया। फिर कुछ दिन बाद उस सरोवर के तीर पर रहने वाले छोटे- छोटे शशक हाथियों के पैरों की रेलपेल में खुँद गये। बाद में शिलीमुख नामक शशक सोचने लगा -- प्यास के मारे यह हाथियों का झुंड, यहाँ नित्य आएगा। इसलिए हमारा कुल तो नष्ट हो जाएगा। फिर विजय नामक एक बूढ़े शशक ने कहा -- खेद मत करो। मैं इसका उपाय कर्रूँगा। फिर वह प्रतिज्ञा करके चला गया, और चलते- चलते इसने सोचा -- कैसे हाथियों के झुंड के पास खड़े हो कर बातचीत करनी चाहिए।

स्पृशन्नपि गजो हन्ति जिघ्रन्नयि भुजंगमः।
पालयन्नपि भूपालः प्रहसन्नपि दुर्जनः।।

अर्थात हाथी स्पर्श से ही, साँप सूँघने से ही, राजा रक्षा करता हुआ भी और दुर्जन हँसता हुआ भी मार डालता है।

इसलिए मैं पहाड़ की चोटी पर बैठ कर झुंड के स्वामी से अच्छी प्रकार से बोलूँ। ऐसा करने पर झुंड का स्वामी बोला -- तू कौन है ? कहाँ से आया है ? वह बोला -- मैं शशक हूँ। भगवान चंद्रमा ने आपके पास भेजा है। झुंड के स्वामी ने कहा -- क्या काम है बोल ? विजय बोला :-

उद्यतेष्वपि शस्रेषु दूतो वदति नान्यथा।
सदैवांवध्यभावेन यथार्थस्य हि वाचकः।

अर्थात, मारने के लिए शस्र उठाने पर भी दूत अनुचित नहीं करता है, क्योंकि सब काल में नहीं मारे जाने से (मृत्यु की भीति न होने से) वह निश्चय करके सच्ची ही बात बोलने वाला होता है।

इसलिए मैं उनकी आज्ञा से कहता हूँ, सुनिये -- जो ये चंद्रमा के सरोवर के रखवाले शशकों को निकाल दिया है, वह अनुचित किया। वे शशक हमारे बहुत दिन से रक्षित हैं, इसलिये मेरा नाम ""शशांक'' प्रसिद्ध है। दूत के ऐसा कहते ही हाथियों का स्वामी भय से यह बोला -- सोच लो, यह बात अनजानपन की है। फिर नहीं करुँगा। दूत ने कहा -- जो ऐसा है तो उसे सरोवर में क्रोध से काँपते हुए भगवान चंद्रमाजी को प्रणाम कर और प्रसन्न करके चला जा। फिर रात को झुंड के स्वामी को ले जा कर ओर जल में हिलते हुए चंद्रमा के गोले को दिखला कर झुंड के स्वामी से प्रणाम कराया और इसने कहा-- हे महाराज, भूल से इसने अपराध किया है, इसलिए क्षमा कीजिये, फिर दूसरी बार नहीं करेगा। यह कह कर विदा लिया।




गुरुवार, 25 नवंबर 2021

प्रश्न : निर्देशन तथा परामर्श का अर्थ बताते हुए समावेशी शिक्षा में इनके महत्त्व और प्रकारों का वर्णन कीजिए।

 

उत्तर : निर्देशन (गाइडेंस) तथा परामर्श (काउंसलिंग) शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक,व्यावसायिक आदि के क्षेत्र में प्रयुक्त दो भिन्न प्रक्रियाएं हैं । निर्देशन वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति को उसकी समस्याओं का समाधान करने के लिए निर्देशक द्वारा सहायता दी जाती है । निर्देशक वह विधियाँ व उपाय बताता है जिनका प्रयोग कर व्यक्ति अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझा सकता है। विभिन्न विद्वानों ने निर्देशन की अलग–अलग परिभाषाएं दी हैं जिनसे निर्देशन का अर्थ स्पष्ट होता है । क्रो एवं क्रो के शब्दों में, “निर्देशन वह सहायता है जो एक व्यक्ति अन्य व्यक्ति को प्रदान करता है । इस सहायता से वह व्यक्ति अपने जीवन का पथ स्वयं ही प्रदर्शित करता है, अपनी विचारधारा का विकास करता है, अपने निर्णयों का निश्चय करता है तथा अपना दायित्व संभालता है।" स्किनर के अनुसार, “निर्देशक युवकों को स्वयं से, अन्य से और परिस्थितियों से सामंजस्य करना एवं सीखने के लिए सहायता देने की प्रक्रिया है।" इस प्रकार निर्देशन -

(1) निर्देशक द्वारा छात्रों, युवकों, व्यक्तियों को दिया जाता है



(2) निर्देशन निर्देशन प्राप्त करने वाले की समस्याओं के निराकरण हेतु दिया जाता है

(3) निर्देशन से प्रेरित होकर छात्र, व्यक्ति अपनी परिस्थिति से समायोजन कर सकते हैं।

समावेशी शिक्षा में निर्देशक सामान्य तथा विशेष दोनों प्रकार के अध्ययनरत छात्रों हेतु महत्त्वपूर्ण है । डॉ.सीताराम जायसवाल के शब्दों में, “निर्देशन का एक सिद्धान्त है कि इसकी सुविधा सभी को उपलब्ध हो, केवल कुछ विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिए नहीं। सामान्य व्यक्ति के जीवन में प्रगति एवं समस्याओं के समाधान के लिए भी निर्देशन उतना ही आवश्यक है जितना कि विशेष समस्या वाले व्यक्ति के लिए।"

निर्देशन की आवश्यकता समावेशी विद्यालयों हेतु निम्नलिखित दृष्टि से उपयोगी है।

(1) छात्रों के वैयक्तिक दृष्टिकोण से– निर्देशन से छात्रों को अपनी व्यक्तिगत समस्याओं का हल पाने में सहायता मिलती है । समावेशी विद्यालय में अध्ययनरत अपंग छात्र यदि यह जानना चाहता है कि उसे उसकी विकलांगता में कमी लाने वाले उपकरण शासन की योजना में निःशुल्क कहाँ से प्राप्त हो सकते हैं तो वह निर्देशक से इसकी जानकारी प्राप्त कर सकता है । यदि एक कमजोर नजर वाला छात्र जिसे कक्षा के ब्लेकबोर्ड पर लिखी इबारत दिखाई नहीं देती तो वह इस समस्या का हल निर्देशक के पास से प्राप्त कर सकता है।


(2) शैक्षिक दृष्टिकोण से– समावेशी विद्यालय का कोई निःशक्त बालक अपने लिये उपलब्ध वैकल्पिक विषयों का कार्यानुभव व्यवसाय के चुनाव में भ्रम का शिकार हो तो निर्देशक उसे उसकी शारीरिक–मानसिक निःशक्तता के स्तर का ध्यान रखते हुए समुचित निर्देशन दे सकता है। इसी प्रकार यदि कोई दृष्टिहीन या बधिर छात्र यदि यह जानना चाहे कि क्या उसके लिए अंध से बधिर विशेष विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है या वह समावेशी विद्यालय में प्रवेश पाकर भी शिक्षा अर्जित कर सकता है तो उसे निर्देशक समुचित जाँच कर निर्देश दे सकता है।

(3) मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से– मनोग्रंथियों के शिकार निःशक्त बालक की हताशा, अवसाद या अन्य संवेगात्मक समस्याओं पर निर्देशक के निर्देश समस्या कम करने में प्रभावी होते हैं।

(4) सामाजिक दृष्टिकोण से– सामाजिक कुसमायोजन से ग्रस्त अथवा सामाजिक समस्याग्रस्त बालक का दूसरे बालकों से सामाजिक समायोजन कम हो जाता है ऐसे बालकों के श्रेष्ठ समायोजन हेतु विद्यालय में निर्देशन व्यवस्था आवश्यक है। क्रो एवं क्रो के शब्दों में, “यदि हम अपने स्वयं के निकटवर्ती वातावरण के कुमसायोजित व्यक्तियों की संख्या पर विचार करते हैं तो भी हम माल व्यवहार और मनोभाव के अधिक उपयुक्त निर्देशन की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं।"


समावेशी शिक्षा में प्रयक्त निर्देशन के प्रकार– निर्देशन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। समावेशी शिक्षा में निर्देशन व्यक्तिगत, शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, स्वास्थ्य संबंधी तथा व्यावसायिक शिक्षा संबंधी अनेक आयामों से संबंधित है। विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों तथा अन्य सामान्य बालकों दोनों की दृष्टि से निर्देशन के ये प्रकार उपयोगी हैं।

(1) शैक्षिक निर्देशन– सामान्य तथा विशेष छात्रों को विद्यालय में प्रवेश के समय उचित निर्देशन दिया जाना शैक्षिक निर्देशन के अंतर्गत प्रथम चरण है। विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों के शारीरिक व मानसिक सामर्थ्य का आकलन कर प्रवेश की कार्यवाही की जानी चाहिए । नवीन छात्रों का समावेशी शिक्षा के उद्देश्य से अवगत कराया जाना चाहिए। विद्यालयीन अनुशासन तथा नियम पालन के निर्देशन भी दिये जाने चाहिए। छात्रों को अधिगम विधियों, संसाधन कक्ष, पुस्तकालय आदि के उपयोग से परिचित कराना चाहिए । कक्षा शिक्षण में शिक्षक निर्देश भी शैक्षिक निर्देशन है। छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नताओं का वास्तविक आकलन कर उनकी योग्यता क्षमता के अनुसार शैक्षिक निर्देशन होना चाहिए। वैकल्पिक पाठ्य विषय के चयन में छात्रों को समुचित निर्देश भी इसके अंतर्गत आते हैं।


(2) व्यावसायिक निर्देशन– निःशक्त बालकों के लिए समावेशी विद्यालय में उनकी शारीरिक व मानसिक क्षमताओं को दृष्टि में रखते हुए शिल्प, कार्यानुभव या व्यावसायिक शिक्षा हेतु कौनसा व्यवसाय उनके उपयुक्त होगा इसका निर्देशन आवश्यक होता है क्योंकि बहुधा वे अपने संगी–साथी की इच्छा के अनुसार गलत व्यवसाय का चयन कर लेते हैं जो उनकी शारीरिक–मानसिक क्षमताओं तथा भविष्य में स्वरोजगार खोलने या नौकरी करने के अनुकूल नहीं होता । व्यवसाय चयन का निर्देश देते हुए बालकों को विभिन्न व्यवसायों की लाभ हानियों, भविष्य की संभावनाओं के निर्देश भी दिये जाने चाहिए।

(3) वैयक्तिक निर्देशन– वैयक्तिक निर्देशन का संबंध बालक की व्यक्तिगत समस्याओं व अवरोधों से है। छात्र के अध्ययन हेतु समुचित निर्देश, पारिवारिक व व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने हेतु, वातावरण से अनुकूलन स्थापित करने हेतु, व्यक्तित्व संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। कमजोर दृष्टिवाले बालक, श्रवण बाधित बालक, धीमी गति से सीखने वाले, मंद बुद्धिलब्धि वाले बालकों की वैयक्तिक अनेक समस्याएं संभव हैं अत: व्यक्तिगत निदेशन द्वारा उनका समाधान अपेक्षित है।

(4) सामाजिक निर्देशन– समावेशी विद्यालय में भेदभाव रहित वातावरण सामुदायिक गतिविधियों के आयोजन, आदि हेतु उपयुक्त सामाजिक व्यवहार आवश्यक होता है । जो बालक सामाजिक रूप से कुसमायोजित होते हैं उनका व्यक्ति अध्ययन (केस स्टडी) कर उचित निर्देशन उन्हें दिया जाना चाहिए। चोरी करने वाले, लड़ाई झगड़ा करने वाले, शाला से भागने वाले या पढना छोड देने वाले समस्या बालकों की समस्याओं का अध्ययन विश्लेषण कर उन्हें समुचित निर्देश दिये जाने चाहिए।

(5) मनोवैज्ञानिक निर्देशन– जो बालक फोबिया, हीन भावना, अवसाद, उदासी, अतिक्रियाशीलता, आत्मविश्वासहीनता, एकाकीपन, आक्रामकता, स्वपरायणता (ऑटिज्म), तनाव आदि मानसिक कुसमायोजन से ग्रसित हैं उनका व्यक्ति इतिहास अध्ययन कर कारणों की खोज कर अनुकूल निर्देशन दिया जाना अपेक्षित होता है ताकि बालक के व्यक्तित्व को समायोजित किया जा सके । आवश्यकतानुसार साक्षात्कार, परीक्षण विधियों का उपयोग कर समस्या की तह में जाकर निर्देश देना आवश्यक होता है।


(6) स्वास्थ्य संबंधी निर्देशन– शारीरिक व मानसिक रूप से निःशक्त बालकों के उपचार, उन्हें कृत्रिम अंक, चश्मा, बैसाखी, श्रवण यंत्र, आदि उपकरणों संबंधी निर्देश, शारीरिक व्यायाम संबंधी निर्देश, दुर्घटना पर प्राथमिक उपचार, बीड़ी, गुटका आदि बुरी आदतों से बचाव, स्वस्थ जीवन का महत्त्व आदि संबंधी निर्देशन इसके अन्तर्गत आता है।

परामर्श (काउंसलिंग) : अर्थ, महत्त्व और प्रकार

परामर्श देना सलाह देने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । यह सलाह प्रशिक्षित व विशेषज्ञ सलाहकार या परामर्शदाता द्वारा दी जाती है। इस प्रकार परामर्श में परामर्शदाता और परामर्श प्रार्थी दो पक्ष अनिवार्य होते हैं। परामर्श चाहने वाले की कुछ समस्याएं होती हैं जो वह अकेला बिना किसी राय या सुझाव के पूरा नहीं कर सकता है। इन समस्याओं के समाधान हेतु उसे वैज्ञानिक सलाह की आवश्यकता होती है। यह राय या सुझाव जो विशेषज्ञ व्यक्ति द्वारा दिये जाते हैं परामर्श कहलाता है। बरनार्ड तथा फूलमार ने इसे परिभाषित इस रूप में किया है–"बुनियादी तौर पर परामर्श के अन्तर्गत व्यक्ति को समझना और उसके साथ कार्य करना होता है जिससे उसकी अनन्य आवश्यकताओं, अभिप्रेरणाओं और क्षमताओं की जानकारी हो फिर उसे इनके महत्त्व को जानने में सहायता की जाए।” वेबस्टर डिक्शनरी के अनुसार, “पूछताछ, पारस्परिक तर्क–वितर्क या विचारों का पारस्परिक आदान–प्रदान ही परामर्श है।

निर्देशन एकतरफा मार्ग है परन्तु परामर्श दोतरफा मार्ग है। परामर्श अधिक वैज्ञानिक सलाह है जो प्रशिक्षित अनुभवी व विशेषज्ञ परामर्शदाता द्वारा परामर्श के उपकरणों (बुद्धि परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण,रुचि परीक्षण,संचित अभिलेख,साक्षात्कार, अवलोकन) का उपयोग कर दी जाती है।

समावेशी शिक्षा में परामर्श का विशेष महत्त्व निम्न तथ्यों से स्पष्ट होता है–

(1) व्यक्तिगत महत्त्व– समावेशी विद्यालय में विशेष आवश्यकताओं वाले बालक भी प्रवेश लेते या अध्ययन करते हैं । उनकी अपनी शारीरिक या मानसिक कमियों से संगठित कई व्यक्तिगत समस्याएं होती हैं। जैसे क्षीण श्रवणशक्ति बालक साधारण रूप से कही गई बातों को सुन नहीं पाते हैं । अल्प दृष्टि वाले बालक या तो पास की वस्तुओं को या दूर की वस्तुओं को देख नहीं पाते । चलने फिरने में असमर्थ अपंग बालक स्वयं उठने या बैठने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। मंदबुद्धि बालकों को तीव्र गति से किया गया शिक्षण समझ में नहीं आता। ऐसे निःशक्त बालकों की अन्य अनेक व्यक्तिगत समस्याओं का हल परामर्श है । परामर्शदाता द्वारा लिये गए ऐसे बालकों के साक्षात्कार, परीक्षण, परिचर्चा से समस्या का उपाय की सलाह सही परामर्श द्वारा ही मिल सकती है ।


(2) शैक्षिक महत्त्व– जो शिक्षण सामान्य छात्रों की समझ में आसानी से आ जाता है, उसे यदि धीमे अधिगमकर्ता या मंदबुद्धि के बालक समझने में असमर्थ रहते हैं तो उन्हें परामर्शदाता से अच्छे अधिगम की विधि ज्ञान हो सकती है तथा शिक्षक भी अपने अध्यापन के तरीकों में सुधार कर सकता है। अभ्यास कार्य को वाजिब समय से अधिक देर से करने वाले बालक, ऐसे छात्र जिनमें ध्यान केन्द्रीकरण कर सीखने की क्षमता कम है, वाचन या पठन में गलतियाँ करने वाले बालक या ऐसे बालक जिन्हें व्याकरण, गणित आदि कोई विषय दुष्कर लगता है, परामर्शदाता के परामर्श से अपनी शैक्षिक समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों को उनकी रुचि, योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्यानुभव या व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने की सलाह भी विशेषज्ञ परामर्शदाता से प्राप्त हो सकती है । वैकल्पिक विषयों में से कौनसा विषय क्यों चयन किया जाए यह भी परामर्श से सुलझाया जा सकता है।

(3) मनोवैज्ञानिक महत्त्व– संस्कार विहीन परिवारों से आए लड़ाई झगड़ा करने वाले, अपशब्द कहने वाले दूसरों के पेन टिफिन आदि की चोरी करने वाले, शाला से भागकर आवारागर्दी करने वाले, कक्षा में शरारतें करने वाले, झूठ बोलने वाले,कुंठित, हीनता भावना से ग्रस्त अआत्मविश्वासी बालक, चाकू–छुरी रखने वाले बालक, बाल अपराधी छात्र, अनुशासनहीनता व अवज्ञा करने वाले बालकों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर परामर्शदाता ऐसे बालकों की समस्याओं के कारणों की तह में जाकर उन्हें उचित सलाह देकर उनकी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के हल में सहायता कर सकता है।

(4) सामाजिक महत्त्व– ऐसे बालक जो एकांत में रहते हैं जिनके मित्र नहीं हैं जो दूसरों से बातचीत करने में झेंपते हैं या जो असामाजिक गतिविधि में लिप्त हैं ऐसे बालकों का उपचार आवश्यक है । परामर्शदाता केस स्टडी.साक्षात्कार आदि उपयुक्त विधियों से परीक्षण कर छात्रों को समझ में बैठाकर परामर्श दे सकता है।

समावेशी शिक्षा में परामर्श के विभिन्न प्रकार

(1) नैदानिक परामर्श (क्लिनिकल काउंसलिंग) – श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित, वाणि बाधित, अस्थि बाधित, मंदबुद्धि, धीमे अधिगमकर्ता, अलाभप्रद वंचित वर्ग के बालकों की शारीरिक व मानसिक कमियों के लिए उन्हें निदानात्मक सलाह परामर्शदाता द्वारा दी जाती है । कहाँ कृत्रिम पैर, हाथ लगाए जा सकते हैं, कहाँ सहायक उपकरण (चश्मा, श्रवण यंत्र, वैशाखी, ट्रायसिकल) उपलब्ध होंगे। कैसे क्षमताओं में सुधार लाया जा सकता है–ये कार्य सम्यक जाँच व परीक्षण कर परामर्श द्वारा निःशक्त छात्रों को दी जा सकती है ।

(2) मनोवैज्ञानिक परामर्श– मनोवैज्ञानिक परामर्श में परामर्शदाता मनोग्रंथियों के शिकार छात्रों को उनकी दमित भावनाओं एवं संवेगों का परिष्कार करने में सहायता करता है । परामर्शदाता विभिन्न मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग कर सलाह देता है ।

(3) सामाजिक परामर्श– बालकों के सामाजिक कुसमायोजन को दूर कर उनमें सामाजिक कुशलताओं में वृद्धि हेतु सामाजिक परामर्श दिया जाता है । बड़ों के प्रति आदरभाव न रखने वाले, अपशब्द का प्रयोग करने वाले, नैतिकता व स्थापित मूल्यों के विरुद्ध आचरण करने वाले, संस्कारहीन बालकों में उन्हें समुचित परामर्श देकर सुधार किया जा सकता है ।

(4) शैक्षिक परामर्श– शैक्षिक परामर्श छात्र को अपनी शिक्षा एवं अध्ययन में सफलता प्राप्त करने तथा पाठ्यक्रमों एवं विषयों का उचित चुनाव करके, उपयुक्त व्यावसायिक शिक्षा का चयन करने आदि हेतु दिया जाता है। वर्तनी की अशुद्धियाँ, वाचन में समस्या, गणित आदि विषय में अरुचि, घटिया निष्पादन, उपलब्धि परीक्षणों में कम ग्रेड पाने वाले छात्रों को शैक्षिक परामर्श देकर उनमें सुधार का प्रयास किया जाता है।